#MNN@24X7 पटना। इस बार बिहार के नाम तीन पद्मश्री पुरस्कार रहे। एक सुपर 30 के विश्व प्रसिद्ध चेहरे आनंद कुमार। बाकी दो ऐसी शख्सियतें, जिनकी चर्चा खास अवसरों पर ही होती थीं। एक हैं सुभद्रा देवी और दूसरे कपिलदेव प्रसाद। बिहार के इन दो बुजुर्ग कलाकारों को जिन कलाओं के लिए पद्मश्री सम्मान मिल रहा, वह कला भी अब पहचानी जाएगी। सुभद्रा देवी को पेपरमेसी कला के लिए, जबकि कपिलदेव प्रसाद को बावन बूटी के लिए पद्मश्री मिला है। पहली बार इन दोनों विधाओं को पद्मश्री की घोषणा से इनकी अलग तरह की पहचान विकसित होगी।
आईए जानते हैं कौन हैं सुभद्रा देवी और क्या है पेपरमेसी?
पेपरमेसी मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में प्रसिद्ध है, लेकिन सुभद्रा देवी बचपन में इस कला से वाकिफ थीं। सबसे पहले यह जानना रोचक है कि पेपरमेसी होता क्या है? दरअसल, कागज को पानी में गलाकर उसे रेशे के लुगदी के रूप में तैयार करना और फिर नीना थोथा व गोंद मिलाकर उसे पेस्ट की तरह बनाते हुए उससे कलाकृतियां तैयार करना पेपरमेसी कला है। सुभद्रा देवी दरभंगा के मनीगाछी से ब्याह कर मधुबनी के सलेमपुर पहुंचीं तो भी इस कला के माध्यम से अंकन नहीं छोड़ी। अब, जब पद्मश्री की घोषणा हुईं तो करीब 90 साल की सुभद्रा देवी दिल्ली में बेटे-बहू के पास हैं। घर से इतनी दूरी के बावजूद भी वह पेपरमेसी से दूर नहीं हुई हैं। वहां से भी इस कला के विस्तार की हर संभावना देखती हैं। बड़े मंचों तक इसे पहुंचाने की जद्दोजहद में लगी रहती हैं।
भोली-भाली सूरत और सरल स्वभाव की मालकिन सुभद्रा देवी को वर्ष 1980 में राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पेपरमेसी से मुखौटे, खिलौने, मूर्तियां, की-रिंग, पशु-पक्षी, ज्वेलरी और मॉडर्न आर्ट की कलाकृतियां बनाई जाती हैं। इसके अलावा अब प्लेट, कटोरी, ट्रे समेत काम का आइटम भी पेपरमेसी से बनता है। पेपरमेसी कलाकृतियों के आकर्षक रूप के कारण लोग इसे महंगे दामों पर भी खरीदने को तैयार रहते हैं। पहली बार इस कला को बढ़ावा देने वाले किसी कलाकार के नाम पद्मश्री की घोषणा हुई है।