#MNN@24X7 ग्रेटर नोएडा / यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते है, “आज नेता जी के नाम से विख्यात पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नहीं रहे। इस अवसर पर मुझे उनके साथ अपने कुछ अनुभव याद आ रहे हैं। सर्वप्रथम मैंने उन्हें वर्ष 1982-83 में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लखनऊ के छतरमंजिल स्थित कार्यालय के पास एक-डेढ़ दर्जन लोगों के साथ कुछ भाषण करते सुना था। मैं उस समय एसएसपी कार्यालय में अन्डर ट्रेनिंग था। सिपाहियों ने बताया कि मुलायम सिंह जी बोल रहे हैं। जबतक मैं बाहर आया, वे जा चुके थे।

सुलखान सिंह आगे बोले, “नेताजी से मेरी दूसरी मुलाकात वर्ष 1990 में हुई जब वे मुख्यमंत्री थे। हुआ यह कि उनकी सरकार बनने पर मुझे एसपी रेलवे मुरादाबाद से एसपी रामपुर तैनात किया गया। 6 महीने बाद रामपुर से तत्कालीन मंत्री आजम खान कुछ मामलों को लेकर रुष्ठ हो गये और उनकी शिकायत पर मेरा तबादला रामपुर से एस.पी. पौड़ी गढ़वाल कर दिया गया। मुझे लगा कि 10 साल की वरिष्ठता में मुझे बड़ा जिला मिलना चाहिए और मैंने मुख्यमंत्री जी से मिलने का फैसला किया। मुख्यमंत्री आवास पर बताया गया कि मुख्यमंत्री जी 10 बजे तक आयेंगे। मुलायम सिंह जी जब आये तो सीधे पुराने सचिवालय के अपने कार्यालय चले गये। मै भी सचिवालय पहुंच गया। अंदर इंटरकॉम से बताया गया। थोड़ी देर बाद रेवती रमन सिंह जी आये और सीधे अंदर चले गए। मेरे दुबारा कहने पर पीएस ने फिर इंटरकॉम से बताया कि सर पूर्व एस.पी. रामपुर बैठे हैं। इसपर तुरंत मुलायम सिंह जी ने मुझे बुला लिया और बाहर के कक्ष में आकर मुझसे मिले। मैंने कहा कि सर मैं बहुत सीनियर हूं। मुझे पौड़ी जैसे छोटे जिले की बजाय पी.ए.सी. में कर दें। उन्होंने कहा, “तुम्हारी शोहरत अच्छी है। अभी चले जाओ। जल्दी ही अच्छी जगह कर देंगें।” मैंने आग्रह किया तो बोले ठीक है। अगले दिन खुद उन्होंने अधिकारियों से कहा कि सुलखान सिंह को पीएसी में करना है और मै 44 वीं वाहिनी मेरठ पहुंच गया।”

सुलखान सिंह आगे बोले, “उनकी निर्णयात्मक दृढ़ता अद्वितीय थी। मुलायम सिंह जी ने उत्तर प्रदेश में एडीजी के पद सृजित किए जबकि आईपीएस रूल्स में ऐसा कोई पद नहीं था। उस समय बड़े और छोटे राज्यों के डी.जी.पी. के लिए दो अलग अलग पे स्केल थे। मुलायम सिंह जी ने छोटे राज्यों के डीजीपी वाली पे स्केल पर एडीशनल डीजी के पद सृजित कर दिये। आईएएस अधिकारियों ने केन्द्र सरकार से विरोध करवाया, महालेखाकार से आपत्ति करवाई लेकिन जो डिग जाये वो मुलायम सिंह नहीं। बाद में केन्द्र ने भी एडीजी नाम से पद सृजित किये।

पूर्व डीजीपी कहते है, “उसके बाद जब वे मुख्यमंत्री नहीं थे तो अपने लोगों के काम के लिए फोन किया करते थे। वर्ष 2004 में जुलाई में मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने मुझे आईजी लखनऊ जोन तैनात किया। मैं एक साल आईजी जोन रहा। मेरे पूरे कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कभी किसी ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए नहीं कहा। न ही उनके किसी मंत्री ने कहा।”

सुलखान सिंह आगे बोले, “आईजी जोन लखनऊ सर्वाधिक महत्वपूर्ण जोन माना जाता था। मेरे आईजी जोन पोस्ट होने पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मेरी पोस्टिंग राजा भैया ने कराई है। दरअसल, अधिकारी यह स्वीकार ही नहीं कर पाते थे कि बिना तगड़ी सिफारिश के इतनी महत्वपूर्ण तैनाती मिल सकती है। उसके दूसरे दिन जब मैं मुख्यमंत्री जी से मिला तो मैंने पूछ लिया कि ‘सर एक अधिकारी ऐसा कह रहे थे जबकि मेरी राजा भैया जी से आज तक कोई मुलाकात ही नहीं है। उन्होंने कहा कि राजाभैया ने नहीं कहा, कहो तो बतायें। मै सावधान बैठा रहा तो बोले, “तुम्हारे लिए बुआ सिंह ने कहा था, हम तो नहीं करना चाहते थे, इसी जगह बात हुई थी, और डीजीपी को भी नहीं मालूम था”। बता दूं कि बुआ सिंह उस समय एडीजी कानून एवं व्यवस्था थे, लेकिन उन्होंने खुद मुझे नहीं बताया।”

पूर्व डीजीपी कहते है, “मुलायम सिंह एक अधिकारी के बारे में अक्सर कहते थे कि तुम्हारा डीआईजी बहुत बेईमानी कर रहा है। मैं कोई जवाब नहीं देता था क्योंकि डीआईजी की तैनाती तो मुख्यमंत्री ही करते हैं। एक और महत्वपूर्ण मामले का जिक्र करना जरूरी है। घटना कुछ यूँ हुई कि पुराने लखनऊ में शिया-सुन्नी झगड़ा हुआ। कुछ घायल अस्पताल गये जहाँ तीन मृत घोषित किए गए और तीनों सुन्नी थे। अब क्या था। पुलिस और प्रशासन को लगा कि अब शिया-सुन्नी दंगा अवश्यंभावी है। मुलायम सिंह जी दिल्ली में थे वहीं तत्काल खबर दी गई। लखनऊ का रिकॉर्ड है कि दोनों समुदाय मृतकों की गिनती बराबर करते हैं। हमारी ओर से पूरी तैयारियां की गईं। रात में जब मुख्यमंत्री जी लौटे तो एयरपोर्ट से सीधे पहले टीले वाली मस्जिद गये और फिर कुछ अन्य लोगों के घर गये। मैं साथ में नहीं था। उन्होंने सुन्नी साहबान को जो भी समझाया हो, परिणाम यह हुआ कि अगले दिन तनाव काफी कम हो गया और बाद में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, पूरी शान्ति बनी रही।”

पूर्व डीजीपी कहते है, “एक साल पूरा होते होते अंबेडकर नगर के एक मामले में वहां के कद्दावर मंत्री और पूर्व पुलिस अधिकारी ने कुर्की रोकने का दबाव बनाया, लेकिन मैंने साफ इंकार कर दिया और उन्होंने मुख्यमंत्री जी से शिकायत करके मेरा तबादला करा दिया। उनकी जो बात मुझे अद्वितीय लगी वह थी उनका लोगों से मिलना। वे नेताओं, अधिकारियों, कार्यकर्ताओं और सामान्य नागरिकों सभी से हमेशा तुरंत मिलते थे। सबसे अलग अलग अकेले मिलते थे और पूरी बात सुनते थे। इन सब बातों से सभी को यह आभास बना रहता था कि मुलायम सिंह जी तक बात पहुंचा दी गई तो ज्यादा अन्याय नहीं हो पायेगा। उनका यही व्यवहार, सभी वर्ग के वोटरों पर उनकी पकड़ बनाए रखता था।

(सौ स्वराज सवेरा)