#MNN@24X7 दरभंगा, 7 अगस्त मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करने के अवसर पर हर वर्ष की भांति इस बार भी भारतीय पिछड़ा शोषित संगठन के तत्वावधान में समाजिक न्याय दिवस मनाया गया।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भारतीय पिछड़ा शोषित संगठन के प्रदेश अध्यक्ष उमेश राय ने कहा कि आजाद भारत की दो बड़ी उपलब्धियां हैं– पहला संविधान और दूसरा मंडल कमीशन की रिपोर्ट। पिछड़े–अतिपिछड़े वर्ग के लोगों के सामाजिक–आर्थिक विकास के अवरोधक तत्वों से लड़ने के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट मुक्ति का महाख्यान प्रस्तुत करती है।

आज जाति जनगणना, आबादी के अनुपात में आरक्षण, समान शिक्षा प्रणाली, हाशिए के वर्ग को मद्देनजर रखते हुए बजट निर्माण, स्वास्थ्य अधिकार आदि को लेकर जारी जन संघर्ष मंडल आंदोलन के दूसरे चरण रूप में हमारे सामने है।
इस संघर्ष को बुलंद करके ही मंडल मिशन को साकार किया जा सकता है।

वहीं, जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि आज सामाजिक अन्याय परकाष्ठा पर है। जिस सामंतवाद, ब्राह्मणवाद से लड़कर हम यहां तक आएं हैं, उनके पुनरूत्थान का दौर है।गरीबों–शोषितों के अरमानों को मनुवादी बुलडोजर से कुचला जा रहा है।

संविधान सामाजिक न्याय का महान ग्रंथ है। आज संविधान पर, लोकतंत्र पर लगातार हमला जारी है। संविधान को बचाना सामाजिक न्याय को बचाना है। संविधान बचाने के लिए बहुत जरूरी है कि विभाजनकारी, वर्चस्ववादी मनुवादी विचारधारा को राजनीतिक सामाजिक सत्ता से अपदस्थ कर दिया जाए।शोषितों–वंचितों की व्यापक वर्गीय एकता से ही यह संभव हो सकेगा। मंडल आंदोलन हमारे मुक्ति संग्राम का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है लेकिन संघर्ष को अब दूसरे चरण में तीव्र गति से ले जाने का समय है!

जसम जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने कहा कि भारतीय समाज में सामजिक न्याय की अवधारणा में जरूर गड़बड़ है। यहां न्याय को धर्मशास्त्रों के अनुरूप मान लिया जाता है। जबकि सामाजिक न्याय धार्मिक सत्ता से जूझते हुए शोषितों के हक और बराबरी की अवधारणा है।सोशल जस्टिस का मतलब है सभी संसाधनों का समान वितरण। मंडल आयोग ने इसमें महती भूमिका निभाई है। यह सामाजिक परिवर्तन के हमारे ऐतिहासिक संघर्ष को आगे बढ़ाती है।

विजय भगत ने कहा कि दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों के बीच के आंतरिक वर्गीकरण को तोड़ना होगा। जाति के विनाश की ओर अग्रसर हुए बिना सामाजिक न्याय स्थापित नहीं हो सकेगा। सांप्रदायिकरण के कुत्सित प्रयासों को नाकाम करना मंडल के वारिसों की पहली जिम्मेदारी है।

प्रो. दयानाथ ने लोकतांत्रिक आचरण को आत्मसात करने को सामाजिक न्याय की अनिवार्य शर्त बताया।विचार गोष्ठी में डॉ. सूरज, पारसनाथ यादव, रवींद्र कुमार, फूलो यादव आदि ने भी अपने विचार रखे।