MNN24X7 अदौसँ मिथिलाक समाज आस्तिक रहल अछि। देवता पितरक प्रति एहि ठामऽक लोक’क मोनऽ सम्मानसँ भरल रहैत छन्हि। ओना त’ देव आ पितरक प्रति सदिखन सम्मान मैथिल लोकनि रखैत छथि। मुदा आश्विन मासक अन्हरिया पक्ष पितर लोकनि’क हेतु पार्वण श्राद्ध,पितरसमूह लेल पिण्डदान आ तर्पण लेल पितृपक्ष। आ तकर बाद ईजोरिया पक्ष देवीपक्षक नामे जानल जाइत अछि।जाहिमे दुर्गा पूजा होइत अछि।
पंचागऽक अनुसारे भादव पूर्णिमासँ आश्विन मासऽक अमावस्या धरि पितृपक्ष चलैत अछि। एहि पक्षमे लोक अपन पूर्वज सबकेँ जल अर्पण करैत छथि। सनातन संस्कृतिमे सेहो पितृपक्ष अति महत्वपूर्ण अछि। एहि अवधिमे दिवंगत पूर्वजकेँ श्रद्धापूर्वक स्मरण करैत हुनका लेल श्राद्धकर्म कएल जाइत छन्हि। श्राद्ध नहा मात्र पितरक मुक्ति लेल होइत अछि अपितु ई हुनका प्रति सम्मान प्रकट करबाक लेल सेहो कएल जाइत अछि।
मान्यता अछि जे पितृपक्षमें पितरक श्राद्ध केलासँ हुनक कृपा भेटैत अछि आ सब बाधासँ मुक्ति सेहो भेटैत अछि। पितृपक्षमे अपना पूर्वजकेँ श्रद्धापूर्वक जल देबाक विधान अछि। एहनमे आउ जनैत छी तर्पण विधि, नियम, सामग्री आ मान्यताक संबंधमे-:
पितृपक्षमे पितरक प्रसन्नताक लेल जे क्यो श्राद्ध कर्म करैत छथि हुनका एहि अवधिमे केश आ दाढ़ी आदि नहिं कटेबाक चाही, संगहि एहि समयमे घरमे सात्विक भोजन करबाक चाही, राजसी आ तामसी भोजनसँ परहेज करब आवश्यक मानल गेल अछि। यदि पूर्वजक मृत्यु तिथि स्मरण हो त’ तिथिक अनुसार पिण्डदान करथि त’ सर्वोत्तम होइत अछि।
पितृपक्षमे प्रतिदिन पितरक लेल तर्पण करबाक चाही। तर्पण केनिहारकेँ कुश(),अक्षत,जौ आ केरा आ करिया तिल(पहिल दिन अगस्त्यतर्पणमे शंखमे जल आ काशक फूल) केर उपयोग करबाक चाही। तर्पणक उपरांत पितरसँ प्रार्थना आ भूलचूक लेल क्षमायाचना करबाक चाही।
पितृपक्ष प्रार्थना लेल निम्नलिखित मंत्रक पढ़ल जाइछ-:
१. पितृभ्यः स्वाधायिभ्यः स्वधा नमः। पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। सर्व पितृभ्यो श्रद्ध्या नमोनमः।
२. ऊँ नमो वः पितरो रसाय नमो वः पितरः शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्न पितरो दत्तः सत्तो वः।।
सनातन मान्यताक अनुसार पूर्वजक तीन पीढ़ीक आत्मा पितृलोकमे रहैत छथि, जे पृथ्वी आ स्वर्गक बीचक स्थान मानल जाइत अछि। ई क्षेत्र मृत्युक देवता यम द्वारा शाशित होइत अछि। यम एकटा मृतात्माकेँ पृथ्वीसँ पितृलोक लेने जाइत छथि। मान्यतानुसार जखन अगिला पीढ़ीक लोक दिवंगत होइत छथि त’ पहिल पीढ़ी स्वर्गमे जाइत छथि आ भगवानक संग मिलि जाइत छथि, तैँ श्राद्धक प्रसाद ककरो नहिं देल जाइछ। एहि प्रकारे पितृलोकमे केवल तीन पीढ़ीक श्राद्ध संस्कार देल जाइत छनि, जाहिमे यम केर भूमिका महत्वपूर्ण होइछ।
पौराणिक कथाक अनुसार जखन महाभारतक युद्धमे महान दाता कर्णक मृत्यु भेलनि त’ हुनक आत्मा स्वर्ग गेलनि जतय हुनका भोजनक रूपमे सोना आ रत्न आदि परसल गेलनि, हँलांकि कर्णकेँ खाद्य सामग्रीक आवश्यकता छलनि। ओ इन्द्रसँ एकर कारण पुछलनि तखन उत्तर भेटलनि जे जीवन भरि सोना दान देने रहलाक कारणेँ एना भेल अहाँ श्राद्घमे पूर्वजक लेल अन्नदान नहिं केने छी। कर्णक प्रतिउत्तर छलनि जे ओ अपन पूर्वजसँ अनिभिज्ञ छला तैँ एहन नहिं क’सकला। एकर बाद कर्णकेँ पन्द्रह दिनक अवधि लेल धरतीपर एबाक अनुमति भेटलनि ताकि ओ श्राद्ध क’ सकथि आ अपन पूर्वजक स्मृतिमे भोजन आ जल दान क’ सकथि। एही कालकेँ आब पितृपक्षक नामसँ जानल जाइछ।
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*लेखक-:*
*©अखिलेश कुमार झा*