#MNN@24X7 दरभंगा, समारोह में मुख्य वक्ता प्रो अनिल कुमार झा, प्रति कुलपति प्रो डॉली सिन्हा, कुलसचिव डा अजय कुमार पंडित तथा सीनेटर डा वैद्यनाथ चौधरी आदि ने रखे महत्वपूर्ण विचार

मिथिला ज्ञान एवं दर्शन की भूमि रही है। शिक्षा से संस्कार तथा ज्ञान से विवेक बढ़ता है। शिक्षक किसी भी विश्वविद्यालय के धरोहर एवं पूंजी होते हैं। उपलब्धियां पाने का सिलसिला लंबा होता है। संस्थाएं जीवन्त होती हैं जो कुछ कहे बगैर ही देखने वालों को बहुत कुछ समझा देती हैं। उक्त बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने विश्वविद्यालय के 51वें स्थापना दिवस के अवसर पर जुबली हॉल में आयोजित मुख्य समारोह की अध्यक्षता करते हुए कही। उन्होंने स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि विश्वविद्यालय का गोल्डन जुबली वर्ष भी गत वर्ष मेरे कार्यकाल में मनाया गया। आज विश्वविद्यालय का शैक्षणिक एवं प्रशासनिक कार्य-संस्कृति का माहौल काफी बदल गया है। यह आवश्यक नहीं की बहुत अधिक समय मिले, कम समय में भी यादगार कार्य किये जा सकते हैं।

कुलपति ने कहा कि 4 वर्षीय स्नातक कोर्स लागू होने से बिहार में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। विश्वविद्यालय में काफी प्रगति हुई है, जिसे विभिन्न मापदंडों से मापा जा सकता है। आज छात्रों की परीक्षाएं एवं उनका परिणाम नियमित हैं। मेरे 3 वर्षों के कार्यकाल में अनेक सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं। काम नहीं करने वालों को समय माफ नहीं करता है। उन्होंने कोरोनाकाल जैसी मुसीबतों में भी सब के सहयोग को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि सोए हुए व्यक्ति का भाग्य भी सो जाता है और दौड़ने वालों का भाग्य भी दौड़ता है। कुलपति ने गेटे के शब्दों में कहा कि हम कहां खड़े हैं, यह मायने नहीं रखता, बल्कि हमारी दिशा किस ओर है, यह अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने आने वाले समय में विश्वविद्यालय परिसर में 60 करोड़ की लागत से शैक्षणिक भवन तथा इतने ही लागत से नये स्टेडियम बनने की बात कहते हुए शिक्षकों को अपना एपीआई स्कोर बढ़ाने का सुझाव दिया। कुलपति ने कहा कि विगत 50 वर्षों में शिक्षा की प्रकृति पूरी तरह बदल गई है। आज का दिन मूल्यांकन करने तथा नई योजनाएं बनाने का है।

मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं सामाजिक विज्ञान के संकायाध्यक्ष प्रो अनिल कुमार झा ने विश्वविद्यालय की स्थापना में सहयोगी रहे सभी महानुभावों को नमन करते हुए कहा कि स्थापना काल से ही जो भी कुलपति हुए वे अपनी क्षमता एवं रूचि के अनुसार विश्वविद्यालय का कार्य किया है। हम छात्रों में न केवल शिक्षा, बल्कि सकारात्मकता का भाव भरने का भी काम करते हैं। आज हमें शिक्षा के मूल उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है, क्योंकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इस विकास युग में नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों का क्षरण हो रहा है। हमें विश्वविद्यालय का मूल्यांकन समाज के सापेक्ष करना चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय के निरंतर आगे बढ़ते रहने की शुभकामना देते हुए कहा कि देश के अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षक जब हमारे विश्वविद्यालय के मनमोहक परिसर की तारीफ करते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है।

प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉली सिन्हा ने कहा कि आज का दिन विश्वविद्यालय के लिए विशेष है। स्वर्ण जयंती वर्ष में जो निर्णय लिये गये थे, वे धीरे-धीरे पूरे हो रहे हैं। उन्होंने ललित नारायण मिश्र, अमरनाथ झा, हरिनाथ झा तथा कर्पूरी ठाकुर आदि को नमन किया, जिनके सद्प्रयासों से विश्वविद्यालय स्थापित हो सका। विगत 3 वर्षों के कार्यों की सराहना करते हुए प्रति कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय में अनेकानेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कान्फ्रेंस/ सेमिनार हुए तथा एडवांस्ड रिसर्च सेन्टर की स्थापना हुई, जिसका शिक्षक एवं छात्र अधिकतम लाभ उठा सकते हैं। विश्वविद्यालय ज्ञान- विज्ञान के प्रसार हेतु कार्य करता है। आज के दिन हमलोग संकल्प ले कि ज्ञान एवं नैतिकता में हम अपने विश्वविद्यालय को बेहतर स्तर पर ले जाएंगे।

डा बैद्यनाथ चौधरी ने कहा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना में अनेक व्यक्तियों का योगदान रहा है, जिनमें ललित बाबू का व्यक्तित्व राष्ट्रीय स्तर का था। इसका पहला नाम मिथिला विश्वविद्यालय था, जिसकी स्थापना 5 अगस्त, 1972 को मोहनपुर गांव में हुई थी। प्रथम कुलपति के रूप में मदनेश्वर मिश्र हुए थे। उन्होंने इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने की बात करते हुए कहा कि कुलपति के नेतृत्व में सामूहिक प्रयास से विश्वविद्यालय को नैक में ए ग्रेड मिलने की उम्मीद है, ताकि दूरस्थ शिक्षा निदेशालय पुनः प्रारंभ हो सके।
स्वागत संबोधन में कुलसचिव डा अजय कुमार पंडित ने कहा कि किसी भी संस्था की स्थापना के उद्देश होते हैं, जिनपर आज हमें विचार करना चाहिए कि हम तब और आज कहां हैं? उन्होंने कहा कि मैं एक शिक्षक के रूप में 1996 से इस विश्वविद्यालय को जानता हूं। बेशक यह काफी उन्नति किया है। कुलसचिव के रूप में बैठकों में मैं जब भी पटना जाता हूं तो इस विश्वविद्यालय को प्रथम स्थान पर पाता हूं।
समारोह में क्विज प्रतियोगिता, वाद- विवाद प्रतियोगिता तथा फुटबॉल मैच में सफलता पाने वाले सभी प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा प्रमाण पत्र तथा मेडल प्रदान कर हौसलाअफजाई की गई। विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य विभाग के छात्र- छात्राओं द्वारा बिहारगीत एवं कुलगीत प्रस्तुत किए गए। अतिथियों का स्वागत पाग, चादर एवं पुष्पगुच्छ से किया गया।

प्रो अशोक कुमार मेहता के कुशल संचालन में आयोजित समारोह में धन्यवाद ज्ञापन कुलानुशासक प्रो अजयनाथ झा ने किया। इस अवसर पर सभी संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, प्रो हरि नारायण सिंह, अरविन्द कुमार सिंह सहित विश्वविद्यालय के पदाधिकारी, शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मी एवं छात्र- छात्राएं उपस्थित थे। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से समारोह का उद्घाटन तथा जन गण मन… के सामूहिक गायन से समापन हुआ।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय परिसर स्थित स्वर्गीय ललित बाबू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया एवं नवनिर्मित पार्क का लोकार्पण तथा अन्त में एनएसएस कोषांग के द्वारा वृक्षारोपण करवाया गया।