महिलाएँ न देवी होना चाहती हैं न किसी की पैरों की धूल,वह केवल मनुष्य होना चाहती है।21वीं सदी में भी साइंस, टैक्नॉलॉजी एवं मैथेमेटिक्स में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। यह काफी गंभीर विषय है। आरबीएस कॉलेज, तेयाय,बेगूसराय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिला सशक्तिकरणः दिशा और दशा विषयक सेमिनार में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा की प्रति कुलपति डॉ डॉली सिन्हा ने उपर्युक्त बातें कही।उन्होंने कहा कि छात्राओं को विज्ञान पढ़ना चाहिए। मौके पर विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि महिला दिवस पर भाषण नहीं चिंतन जरुरी है। उन्होने कहा कि महिला के अधिकार के लिए संघर्ष 1908 में ही अमेरिका में शुरू हुआ। 1917 में रूस में जारशाही के दौरान रोटी और शांति के लिए महिलाओ ने संघर्ष किया।1975 से संयुक्त राष्ट्र संघ की पहलकदमी पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन होने लगा।पूर्व सासंद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा कि दहेज विरोधी अभियान को सफल बनाने के लिए महिला और पुरुष दोनों को एक साथ संघर्ष करने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि पूंजीवादी सामाजिक व्यवस्था ही दहेज का सबसे बड़ा कारण है। कार्यक्रम में एसबीएसएस कॉलेज बेगूसराय के प्राचार्य डॉ अवधेश कुमार सिंह ने महिलाओं की उपलब्धियों को बताते हुए कहा कि महिलाओं का सम्मान प्राचीन समय से होता रहा है। अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता कुन्दन कुमारी ने महिला अधिकार के कानूनी पक्ष को रखा। मौके पर पूर्व प्राचार्य प्रो अभिलाष कुमार दत्त ने कहा कि हमारी धार्मिक कथाओं से लेकर आधुनिक भारत में कई महिलाओं ने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया और इतिहास में अपनी पहचान बनायी है। मौके पर निबंध एवं भाषण प्रतियोगिता में भाग लेने वाले छात्र-छात्राओं को प्रति कुलपति ने पुरस्कृत किया। इससे पहले एनसीसी के छात्रों ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रो गाजी सलाउद्दीन ने किया ,जबकि अध्यक्षता प्राचार्य प्रो नजरुल इस्लाम ने की।