मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में व्याप्त संस्कृत के व्यापक अध्ययन- अध्यापन से राष्ट्र- निर्माण की गति होगी तीव्रतम- प्रो जयप्रकाश।

आग्नेय विद्या के रूप में प्रसिद्ध मानव हितकारी संस्कृत का मानव- सभ्यता के विकास में सर्वाधिक योगदान- डा मित्रनाथ।

आदि भाषा संस्कृत संस्कारित शिक्षा प्रदान कर मानव में भी देवत्व का गुण उत्पन्न करने में पूर्णत: सक्षम- डा घनश्याम।

राष्ट्रनिर्माण एक सतत चलने वाली प्रक्रिया, जिसमें युवाओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण- डा चौरसिया।

#MNN@24X7 दरभंगा, आज के भौतिकतावादी एवं वैज्ञानिक युग में मानव के स्वार्थ एवं भौतिकता की ओर तेजी से बढ़ने से उसमें मानवता एवं आध्यात्मिकता का तेजी से अभाव होना अत्यंत पीड़ादायक है। ऐसी स्थिति में संस्कृत में निहित ज्ञान- विज्ञान को अपनाकर हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। संस्कृत से न केवल एक व्यक्ति, बल्कि पूरे समाज एवं राष्ट्र का विकास एवं कल्याण संभव है। आज की सभी समस्याओं का निदान संस्कृत- साहित्य में निहित है।

उक्त बातें जामिया मिलिया इस्लामिया (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के स्नातकोत्तर संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जयप्रकाश नारायण ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग द्वारा मनाये जा रहे ‘संस्कृत सप्ताह समारोह’ के तहत “राष्ट- निर्माण में संस्कृत की भूमिका” विषयक राष्ट्रीय वेबीनार में मुख्य अतिथि के रूप में कही।

उन्होंने कहा कि मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में व्याप्त संस्कृत के व्यापक अध्ययन- अध्यापन से राष्ट्र- निर्माण की गति तीव्रतम होगी तथा समाज में खुशहाली आएगी।

प्रो जयप्रकाश ने कहा कि मेरा परम सौभाग्य है कि मैं मिथिला विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग का छात्र रहा हूं। आज के दिन हम संस्कृत के महत्व पर उत्साह पूर्वक विचार- विमर्श करते हुए इसके विकास हेतु कुछ संकल्प भी लेते हैं। जब हम अधिक गुणवान, आचरणवान एवं अच्छा नागरिक बनेंगे, तभी राष्ट्र- निर्माण में सर्वाधिक योगदान कर सकते हैं। इसी कारण आज संस्कृत की पढ़ाई अभियंत्रण एवं प्रबंधन जैसी संस्थाओं में भी हो रही है। संस्कृत अध्ययन से ही हमलोग पुन: आत्मगौरव को प्राप्त कर सकेंगे तथा भारत विश्वगुरु भी बनेगा।

मुख्य वक्ता के रूप में स्नातकोत्तर संस्कृत अध्ययन एवं शोध संस्थान, दरभंगा के पूर्व पांडुलिपि विभागाध्यक्ष डा मित्रनाथ झा ने कहा कि आग्नेय विद्या के रूप में प्रसिद्ध संस्कृत का मानव- सभ्यता के विकास में सर्वाधिक योगदान रहा है। विश्व की लगभग सभी भाषाओं पर संस्कृत का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ा है और इससे सभी भाषाएं समृद्ध हुई हैं। संस्कृत का जल- प्रबंधन, पर्यावरण- चेतना, सैन्य एवं वैमानिकी तथा आयुर्वेद- विद्या आदि आज भी अनुकरणीय है। ऋग्वेद के सूक्तों में राष्ट्र कल्याण की कामना की गई है। संस्कृति एवं संस्कार का मूल आधार संस्कृत ही है। उन्होंने कहा कि आज ऋग्वेद की ऋचाओं से अमेरिकी संसद प्रारंभ होता है।राष्ट्रीय चेतना के लिए वेदों के सूक्तों का सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक महत्व है। ज्ञान- विज्ञान की सारी बातें संस्कृत साहित्य में वर्णित हैं, जिनके अनुपालन से राष्ट्र- निर्माण संभव है।

अध्यक्षीय संबोधन में विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो ने कहा कि आदि भाषा के रूप में संस्कृत की राष्ट्रनिर्माण में अहम भूमिका है। यजुर्वेद में कहा गया है कि राष्ट्रहित में हम सब सदा जागृत रहे। उन्होंने कहा कि संस्कृत संस्कारित शिक्षा देता है, जिससे मानव में भी देवत्व का गुण उत्पन्न होता है। संस्कृत के अध्ययन से ही राष्ट्रनिर्माण तथा आदर्श राज्य की स्थापना संभव है।

राष्ट्रीय वेबीनार के संयोजक एवं विभागीय प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि राष्ट्र- निर्माण में कई तरह की गतिविधियां शामिल हैं, जिनमें शिक्षित समाज बनाना, हर व्यक्ति तक आवश्यक सुविधा पहुंचना, सैन्य- शक्ति को बढ़ाना, प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना तथा सुरक्षित पर्यावरण आदि का निर्माण करना शामिल है। राष्ट्र को पूर्ण रूप से विकसित करना तथा विश्व स्तर पर पहचान दिलाना ही राष्ट्र- निर्माण है जो सतत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसके लिए देश के हर वर्ग, धर्म, जाति तथा क्षेत्र के लोगों का योगदान आवश्यक है। राष्ट्रनिर्माण के लिए देश के नागरिकों में राष्ट्रभक्ति की भावना का होना बेहद जरूरी है, क्योंकि इसके अभाव में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि देशद्रोही गतिविधियां बढ़ती हैं जो राष्ट्रनिर्माण में बाधक हैं।

कार्यक्रम में प्रो रामनाथ सिंह, जेआरएफ- रितु कुमारी एवं नीरज कुमार सिंह, बालकृष्ण कुमार सिंह, शिक्षिका- डा सरिता कुमारी, डा अर्चना कुमारी, डा श्वेता कुमारी, डा नन्द किशोर ठाकुर, उत्कर्ष मिश्रा, बंगाल से राजकुमार चक्रवर्ती, धर्मेन्द्र राय, गिरधारी झा, पूजा कुमारी, मो शेराज अली, अभिषेक झा, हरिओम, मुस्कान, मृणाल, रंजय, अर्जुन, सागर, खुशबू , गोपाल, संतोष, श्यामनंदन, रानी, नीतीश, कमलेश, शंकर, सुशील, मुरारि, स्मिता, ऋषि, मिथिलेश, नीशीथ, रूपराज, आदर्श, प्रशांत, बबलू, चंदन, सुमित, विद्यासागर भारती, योगेन्द्र पासवान, उदय कुमार उदेश तथा अभिषेक झा सहित 70 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।
अतिथियों का स्वागत एवं संचालन संस्कृत- प्राध्यापिका डा ममता सनेही ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन सेवा संस्कृति संस्था, जोगियारा, दरभंगा के सचिव ललित कुमार झा ने किया।