वाराणसी।देवाधिदेव महादेव का सबसे प्रिय सावन महीना होता है।वहीं भक्तों के लिए भी सावन बेहद महत्वपूर्ण होता है।महाशिवरात्रि और सावन में पूजा कर देवाधिदेव महादेव को जल्द प्रसन्न किया जा सकता है।आध्यात्मिक नगरी काशी की बात तो और भी निराली है। यहां कण-कण में देवाधिदेव महादेव हैं और इनकी निवासस्‍थली भी कही जाता है।यही कारण है कि इसे अविमुक्‍त क्षेत्र कहते हैं,लेकिन क्या आप जानते हैं काशी में देवाधिदेव महादेव की ससुराल भी है।पूरे सावन महीने खुद यहां शिवलिंग स्‍वरूप में निवास करते हैं।

आध्यात्मिक नगरी काशी में देवाधिदेव महादेव कई रूप में मौजूद हैं,लेकिन सबसे ख़ास है भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली के पास स्थित सारंगनाथ मंदिर।कहा जाता है कि सावन में यदि एक बार सारंगनाथ के दर्शन हो जाए तो काशी विश्वनाथ के दर्शन के बराबर फल मिलता है।कहते हैं कि सारंगनाथ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम सारनाथ पड़ा।पहले इस क्षेत्र को ऋषिपतन मृगदाव कहते थे।इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंग मौजूद हैं और ये एक छोटा तो एक बड़ा है।मान्यता है कि जो कोई चर्मरोग से ग्रसित है वह यहां गोंद चढ़ाता है तो उसे इससे मुक्ति मिल जाती है।गर्भगृह में दो शिवलिंग है। एक शिवलिंग आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया है। मान्यता है कि एक देवाधिदेव महादेव है और एक उनके साले सारंगदेव महाराज है।

*जानें सारंग ऋषि के बारे में*

आपको बता दें कि सारंग ऋषि दक्ष प्रजापति के पुत्र थे। देवाधिदेव महादेव विवाह के समय तप में लीन थे। सारंग ऋषि दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री सती का विवाह देवाधिदेव महादेव के साथ किया तो उस समय सतीश के भाई सारंग ऋषि मौजूद नहीं थे।सारंग ऋषि तपस्या के लिए कहीं अन्‍यत्र ग‌ए हुए थे। तपस्या के बाद जब सारंग ऋषि अपने घर वापस पहुंचे तो उन्हें पता चला की उनके पिता ने उनकी बहन का विवाह कैलाश पर रहने वाले एक औघड़ से कर दिया है।

औघड़ से बहन के विवाह की बात सुनकर दु:खी हुए सारंग ऋषि बहुत परेशान हुए।वो सोचने लगे की मेरी बहन का विवाह एक भस्म पोतने वाले से हो गया है। सारंग ऋषि ने पता किया की विलुप्त नगरी काशी में उनकी बहन सती और उनके पति विचरण कर रहे हैं।सारंग ऋषि बहुत ही ज्यादा धन लेकर अपनी बहन से मिलने पहुंचे।रस्ते में जहां आज मंदिर है वहीं थकान की वजह से सारंग ऋषि को नींद आ गयी।नींद में स्वप्न में देखा की काशी नगरी एक स्‍वर्ण नगरी है।नींद खुलने के बाद सारंग ऋषि को बहुत शर्मिंदगी हुई की उन्होंने अपने बहनोई को लेकर क्‍या-क्‍या सोच लिया था।

इसके बाद सारंग ऋषि प्रण लिया की अब यहीं पर वो बाबा विश्वनाथ की तपस्या करेंगे उसके बाद ही वो अपनी बहन सती से मिलेंगे।इसी स्थान पर सारंग ऋषि ने बाबा विश्वनाथ की तपस्या शुरु की और तपस्या करते-करते उनके पूरे शरीर से लावे की तरह गोंद निकलने लगी।इसके बाद तपस्या जारी रखी।अंत में सारंग ऋषि तपस्या से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने सती के साथ उन्हें दर्शन दिए। देवाधिदेव महादेव ने जब सारंग ऋषि से इस जगह से चलने को कहा तो उन्होंने कहा कि अब हम यहां से नहीं जाना चाहते।यह जगह संसार में सबसे अच्छी जगह है।इस पर देवाधिदेव महादेव ने सारंग ऋषि को आशीर्वाद देते हुए कहा कि भाविष्‍य में तुम सारंगनाथ के नाम से जाने जाओगे और कलयुग में तुम्हे गोंद चढाने की परंपरा रहेगी।
(सौ स्वराज सवेरा)