कथा प्रारंभ

#MNN24X7 ई कथा बहुत पुरान अछि। मिथिला मं एकटा छोट गाम छल, नाम छलै— मड़हपुर, ओकरे चौक पर कात में पुरना बड़क गाछ के छाहरि में एकटा भांगक दुकान रहए। नाम छलए — “बमबम भांग भंडार”।

दुकान’क मालिक बमबम बाबा पचपन बरखक देहाती व्यक्ति छलाह — माथ पर उजरा गमछा, आँखिमे चमक, आ बोलीमे अलगे रस।ओ कहैत छलाह — “भांग सगरो दुखक औषधि छी —तनकौ, मनकौ आ जनकौ।”

आगू बमबम बाबा कहैत छलाह— “एक तऽ मैथिल निसा नै करै आ जाहि दिन करै ओ भांग छोड़ि दोसर निसा केलक, ओहि दिन सं सच्चाई छोड़ि देलक।” विद्यापति बाबा क देखू राजा क दरबार में रहितहुँ एकरा नहि छोडलनि। महादेव सेहो आएल छलाह हुनका घर। “बाबा क बूटीक छियनि ई” (ई सबटा गप्प बाबा कहथि तऽ हास्य मे, मुदा गंभीरता स)।

गामक बुजुर्ग, किसान, बेरोजगार नौजवान, आ एत तक कि मुखियाजी सेहो, हुनकर दुकान पर आबैत छलाह। एत आन कौनो कथा नहि, बस लऽ दऽ के राजनीति पर बहस; आ आन कौनो खबर नहि, त गीत-संगीत पर चर्चा।

बस यैह सब रास रंग छल एतुक्का। संगहि एकटा रेडियो सेहो राखल रहैत छल हुनका लग। जाहि पर मैथिली गीत-संगीत सब आ स्थानीय समाद सेहो भेट जाइत छल।

एक बेर गाममे चुनाव आयल। उम्मीदवार सब चारू कात घूमए लागलाह — पोस्टर, झंडा, शपत।
मुदा बमबम बाबा के दुकानक आगू सदिखन एकहि टा बोर्ड लागल रहैत छल — “एतय भांग संग बुद्धि मुफ्त!”

इ देखि सबटा उम्मीदवार ओहि दुकान पर पहुँचए लागल।
केयो कहए — “बमबम बाबा, हमर पार्टी जीतल त अहाँक दुकानक छज्जा नबका बनवायब।”
दोसर कहए — “हम त भांगक सर्टिफिकेट द’ देब — ‘देशभक्त भांग’।”

बमबम बाबा हँसैत कहलथि — “हमरा राजनीति सँ कनीको मतलब नहि, हमरा त बस गामक चैन चाही।”

एक दिन सहरक एगो अफसर गाम आयल छलाह। ओ देखलनि — लोक सब भांग खा रहल अछि, हँसि रहल अछि,
आ झगड़ा एको गोटे क नहि भ रहल अछि। ई देखि अफसर पुछलक — “एतय एतेक शांति के रहस्य की अछि?”
मुखियाजी हंसैतहंसैत बजलाह — “साहब,ई सबटा भांगक दुकानके कमाल अछि।”

अफसर सोचलक — “एहेन दुकान सहरमे होइत त झगड़ा घटि सकैत अछि।”
बमबम बाबा के ओ एकटा कागज द’ कहल — “इ लाइसेंस लिय आ एकर नियम पूर्वक चलाउ।”

वर्ष बीतल। बमबम बाबा चलि गेलाह। रहि गेल बस ओ स्थान। जतय गामक लोक हुनकर दुकानक स्थान पर मन्दिर बना देलक — “बमबमेश्वर स्थान”।
आब ओतय भांग नहि भेटैत अछि, मुदा लोक सब सं सुनबा मे आबैत अछि —
“जे कियो बमबमेश्वर स्थान पर जल अर्पण करए छथि, हुनका भांगक खएबाक जरूरत नहि। हुनकर मोनमें नशा जागि जाइ छै। आ ओ कहियो कोनो निसास नहि करैत छथि”

कहबाक तात्पर्य यैह जे:

बमबम बाबा के भांगक दुकान बस नशा करबाक ठौर नहि छल —ओ गामक एकता, अपनत्व आ हँसीक ठौर छल।
कहानीकार यैह कहैत अछि जे— असल नशा “भांग” नहि, “भोलापन” अछि। जे ककरो मोहित क सकैत अछि।

लक्ष्मी झा