-बिरसा मुंडा ने वृषैथ धर्म की स्थापना की- प्रति कुलपति।

-कितने दिनों तक जिंदा रहे, यह महत्वपूर्ण नहीं है,क्या किया यह महत्वपूर्ण है – कुलसचिव डॉ घनश्याम राय।

#MNN@24X7 पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया के तत्वावधान में मंगलवार को शहीद बिरसा मुंडा की जन्म जयंती कुलपति प्रोफेसर राज नाथ यादव की अध्यक्षता में सीनेट हॉल में मनाई गई। उन्होंने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि बिरसा मुंडा मात्र पच्चीस साल के अपने जीवन में लोकप्रिय हो गए। बिरसा ने आदिवासियों को शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। उनका नारा था, रानी का शासन खत्म करो और अपना शासन स्थापित करो। स्वच्छता के लिए भी प्रेरित किया।

कुलपति ने कहा कि आदिवासियों के वीर शहीदों के जीवन और संघर्ष पर राष्ट्रीय /अंतरराष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन शीघ्र आयोजित करेंगे। उन्होंने कहा कि 2021 से भारत सरकार आज के दिन संपू्ण देश में जनजातीय गौरव दिवस मना रही है। बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज उनके जीवन काल में हीं भगवान का दर्जा दे दिया था। भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आदिवासी समाज की दशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया।

प्रति कुलपति प्रोफेसर पवन कुमार झा ने कहा कि बिरसा मुंडा अंग्रेजी शिक्षा,अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों को संगठित कर शोषण खत्म करने के लिए प्रेरित किया। उस दरम्यान भागलपुर से वर्दमान तक रेल लाइन का निर्माण किया जा रहा था। अंग्रेजों द्वारा जबरन आदिवासियों से बेगारी कराया जाता था। सूदखोरी व्यवस्था चरम पर थी।यही कारण है कि बिरसा मुंडा 1895 के दशक में आदिवासियों के नायक बन गए और ‘वृषैथ धर्म’ की शुरुआत किया। उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा को उनके हीं एक साथी ने महज पांच सौ रूपये की लालच में पकड़वा दिया। अध्यक्ष, छात्र कल्याण प्रोफेसर मगरूर आलम ने कहा कि वीर शहीद नायकों से प्रेरणा लेने की जरूरत है,जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कुलसचिव डॉ घनश्याम राय ने कहा कि आप कितने दिनों तक जिंदा रहते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि आपने क्या किया। बिरसा मुंडा अपने पच्चीस साल के जीवन में नायक बन गए और उनके अनुयायिओं ने उन्हें भगवान का दर्जा दे दिए।

शिक्षकेतर कर्मचारी सियाशरण कुमार मंडल ने कविता के माध्यम से कहा कि,वीर स्वंत्रता सेनानी और देशभक्त बलवान थे,

बिरसा मुंडा कर्मी सुगना का राष्ट्ररत्न संतान थे,
अंग्रेजो से पंगा लिया और आदिवासी के शान थे,
अदम्य साहस, ओजपूर्ण वे राष्ट्रभक्त महान थे….
यातनाएं मिली, फिर भी देश के लिए कुर्बान थे,
क्रांतिकारी, धनुषधारी वे जनजाति के भगवान थे,
माथे तिलक, तुलसी पूजन कर्म पारायण राम थे,
मुल्क लड़ाई में राष्ट्र प्रहरी आन बान और शान थे….
एक क्रांति गूंज उठा था,
जंगल में, शमशान में….
देखो भारत दौड़ रहा है,
संस्कृति के मैदान में….
हाथों में कुदाल, कुल्हारी,
दबिया,खुरपी जन कल्याण में….
देखो भारत दौड़ रहा है,
संस्कृति के मैदान में…..
कट गए लाखों सिर,
देशभक्ति में, बलिदान में….
देखो भारत दौड़ रहा है,
संस्कृति के मैदान में….
बिरसा मुंडा दोहन, शोषण के खिलाफ़ जुटे संघर्ष अभियान में….देखो भारत दौड़ रहा है,
संस्कृति के मैदान में….
अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ़,
क्रांति स्वर गूंजे, हर कान में….
देखो भारत दौड़ रहा है,
संस्कृति के मैदान में…..

प्रारंभ में दीप प्रज्वलन के साथ साथ बिरसा मुंडा की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्दांजलि अर्पित की गई। पुष्प गुच्छ देकर मंचासीन पदाधिकारियों को सम्मानित किया गया। जयंती के अवसर पर कुलपति, प्रतिकुलपति,कुलसचिव, डीएसडब्ल्यू, कुलानुशासक द्वारा पेड़ के पौधे लगाए गए।

कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ रामदयाल पासवान ने स्वागत भाषण के साथ साथ मंच संचालन का कार्य किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण,कर्मचारीगण, छात्र एवं छात्राएं उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन डॉ आर डी पासवान ने दिया। राष्ट्रीय गीत के साथ कुलपति के आदेश से कार्यक्रम स्थगित किया गया।