कथा प्रारंभ
#MNN24X7 रतनपुर के किनारे बसी रोशनपुर की बस्ती हमेशा से शांत रही थी—मानो समय वहाँ धीमी चाल से चलता हो।घटना के दिन सुबह के पाँच बजने से पहले ही गाँव हल्की सफ़ेद धुंध में डूब चुका था। फसलों पर ओस की बूंदें ऐसे चमक रही थीं, जैसे प्रकृति ने किसी अनहोनी को ढक कर रखा हो।
इन्हीं खेतों की पगडंडी से बौआ झा रोज़ की तरह उस दिन भीअपने धान के खेत तक पहुँचे। बूढ़ी आँखें, हाथ में टॉर्च, और चेहरे पर खेती का पुराना अनुभव—पर फिर भी उस सुबह जो हुआ, उसके लिए कोई भी तैयार नहीं था।
प्रत्येक दिन की तरह जब वह मिट्टी की नमी देखने के लिए झुके, तो उनकी उंगलियों में एक ठंडक सी महसूस हुई। उन्होंने देखा—क़रीब दो-तीन क़दम दूर कुछ चमक रहा था। पहले तो उन्होंने सोचा कोई प्लास्टिक फेंक गया होगा, मगर जब नज़दीक पहुँचे तो पाया कि वो एक मोबाइल की टूटी स्क्रीन थी।
जिस स्क्रीन पर अभी भी एक अधूरा मैसेज झिलमिला रहा था। जिसे बौआ झा की आंखें समझ नहीं पाईं। मगर जिस चीज को उन्होंने देखा वो तो जैसे उनके पैरों को ज़मीन से बाँध गया— धान के बीचोंबीच एक किशोर का शव पड़ा था।
चेहरा पीला, होंठ नीले, और गर्दन पर दुपट्टे से बने गहरे निशान। मानो हत्या नहीं… किसी का दबी हुई नफ़रत का विस्फोट सामने दिख रहा हो।
अचानक ही बौआ झा की चीख गलियों में दौड़ी और पूरा गाँव खेतों की ओर उमड़ पड़ा। चीखें, फुसफुसाहटें, डर और शक—हर तरफ़ फैल गया।इस बीच किसी ने पुलिस को फोन लगाया और थोड़ी ही देर में इंस्पेक्टर भाष्कर घटनास्थल पर पहुंच गए।
भाष्कर ने भीड़ को चुप कराया।
कोहरे में उनका चेहरा किसी पत्थर की तरह शांत था—मगर आँखें सब देख रही थीं।
उन्होंने शव के पास घुटनों के बल बैठ कर एक-एक चीज़ को ध्यान से देखा—
टूटा फोन, दुपट्टा, एक आईडी कार्ड, धान के पौधों पर टूटी बिंदी की एक लाल बूँद…
और मिट्टी में आधे दबे जूते के निशान।
भाष्कर ने धीमे से कहा,
“यह हत्या आवेश में हुई है। और जिसने भी की है… वह मृतक को बेहद अच्छी तरह से जानता था।”
भाष्कर सोच में पड़ गया। आखिर मामला है क्या। उन्होंने पुलिस टीम से घटनास्थल की अच्छी तरह से जांच करने के बाद सबूत जमा करने के लिए कहा। उसके बाद उन्होंने गांव के कुछ लोगों को पूछताछ करने के लिए बुलाया। गाँव वालों से सवाल पूछते हुए जब पुलिस मृतक के परिजनों के पास पहुँची, तो परिजनों ने बताया कि बीते कुछ दिनों से उसका किसी किशोर से तीखा विवाद चल रहा था—किसी लड़की के कारण। जो की सोशलमीडिया के माध्यम से उन युवकों से जुड़ी थी।
लड़की…
सोशल मीडिया…
ईर्ष्या…
भाष्कर की तत्काल समझ में सारी बात आ गयी अब हत्या का सूत्र वहीं से निकलेगा।
—
सोमवार की सुबह पुलिस ने रतनपुरा की उन पुरानी गलीयों में छापा मारा, जहाँ आधे गिरे हुए घरों में अक्सर लड़के छुप जाया करते थे। उन्ही मकानों में
एक जर्जर कमरे में तीन युवक नशे की हालत में मिले। पूछने पर नाम पता चला —सुंदर, रिंकू और राकी।
कमरा धुएँ और पसीने की बदबू से भरा था।मगर भाष्कर की नज़र सीधे राकी की पैंट पर अटक गई— उसी कच्ची मिट्टी के दाग, जो धान के खेतों से आ सकते थे।
घर की तलाशी के दौरान वही दुपट्टा मिला—खून और मिट्टी से सना। सुंदर के जैकेट की जेब से मृतक के फोन का कवर भी बरामद हुआ। अब सच छुप नहीं सकता था। सभी सबूत सामने आ चुके थे।
—
तीनों को थाने लाया गया।
शुरुआत में सब चुप थे। मगर….
फिर… पुलिस की कड़ाई में रिंकू काँपने लगा।
उसकी आवाज़ टूट चुकी थी—
“हमने नहीं मारा साहब…”
अब वो बोलता चला गया –
उसने कहा था…” उसी ने सब प्लान किया था…”
इंस्पेक्टर भाष्कर ने भौंहें सिकोड़ीं फिर कड़क कर बोला—
“कौन है वो? नाम बोल।”
“वही किशोर… वही जो लड़की से बात करता था…उसने कांपते हुए कहा – उसे लगा लड़का उसकी गर्लफ्रेंड से चैट करता है वो… उसे छीन लेगा…ऐसा लगता था उसको”
भाष्कर ने महसूस किया कि अब वह अब सच से बस कुछ ही कदम दूर है।
—
किशोर को हिरासत में ले लिया गया। अब वो भाष्कर के सामने खड़ा था। जैसे बाघ के सामने कोई मेमना खड़ा हो। मगर एकदम चुप— जैसे कोई पत्थर बोलने से इनकार कर रहा हो।
इसके बावजूद अब भी भाष्कर की आंखों में वही आत्मविश्वास था,हर हाल में युद्ध जीत लेने का संकल्प।उसने मेज पर एक छोटा सा दस्तावेज़ रखा और धीरे से उसके कान में कहा—
“तू नाबालिग है—सज़ा हल्की हो सकती है।
लेकिन अगर तू झूठ बोलेगा…
तो तू, और तेरे तीन दोस्त, पूरी ज़िंदगी जेल में गलोगे।”
भाष्कर के उस एक वाक्य ने उसके दिल की दीवारों को तोड़ कर रख दिया। वह अचानक से फफक फफक कर रोने लगा। और उसने ऐसे बोलना शुरू कर दिया जैसे वो कोई आदमी नही टेप रिकार्डर हो –
“उस रात… उसने मेरे सामने उससे बात की थी…
वही लड़की… वही लड़की…”
वह अचानक अजीब तरीके से हँसने लगा—
मानो वो अपनी ही हरकतों को सच मानने से डर रहा हो।
“मैं सह नहीं पाया…
उसने मेरा मज़ाक उड़ाया…
मैंने उसे बुलाया…
दुपट्टा गर्दन में डाला…
और… बस…”
उसकी हँसी में कोई पछतावा नहीं था—
बस था तो जला हुआ घमंड और टूटे हुए प्रेम का ज़हर।
—
मामले की जांच परी हो जाने के बाद चारों आरोपियों को जेल भेज दिया गया। रोशनपुर की बस्ती फिर शांत होने लगी—
मगर कोई था जो शांत नहीं था? वो था इंस्पेक्टर भाष्कर के भीतर की हलचल जो उस मामले को लेकर अब भी बाकी थी।
वह देर रात थाने की कुर्सी पर बैठे सोचते रहे—
कभी प्यार त्याग था, बलिदान था।
आज प्यार स्वामित्व बन गया है।
“अगर तुम मेरे नहीं… तो किसी के भी नहीं”
यह वाक्य आज के युवाओं का नया हथियार बन चुका है।
उन्होंने धीरे से कहा— “अपराधी दुपट्टा या कोई… हथियार नहीं था…
अपराधी वो ईर्ष्या थी… जिसने एक नाबालिग के हाथों अपने दोस्त की जान ले ली। उसके खातिर जिसके लायक वो था ही नहीं। ”
धान के खेत में गिरी ओस सूख चुकी थी—
पर रोशनपुर के दिल पर लगे ज़ख्म शायद कभी नहीं सूखेंगे।
