●भारतीय संविधान ने तय किया कि रंक का बेटा भी बन सकता है राजा अगर वो सक्षम व योग्य है:- उप-परीक्षा नियंत्रक, डॉ. मनोज कुमार।
●कुछ तो बात है बाबा साहब के द्वारा लिखित संविधान में, तब तो आज हिंदुस्तान विश्वगुरु बनने की कतार में है अग्रसर, बोले उप-परीक्षा नियंत्रक।
●15 अगस्त भारत के आजादी के लिये, 26 जनवरी देश में गणतंत्र के स्थापना के लिये व 26 नवंबर देश को अपना संविधान मिलने के लिये हिंदुस्तान के सबसे पावन दिनों में है शुमार:- डॉ. मुकुल बिहारी वर्मा
●विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग में मनाया गया संविधान दिवस।
#MNN@24X7 लनामिवि दरभंगा, आज दिनांक 26 नवंबर 2023 को विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग में विभाग के वरीय शिक्षक डॉ. मुकुल बिहारी वर्मा की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वावधान में संविधान दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
बतौर सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. प्रभाष चंद्र मिश्रा ने कहा कि कोई भी देश या संस्था कानून से चलता है। इस कड़ी में लोकतंत्र व संविधान का अपना खासा महत्व है। बिना लोकतंत्र व संविधान के आप सभ्य व मर्यादित देशों की सूची में शुमार नहीं हो सकते हैं। अब करीब-करीब दुनिया के सभी देशों ने संविधान को स्वीकार किया है। अगर किसी भी देश में संविधान न हो तो वहां वजीर से लेकर प्यादा तक सब निरंकुश हो जाता है। मजबूत लोग, कमजोर व समाज के अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों को दबा देंगे। जिससे मानवाधिकार खतरे में आ जाता है। संविधान सभी मनुष्यों को समानता व बराबरी के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है। इसीलिए सिर्फ राजनीति विज्ञान व विधि के छात्रों को ही नहीं बल्कि सभी विषयों के विद्यार्थियों के साथ-साथ देश के हर नागरिकों को अपने संविधान की अनिवार्य रूप से जानकारी होनी चाहिये और इसे पढ़ना चाहिये। संविधान सिर्फ संसद, राजनेताओं व अधिवक्ताओं तक ही सीमित नहीं होना चाहिये। इसके लिये आम जनता को भी आगे आना चाहिये और संविधान को ज्यादा से ज्यादा जानने के प्रति जागरूकता लाना चाहिये। इससे देश को सशक्त होने में बल मिलता है। आज ही के दिन 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को बाबा साहब ने देश को समर्पित किया था जो कि 26 जनवरी 1950 को पूरे देश में लागू हुआ। हम अपनी ओर से इस अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई व शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं।
इस कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि मिथिला विश्वविद्यालय के उप-परीक्षा नियंत्रक(तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा) सह विभाग के युवा प्राध्यापक डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता के विकास के क्रम में आज तक जितने तंत्र हुए उसमें लोकतंत्र का अहम व शीर्ष स्थान है। लोकतंत्र शासन प्रणाली का सबसे सुगम व पारदर्शी तंत्र है। इस तंत्र में समाज के अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों तक विकास व समानता की किरण पहुंचती है। राजतंत्र में यह तय होता था कि राजा का बेटा ही राजा होगा भले वो अयोग्य व अक्षम ही क्यों न हो लेकिन लोकतंत्र में भारतीय संविधान ने इसे मिथक को तोड़कर यह साबित करता आ रहा है कि अब रंक का समाज के अंतिम पंक्ति में बैठा बेटा भी राजा बन सकता है अगर वह सक्षम और योग्य है। आजादी पूर्व देश के व्यापक क्षेत्र में राजतंत्र था। अंग्रेजी शासन के सदियों के कैद से मुक्त होने के बाद भारत ने अपने नयी उड़ान के लिये उस सभी प्रणाली को अपनाने का काम किया जिससे कि हिंदुस्तान के लोकतंत्र को विश्व पटल पर शीर्ष स्थान मिले। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत ने लोकतंत्र में आस्था दिखाते हुए संविधान लागू करने का निर्णय लिया। संविधान मतलब कि ऐसा विधान जो सभी पर समान रूप से लागू होता हो और जिसके दायरे में वजीर से लेकर प्यादा तक को समानता व बराबरी का हक मिले। इसी क्रम में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन के अथक प्रयास के बाद भारत ने 26 नवंबर 1949 को विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान लांच कर देश को समर्पित कर दिया। उस समय बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर नहीं होते तो हिंदुस्तान में संविधान की कल्पना करना मुश्किल था। कुछ तो बात है बाबा साहब के द्वारा लिखित संविधान में, तब तो आज हिंदुस्तान विश्वगुरु बनने की कतार में अग्रसर है। आज पूरे विश्व के किसी भी कोने में चले जाएं। आपको सब कुछ मिल जायेगा लेकिन दूसरा हिंदुस्तान नहीं मिलेगा क्योंकि विविधताओं में एकता भारतीय संविधान व लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती है। हिंदुस्तान सर्वधर्म सम्भाव में विश्वास रखने वाला विश्व का अनूठा व एकमात्र धर्मनिरपेक्ष देश है। जहां सर्वधर्म का सम्मान करते हुए देश का सबसे पवित्र व हर धर्म का प्राथमिक ग्रन्थ संविधान को माना गया है और लोकतंत्र की पारदर्शी शासनप्रणाली अपनाई गई है जिसमें शासन कौन करेगा व शासक कौन होगा? यह जनता के वोटों के आधार पर तय होता है।
संवैधानिक मूल्यों के प्रति भारत के विविध धर्मों व पंथों में विश्वास रखनेवाले 140 करोड़ भारतीयों में सम्मान की भावना व कानून के प्रति जागरूकता लाने के लिये पीएम मोदी ने वर्ष 2015 में संविधान निर्माता सह संविधान जनक बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के 125 वीं जयंती के अवसर पर इस दिन को संविधान दिवस के रूप में अपनाने का निर्णय लिया जिस पर सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय ने अपनी मुहर लगा दी। साथ ही आज का दिन इस मामले में और भी पावन दिन माना जाता है क्योंकि राष्ट्रीय कानून दिवस भी आज ही मनाया जा रहा है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विभाग के वरीय शिक्षक डॉ. मुकुल बिहारी वर्मा ने भारतीय संविधान के विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि आज हर हिंदुस्तानी को बाबा साहब द्वारा निर्मित इस संविधान पर गर्व है। हिंदुस्तान के पावन दिनों में 15 अगस्त भारत के आजादी के लिये, 26 जनवरी देश में गणतंत्र के स्थापना के लिये व 26 नवंबर देश को अपना संविधान मिलने के लिये सबसे पावन दिनों में शुमार है। कुछ विद्यार्थी और शोधार्थी का बराबर यह जिज्ञासा रहता है कि जब संविधान 26 नवंबर 1949 को तैयार हुई तो इसे क्यों 2 महीने बाद 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया? तो इसका कारण यह है कि 19 दिसंबर 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पंडित नेहरू को कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना गया और पूर्ण स्वराज की मांग की गई और इसी अधिवेशन में यह फैसला लिया गया कि जनवरी के आखिरी रविवार को देश का स्वतंत्रता दिवस मनाया जायेगा। संयोग से यह तारीख 26 जनवरी 1930 निकली। इसीलिए इस दिन लाहौर के रावी नदी के किनारे पंडित नेहरू ने तिरंगा झंडा फहराया। इसीलिए इस दिन को पावन दिन माना गया। इसीलिए जब 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान तैयार हुआ तो उसे आगामी 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया और तब से 26 जनवरी को हमलोग गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। संविधान की असली प्रति प्रेम बिहारी नारायण रायजदा के द्वारा कैलीग्राफी के जरिये इटैलिक अक्षरों में लिखी गयी है। इसके हर पन्ने को कोलकाता के शांतिनिकेतन के दो कलाकार राममनोहर सिन्हा व नंदलाल बोस ने सजाया था। इस हस्तलिखित संविधान को आज भी देश के संसद के पुस्तकालय में हीलियम में रखा गया है ताकि ये खराब न हो सके। 251 पृष्ठों का यह संविधान 16 इंच चौड़ी, 22 इंच लंबे चर्मपत्र सीटों पर पांडुलिपि में लिखी गयी है। इसकी असली प्रति आज भी इंग्लिश और हिंदी दो प्रमुख भाषाओं में सुरक्षित है।
संविधान दिवस के इस कार्यक्रम में मिथिला विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना समन्वयक डॉ. विनोद बैठा व महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह मेमोरियल महाविद्यालय, दरभंगा के राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम पदाधिकारी सुबोध कुमार यादव और शोध छात्र राम कृपाल ने भी शिरकत की और अपने-अपने विचार रखे।
मंच संचालन विभाग के शिक्षक रघुवीर कुमार रंजन ने और अतिथियों का स्वागत आशुतोष पांडेय जबकि धन्यवाद ज्ञापन मिथिला विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना समन्वयक डॉ. विनोद बैठा ने किया।