ज्ञान’क कोनो सीमा नहि होइत अछि। जौं अपना सब बेसी सं बेसी ज्ञान अर्जितो क लैत छी तैयो तृप्ति भेटब मुश्किले बुझना जाइत अछि। किया की ज्ञान के कोनो पराकाष्ठा नहि।संगहि एकर हरेबा वा छिनबाक भय सेहो नहि।देखल जाय त अध्ययन सं अपनासब कें अनुभव आ सूचनाक रूप मे ज्ञान प्राप्त होईत अछि।
पहिने त अपना सभ ओत भोरूकबा में उठबाक परंपरा सेहो रहै। बाबू जी के कहब जे ब्रह्ममुहूर्त अछि जल्दी याद हैत एकटा उत्साह भैर दैत छल। मुदा दुर्भाग्यवश अपन मिथिला मे भोरे उठि के पढ़बाक आदति सेहो आब समाप्तप्राय अछि। आब केबल टीवी बला संस्कृति जखन जे इच्छा सैह उपलब्ध दैनिक आदत पर सेहो हाबी भेल जा रहल अछि। किनको देखब जे पढ़ऽ बैसता त बसऽ पढि़ते रैह जेता। खेलबाऽक समय सेहो यैह हाल।खेलो कोन तऽ विडियो गेम वा आनलाइन गेम्स, जे कखन खाता खाली कऽदेत तकर कोनो गारंटी नहि।
ई प्रारंभिक कुव्यवस्था अपनासब के आगू आब बला जिनगी मे परेशानी क कारण बनि सकैत अछि। आंखि आ पाचन सं जुड़ल समस्या सभ सं बेसी हेबाक डर। आब सोचू जखन जीवन में आगू मोन सं किछु खायल वा देखले नहि होयत तखन कमाये कऽ कोन फायदा।मुदा वैह पैइन(बारिश)में भिजैत बानर बला खिस्सा ओहेन लोक कऽ के बुझाबै।
क्रमशः