मिथिलाक दुर्दशा जौं, नहि दूर कय सकी तँ,
विद्वान ओ धनिक भय, बाते बनाय की हो।
अपना बुतय होअय जे, कय जाउ बेरि में से,
जरि जाय जं जजाते, करिने पटाय की हो?
दुःखी समाज अछि जा, बान्ही बखार ने-ता,
काने कटाय लो तँ, कुण्डल गढ़ाय की हो ?
निज भेष ओ विभूषा, सँ पीठ ओडि बंसी,
बाजी न मैथिली तं, मैथिल कहाय की हो ?
थिक व्यर्थ देश-सेवा यदि होय एकते ने,
अद्धी न हाथ पर तँ, बटुए सिआय की हो?
नहि कय स्वजाति सेवा, नेता बनी कथी लय,
यदि आँखि नै रहय तँ, चशमे चढ़ाय की हो ?
घसमोड़ि की पड़ल छी, माताक दुःख दिन मे,
घर मे घसकि रहो तँ पैघे कहाय की हो ?
श्री हेमपति चरण मे, माथा नमाय मन सँ,
पूजा न हम करी तँ, दोसर उपाय की हो?
( मैथिलो-सन्देश)
मैथिली अकादमी, पटना .कविता-संग्रह में प्रकाशित।