शारीरिक शक्ति आ नैतिक साहस के अपन-अपन विशेषता अछि। संगहि एहि मे पर्याप्त भिन्नता सभ सेहो अछि। जहिना माछ सं उड़नाई आ चिड़ै सं हेलबाऽक अपेक्षा बेकार अछि,तहिना अध्यात्मवादी स्वामी विवेकानन्द आ महात्मा गाँधी के तुलना कोनो पहलवान आ दौड़ाक सं केनाय नैतिक साहस के शारीरिक शक्ति सं तुलना के बराबर होयत। गांधीजी आ विवेकानन्द एकहरा देहऽक स्वामी छलाह मुदा तैयो हुनकर भाषण, शब्द आ वक्तव्य सबटा में अदम्य साहस के परिदर्शन होईत अछि। जे शारीरिक साहस सं बहुत अलग होइत अछि।
अपना सबहक शारीरिक शक्ति, शारीरिक क्षमता पर निर्भर करैत अछि। जे अपना सब शारीरिक व्यायाम आ प्रशिक्षण सं प्राप्त करैत छी। जखनकिऽ आत्मिक आ बौद्धिक क्षमता, या तऽ जन्मजात अबैत अछि वा सृजन सं। शारीरिक शक्ति, शरीरऽक कसरत सं प्राप्त होइत अछि। जखनकिऽ नैतिक साहस, बौद्धिक व्यायाम वा महान आध्यात्मवादी सबहक संगति सं उत्पन्न होइत अछि ।
नैतिक साहस केर प्राप्ति करबाक वास्ते जीव’के नैतिक जगतऽक अनंत इच्छा सबहक दमन कर पड़ैत अछि। किया की इंद्रियजन्य इच्छा सब पर विजय प्राप्त केला कऽ उपरांते अपना सभकेँ असीम आत्मिक बल भेटैत अछि। धन-सम्पत्ति, शक्ति आ पद लिप्सा केर आर्कषण सं मुक्त भऽ के अपना सभकेँ आत्मिक बल आ नैतिक साहस केर प्राप्ति होइत अछि। मुदा ओहि विराट शक्ति के दुरपयोग कखनहुं अपन स्वार्थऽक लेल नहि करबाक चाही। अपितु एकर संयमित प्रयोग लोक कल्याण के वास्ते हेबाक चाही। देखल जाय त आत्मिक साहस, शारीरिक शक्ति सं बेसी प्रभावशाली होइत अछि। जेना कि महात्मा गांधी,अंग्रेज सरकार सं लड़बाक लेल अहिंसाऽक बाट पर चललन्हि। एहि ठाम आत्मिक आ नैतिक साहस के प्रभाव देखल जा सकैत अछि।
शारीरिक शक्ति सदैव आत्मिक साहस द्वारा प्रेरित हेबाक चाही। नहि तँ शारीरिक शक्ति पशुवत आ आक्रान्तक भऽ जायत। संगहि शारीरिक शक्ति,असमाजिक आ असभ्य सेहो भऽ सकैत अछि। सबटा महान सामाजिक सुधारक, धार्मिक उपदेशक, वैज्ञानिक लोकनि , राजनेता गण आ साधु-संत सब आत्मिक आ मानसिके साहसऽक वृद्धि पर जोर देने छलाह। एकर फलस्वरूप बहुतो रास सुधारक, मानवता के प्रभावित करबा में सफल सेहो रहलैथ। ई नैतिक साहस के सिद्धान्तऽक एकटा पैघ सफलता अछि ।
देखबा मे अबैत अछि, जेऽ शासक वा अधिकारी केवल शारीरिक शक्तियेऽ टा कऽ प्रयोग अपन काज संपादित करबा लेल करैत छथि। हुनके एहेन लोक के जन सामान्य ज़ालिम, तानाशाह आ समाजऽक खून चूसनिहार संगहि संग लूटेरा तक कहि दैत छथि। आधुनिक समय मे हिटलर एकर प्रत्यक्ष उदाहरण छल। ताहि कारणें प्रत्येक व्यक्ति के अपना भीतर नैतिक साहस के विकास करबाकेऽ टा चाही। ई शारीरिक शक्ति सं बेसी प्रभावशाली होइत अछि।
कहबी अछि जे इच्छा शक्ति नैतिक साहसऽक छुरी अछि। महाराणा प्रतापऽक संकल्पे हुनका लड़बाक शक्ति दैत छल। श्रीराम के दृढ़ इच्छा शक्तिये हुनका मर्यादा पुरुषोत्तम बनेलऽक। गाँधीजी अपन मजबूत इच्छा शक्तिये कऽ बले अंग्रेजों सं सीधा टक्कर लऽ लेलन्हि। एहि तरहे नैतिक साहस, शारीरिक शक्ति कऽ अपेक्षा बेसी आकर्षक आ शक्तिशाली अछि।
कहबाक तात्पर्य यैह अछि जे, नैतिक साहस सदैव शारीरिक शक्ति पर विजय प्राप्त करैत अछि। ताहि कारणें युवा लोकनि सं यैह अपेक्षा से अपन देश आ समाजऽक कल्याण केर खातिर। शारिरिक बल अर्जित करबाक संगे-संग नैतिक साहस आ शौर्य सेहो अपना भीतर भैर ली। तखनहि अपना संगे-संग अपन देश आ समाजऽक विकास संभव अछि।
जय मिथिला