‘धूमकेतु जयन्ती’ विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में आयोजित

#MNN@24X7 दरभंगा, विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में ‘धूमकेतु जयन्ती ‘के उपलक्ष्य में एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसके मुख्य वक्ता मैथिली साहित्य के वरिष्ठ कथाकार, कवि, सम्पादक विभूति आनन्द थे। विभागाध्यक्ष प्रो दमन कुमार झा के अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में विभागीय शिक्षक, शोधार्थी एवं छात्र- छात्राओं ने भाग लिया।मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बातों को रखते हुए विभूति आनन्द ने कहा कि धूमकेतु उस पीढ़ी के कथाकार थे जो मैथिली कथा धारा को एक नया मोड़ दिया।

उन्होंने साहित्यिक विश्लेषण करते हुए कहा कि वे मार्क्स एवं फ्रायड के सिद्धांत के समर्थक थे इसलिए उनकी कथा एवं उपन्यासों में मार्क्स एवं फ्रायड के सिद्धांतों का समर्थित स्वरूप देखा जा सकता है।उनकी कहानियों में समाजहैं, जिसमें जीवन का संघर्ष है। गलत परंपरा के विरुद्ध एक मुखर स्वर है। उनकी रचनाओं में कोई झंडा नहीं है, यह पाठकों पर निर्भर है कि वे उन्हे किस झंडे के तले खड़े देखते हैं ।वैसे वे खुद को कहीं घोषित नहीं किया है कि मैं किसी झंडे को लेकर लिखता हूँ।उन्होंने जीवन के विभिन्न झंझाबातों को देखा है, जीया है और यही उनके लेखन व्यक्तित्व का मुख्य स्वर भी रहा है।

विभागाध्यक्ष प्रो दमन कुमार झा ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि धूमकेतु का जन्म कोइलख, मधुबनी में हुआ था, जो अर्थशास्त्र के ज्ञाता थे। उनकी पहचान एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री के रूप में थी।वे भारत से लेकर नेपाल तक पठन-पाठन का कार्य किया। उनकी रचनाऐं अपनी वैचारिक प्रधानता के लिए जानी जाती है एवं उनका साहित्य सदैव सामाजिक समस्या पर आधारित थी।उनके जीवन का पूर्वार्द्ध जितना ही मनोरमा रहा है, उत्तरार्द्ध उतना ही संघर्षपूर्ण एवं त्रासदी से भरा रहा । उनके इन दो पक्षो को उनकी सभी रचनाओं में देखा और परखा जा सकता है।

वरीय प्राध्यापक प्रो अशोक कुमार मेहता ने कथाकार धूमकेतु के विराट व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए कहा कि धूमकेतु मैथिली साहित्य में अपने नए दृष्टि-बोध के कारण जाने जाते हैं। खासकर उनकी कथाएं एवं उपन्यासों में नवीन शिल्पता का प्रयोग देखा जा सकता है। अगुरवान और छठ परमेसरी कथा, कथा और उसका विस्तार विश्व कथा साहित्य के समक्ष खड़े होने की माद्दा रखता है। उनकी कहानियो में मैथिली शब्दों के ठाठ तो मिलते ही हैं, मिथिला की संस्कृति परम्परा एवं प्रदूषण को संग संग लेकर चलती दिखती है और यहीं वह बिंदु है जो अन्य कथाकारो से उन्हें अलग करती है।

डॉ सुनीता कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि हमलोगो को उनकी रचनाओं का अध्ययन करना चाहिए, जिससे अनुज पीढ़ी को बोध होगा कि आज हम कहाँ हैं।
विभाग की शिक्षिका डॉ० सुनीता कुमारी ने अपने सम्बोधन में कहा की धूमकेतु आज भी अपनी रचनाओं के बल पर मैथिली साहित्य में अमर है।

इस कार्यक्रम में विभाग के शिक्षकेतर कर्मी श्री भाग्यनारायण झा, श्री नीरेन्द्र कुमार सहित शोधार्थी वंदना कुमारी, भोगेन्द्र प्रसाद सिंह, रौशन कुमार, दीपक कुमार, दीपेश कुमार, राज्यश्री कुमारी, राजनाथ पंडित, मनीष कुमार, मनोज पंडित, शालिनी कुमारी, प्रियंका कुमारी, नेहा कुमारी, अम्बालिका कुमारी, प्रवीण, शीला कुमारी, मिथिलेश चौधरी आदि के अतिरिक्त स्नातकोत्तर प्रथम एवं तृतीय छमाही के छात्र-छात्रा उपस्थित थे।