आज दिनांक 12/05/2022 को कवियों के कवि शमशेर बहादुर सिंह की पुण्यतिथि के अवसर पर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में संगोष्ठी आयोजित की गयी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो० राजेन्द्र साह ने कहा कि साहित्यकारों की जयन्तियों-पुण्यतिथियों पर संगोष्ठियों के आयोजन से हम विभिन्न दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं। इससे हमारे ज्ञान का फलक विस्तार पाता है। शमशेर जीवन के गहरे एवं विस्तृत आनुभूतिक सत्य के बड़े प्रयोगशील कवि थे| एकतरफ शमशेर प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं तो दूसरी ओर वे प्रखर जनवादी कवि की श्रेणी में भी अव्वल दिखाई पड़ते हैं। वे ‘कला’ के उतने ही पक्षधर थे जितने वे कला को जीवन से जोड़े जाने के पैरोकार थे। प्रो०साह ने आगे कहा कि भाषा के धरातल पर भी उन्होंने बहुत उत्कृष्ट प्रयोग किये। शब्दों के संयोजन में वे सिद्धहस्त थे शायद इसीलिए उन्हें कवियों का कवि कहा जाता है। वे ऐसे कवि थे जिनसे नए कवियों को दिशा और प्रेरणा प्राप्त हुई।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रो० चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि वे गंगा-जमुनी तहजीब के शीर्ष कवि हैं। क्रांतिकारी तथ्य को नए शिल्प में कहने में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। प्रतीकवाद के वे अग्रणी कवि थे। शमशेर बिम्बप्रधान कवि थे। उनकी कविताओं में परिवर्तन की छटपटाहट दिखाई पड़ती है। शमशेर की मृत्यु से सबसे ज्यादा क्षति उस जनवादी कवि परम्परा की हुई जो परिवर्तन के लिए निरन्तर प्रयत्नशील थी।
डॉ० सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने इस अवसर पर कहा कि कहीं भी अगर बात बोलेगी तो शमशेर ही बोलेंगे। उन्होंने शमशेर को अपने समय का नायाब शायर कहा। वे हिंदी-उर्दू की साँझी विरासत के कवि हैं। प्रेम और इंकलाबी कवि के रूप में अगर किसी कवि का नाम सबसे पहले आएगा तो वह शमशेर का ही नाम आएगा। वे प्रयोग-प्रगतिवादी कवि हैं। शमशेर और मुक्तिबोध ने प्रयोगवादी शिल्प की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए प्रगतिवादी कविता को विस्तार दिया। मृत्यु शय्या पर रहते हुए उन्होंने ‘काल तुझसे होड़ है मेरी’ जैसी कालजयी रचना की। वे अगर ‘सप्तक’ में भी शामिल हुए हैं तो अपनी सम्पूर्ण विचारधारा के साथ शामिल हुए हैं।
डॉ० अखिलेश कुमार ने इस अवसर पर कहा कि वे प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता के कवि हैं। दूसरे सप्तक में उनकी रचनाएं सम्मिलित हैं। उन्होंने कहा कि एजरा पाउंड का प्रभाव शमशेर की रचनाओं में देखा जा सकता है।
अतिथि प्राध्यापक डॉ० शंकर कुमार ने कहा कि रचना प्रक्रिया के स्तर पर उनकी कविताओं में जितनी जटिलता है,साथ ही वे अपनी कविताओं में जितना स्पेस देते हैं वह उन्हें सभी कवियों से अलग करता है। विजयदेव नारायण शाही को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी रचनाओं के केंद्र में सौंदर्य है। वे प्रयोगधर्मिता को प्रगतिशीलता के साथ साधने वाले कवि हैं।
डॉ० ज्वाला चन्द्र चौधरी ने कहा कि शमशेर हिंदी के महान कवियों में से एक हैं और उन्हें बार-बार पढ़ा जाना चाहिए।
इस अवसर पर वरीय शोधप्रज्ञ कृष्णा अनुराग ने कहा कि वे कविता के महान साधक थे तभी तो शायद अज्ञेय जैसे महाकवि ने उन्हें ‘कवियों के कवि’ के रूप में मान्यता दी थी। आज के परिप्रेक्ष्य में शमशेर और भी प्रासंगिक हो गए हैं।
एम०ए० तृतीय छमाही के दीपक कुमार ने कहा कि न केवल काव्यों की रचना,बल्कि कई निबंधों और कहानियों की भी रचना उन्होंने की।
एम०ए० तृतीय छमाही की छात्रा स्नेहा कुमारी ने कहा कि शमशेर मूड्स के कवि हैं,विजन के नहीं। उन्होंने कहा कि नामवर जी ने कहा था कि उनके लिए सारे विशेषण कम पड़ जाते हैं। छात्र संजय कुमार ने कहा कि उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं में रचनाएं कीं। कार्यक्रम का सफल संचालन शोधप्रज्ञ समीर कुमार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन शोधप्रज्ञा शिखा सिन्हा ने किया।
12 May 2022
