मुख्य पात्र:

अमन(20 वर्ष) – जिज्ञासु और संवेदनशील युवक।

रमन (22 वर्ष) – अमन का चचेरा भाई, बिजनेस में हाथ बँटाने वाला

राजू – परिवार का पुराना ड्राइवर, अनुभवी और समझदार

अजनबी (19 वर्ष) – रहस्यमयी युवती, जो अचानक उनके रास्ते में आई और सबकुछ बदल गया।

ई-रिक्शा वाला- 25वर्ष गले में चेन, साफ सुथरा कपडा।

कथा प्रारम्भ

रविवार की ठंडी सुबह थी। अमन और रमण, राजू के साथ चौक की ओर निकले — उनको अपने सौंदर्य प्रसाधन की दुकान के लिए नया सामान लेना था।
राजू ने हँसते हुए कहा —
“साहब, आज जल्दी लौट आइएगा। शाम को चौक से मंदिर तक बहुत ट्रैफिक रहता है।”
अमन ने जवाब दिया —
“हाँ भाई, बस थोड़ा काम है, फिर लौट चलेंगे।”

बाजार पहुचते ही राजू ने गाड़ी वही पार्किंग में खड़ी की।उसके बाद दोनों बाजार की ओर निकल पड़े।दिनभर खरीदारी के बाद शाम तक थकान छा गई थी।शाम करीब पाँच बजकर चालीस मिनट पर जब तीनों चौक की पार्किंग के पास पहुँचे,

तभी अमन को कुछ याद आया। वो बोला —
“भैया, मंदिर के पास नई दुकान खुली है, वहाँ से परफ्यूम लेना है।”
उनकी बात सुनकर राजू ने मोबाइल में ट्रैफिक की स्थिति को देखा और अचानक बोल पड़ा-
“साहब, वहाँ का रास्ता बंद है, पुलिस ने बैरिकेड लगा दी है। कल चले जाइएगा।”

मगर रमन हडबडी में था वह बोला — “ अरे बस पाँच मिनट लगेंगे,हम वहां से रिक्शा ले लेंगे।”
राजू मन मसोसकर रह गया। उसने जबाब में सिर हिलाया — “ठीक है, जल्दी लौट आइए।”

मदिर के पास पहुचते-पहुंचते धुंध बढ़ने लगी थी। दोनों भाई एक ई-रिक्शा की ओर बढे। ई-रिक्शा वला अच्छे घर का लग रहा था, गले में चेन, साफ सुथरे कपड़े। उन्होंने उस से भाड़ा पूछा और ई-रिक्शा में बैठे ही थे कि उनकी नजर कोने पर खड़ी एक युवती पर गयी। उसके हाथ में एक मोबाइल था जिस पर वो कुछ लिख या पढ रही थी।— काले शॉल और हरे दुपट्टे में लिपटी, कांपती हुई।

एकाएक उसकी नजर ई-रिक्शा की तरफ गयी और उसने उसे रूकने का इशारा करते हुए बोली— “भाई साहब, मुझे अगले चौराहे तक छोड़ दीजिए, बहुत ठंड है… अकेले जा नहीं पा रही।” ई-रिक्शा वाले ने गाड़ी रोकते हुए उसको बैठने का इशारा किया।

पीछे की सीट पर बैठा अमन सीट पर जगह देते हुए बोल पड़ा- “आ जाइए बहन, कोई बात नहीं। हमें भी यहीं बगल में उतरना है। हमारी गाड़ी भी वही खड़ी है।”
उस लड़की का चेहरा था तो बड़ा सुन्दर मगर सख्त, उसने धीरे से जबाब दिया-
रिश्तों में जल्दबाजी कभी नुकसान तो कभी फायदा भी दे जाती है।
उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था, जैसे हर शब्द अपने भीतर कोई रहस्य छुपाए हुए हो।

रमन ने उसकी बातों को पूरी तरह से सुना भी नहीं और मुस्कुराते हुए पूछा — “दीदी आप यहीं की हैं?”
“हाँ… उसने धीमे स्वर में जवाब दिया — यहीं पर रह रही थी… लेकिन अब जा रही हूँ…अपने सफर पे”

अब दोनों भाई एक दूसरे का चेहरा देखने लगे और ऐसा चेहरा बनाया जैसे उनकी समझ में कुछ आया ही नहीं। अब ई-रिक्शा उस भीड़ भरी सड़क पर झटकों का आनंद लेते हुए धीरे धीरे बढ चला।

कुछ ही देर बाद ई-रिक्शा जैसे ही अगले चौराहे के पास पहुँचा, लड़की बोल पड़ी —“बस यहीं रोक दीजिए।” मेरा सफर यही तक था। अमन और रमन भी वही उतर गए, क्योंकि राजू भी उनकी गाड़ी वही पास में ले आया था।

ई-रिक्शा वाले को पैसे देने के बाद एक बार फिर उन्होंने उस लड़की का अभिवादन किया और आहिस्ते से पूछा-
कोई दिक्कत हो तो निःसंकोच कह सकती हो। रात अधिक हो गयी है अभी रूकना हो तो मेरा ड्राइवर तुमको होटल या तुम्हारे पहचान वाले के घर पहुंचा सकता है।

उसने अपनी बुझी हुई नजरों को हल्के से ऊपर उठाया और धीरे से कहा —
“कभी-कभी लौटना भी जरूरी होता है… ताकि अधूरे काम पूरे हो सकें।”

अमन और रमन उसकी बातों को सुनकर अपनी गाड़ी की ओर घूमे और सड़क को बस पार ही किया था, तभी उनके कानों में भयंकर धमाके का स्वर गूंजा।
चारों तरफ़ धुआँ ही धुआं, ई-रिक्शा के तो चीथड़े ही उड़ चुके थे। अब बची थी तो बस भगदड़, और चीखें।
लोग बदहवास भाग रहे थे,कहीं दूर से पुलिस सायरन की आवाज भी इधर आती सुनाई दे रही थी।

घर पहुचते ही बदहवास से तीनों धप्प से सोफा पर लगभग गिर पडे। लगभग एक घंटे बाद अमन ने जब टेलीविजन का स्विच ऑन किया। उन्होंने देखा हेडलाइन आ रहा था-
“चौराहे के पास जबरदस्त विस्फोट, जान-माल का नुकसान।”
वो दौड़ते हुए वहाँ पहुँचे।”

कैमरा जब सड़क की ओर मुडा उस लड़की का मोबाइल और ई-रिक्शा वाले की चेन पड़ी थी। मोबाइल की स्क्रीन टूटी थी, मगर सुरक्षित दिख रहा था-उसके वालपेपर पर एक धुंधली सी तस्वीर दिख रही है, उसी हरे दुपट्टे वाली लड़की की मुस्कुराती तस्वीर।

उसी समय टेलीविजन स्क्रीन पर रिपोर्टर को जबाब दे रहे एक पुलिस वाले का चेहरा नजर आया।—
“अभी जांच शुरू ही हुई है। जैसे ही कुछ जानकारी सामने आयेगी। हम आपको बताएंगे।”

तीन दिन बाद पुलिस का बयान आया —“विस्फोट का कारण अब तक अज्ञात है। मगर कुछ गवाहों के अनुसार धमाके से कुछ पल पहले एक लड़की को ई-रिक्शा से उतरते देखा गया था।”

आज भी जब हम साथ बैठते हैं. पुरानी यादें ताजा हो जाती है। राजू अब भी अपनी होशियारी याद दिलाते हुए कहता है—
“अगर आपलोग मेरी बात मान लेते और रुक जाते,तो शायद ये सब नहीं होता।

मगर हम सोचते थे कि जो लिखा होता है, वो होकर रहता है। किस्मत और मौत के बीच कभी-कभी बस पाँच मिनट का ही फासला होता है।मगर उसने रिश्ते को लेकर ऐसा क्यों कहा था? ये हम अब भी सोच रहे थे। क्या हमारा उनको बहन कहना ही हमारे जान बचने का कारण बना। उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि-रिश्तों में जल्दबाजी कभी नुकसान तो कभी फायदा भी दे जाती है।” कौन थी वो। किसने किया ये सब?

सोहनमा की सर्द हवा में आज भी शांति गेट के पास लोगों को कहते सुन सकते हैं —
“रात को अभी भी कभी-कभी वो हरा दुपट्टा हवा में उड़ता दिख जाता है…”