संस्कृत ज्ञान- विज्ञान का अक्षय स्रोत व संजीवनी विद्या जो मानव जीवन के सम्यक् विकास व संचालन में समर्थ – डा विनय।
संस्कृत बोलने के लिए विषय का विद्वान होना आवश्यक नहीं, वरन प्रशिक्षण एवं लगातार अभ्यास की जरूरत- डा जयशंकर।
संस्कृत वैज्ञानिक एवं मधुर भाषा, शिविर- आयोजन से छात्र-छात्राओं के अलावा सामान्य लोग भी होंगे लाभान्वित- डा घनश्याम।
संस्कृत की आज काफी महत्ता बढी है, यदि गांव- गांव में संस्कृत की शिक्षा दी जाए तो सबका कल्याण संभव- डा कामेश्वर।
संस्कृत समृद्धि, व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक भाषा है, जिसमें उच्च राष्ट्रीय भावना व्यक्त हुई है। यह जीवंत भाषा है जो देवताओं एवं मृतात्माओं के आह्वान का एकमात्र माध्यम है। उक्त बातें संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर वेद विभागाध्यक्ष डॉ विनय कुमार मिश्र ने मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में कही।
उन्होंने कहा कि संस्कृत ज्ञान- विज्ञान का स्रोत व संजीवनी विद्या है जो मानव जीवन के विकास एवं संचालन में समर्थ है। संस्कृत की वैज्ञानिकता सर्वत्र व्याप्त है। संस्कृत में जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा जाता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत संभाषण से संस्कृत का ज्ञान एवं साहित्य में युवाओं की रुचि बढ़ेगी।
शिविर का उद्घाटन करते हुए विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रथम डा कामेश्वर पासवान ने कहा कि संस्कृत की आज काफी महत्ता बढ रही है। यदि गांव- गांव में संस्कृत की शिक्षा दी जाए तो सबका कल्याण संभव है। उन्होंने दु:ख प्रकट किया कि मुझे बचपन में संस्कृत पढ़ने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। वैसे मैं संस्कृत बोल तो नहीं सकता, परंतु समझ जरूर लेता हूं। यदि सामान्य लोगों को भी संस्कृत की महत्ता बताई जाए तो उन्हें भी इसमें रुचि हो जाएगी और इसका सामानीकरण संभव होगा।
मुख्य वक्ता के रूप में लोक भाषा प्रचार समिति, बिहार के अध्यक्ष डा जयशंकर झा ने कहा कि संस्कृत बोलने के लिए विषय का विद्वान होना आवश्यक नहीं है, वरन प्रशिक्षण एवं लगातार अभ्यास की जरूरत है। संस्कृत अमृत सदृश्य है, जिसका नाश असंभव है। जब तक भारत है, तब तक संस्कृत भी रहेगी। संस्कृत संभाषण से इसका सामाजिकरण होगा, जिससे पूरे समाज को लाभ होगा।
उन्होंने शिविर में भाग ले रहे अन्य विषयों के शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं को देखकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह संस्कृत के उज्ज्वल भविष्य का शुभ संकेत है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह ने संस्कृत सीखने के दो तरीकों की चर्चा करते हुए कहा कि परंपरागत रूप में संस्कृत बोलने वाले परिवारों में बच्चे आसानी से संस्कृत सीख लेते हैं, जबकि दूसरे लोग संस्कृतमय वातावरण से ही उसे ग्रहण कर सकते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के सिलेबस में किसी न किसी रूप में संस्कृत संभाषण को लागू किया जा रहा है, जिसका लाभ छात्रों को प्राप्त होगा।
विषय प्रवेश कराते हुए पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो जीवानंद झा ने कहा कि व्याकरण को ध्यान में न रखते हुए प्रारंभ में छात्र शुद्ध या अशुद्ध रूप में ही बोलने पर संस्कृत में अवश्य बोलें। सामाजिक परिवर्तन, राष्ट्रीय विकास एवं धार्मिक सहिष्णुता के लिए संस्कृत का प्रचार- प्रसार आवश्यक है। संस्कृत हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है।
शिविर के प्रशिक्षक अमित कुमार झा ने कहा कि इस शिविर से छात्रों के साथ- साथ शिक्षकों को भी काफी लाभ होगा, क्योंकि उन्हें गीत, संकेत, वस्तु, वार्तालाप एवं प्रश्नोत्तरी माध्यम से सरल से सरल संस्कृत भाषा सिखाया जाएगा।
शिविर में अंग्रेजी- विभागाध्यक्ष प्रो मंजू राय, दर्शनशास्त्र- विभागाध्यक्ष डा रुद्रकांत अमर, संस्कृत विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त डा अमरनाथ शर्मा, प्रभात दास फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, अंग्रेजी- प्राध्यापक डा संकेत कुमार झा, सुधांशु शेखर, मंजू अकेला, उदय कुमार उदय, विद्यासागर भारती, योगेंद्र पासवान तथा राकेश साह समेत 60 से अधिक शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं अन्य प्रतिभागी ऑफलाइन माध्यम से उपस्थित थे।
अतिथियों का स्वागत पाग एवं चादर से किया गया। मंगलाचरण संस्कृत- शोधार्थी श्रवण कुमार ठाकुर ने प्रस्तुत किया।
स्नातकोत्तर व्याकरण विभाग की शिक्षिका डा साधना शर्मा के कुशल संचालन में आयोजित उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत विभागीय प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन शिविर की संयोजिका का डा ममता स्नेही ने किया।
वहीं शिविर के द्वितीय सत्र में प्रशिक्षक अमित कुमार झा ने विस्तार से सरल संस्कृत संभाषण का अभ्यास कराया। शिविर के प्रबंधक डा आर एन चौरसिया ने बताया कि शिविर हेतु करीब एक सौ प्रतिभागियों का पंजीकरण किया गया है। स्थानीय प्रतिभागियों के लिए ऑफलाइन प्रशिक्षण का संचालन दिन में 2:00 से 3:30 के बीच होगा, जबकि दूरस्थ प्रतिभागियों के लिए संध्या 7:00 से 8:00 के बीच प्रशिक्षण शिविर ऑनलाइन माध्यम से होगा।