#MNN@24X7 दरभंगा, कवि विद्यापति के पश्चात् मैथिली साहित्य के आकाश में चन्दा झा सर्वाधिक उज्जवल नक्षत्र हुए। चन्दा झा रचित मैथिली रामायण मैथिली साहित्य का गौरव है। यह बात बृहस्पतिवार को मैथिली साहित्य के शीर्ष पुरूष कविश्वर चन्दा झा की पुण्यतिथि पर विद्यापति सेवा संस्थान की ओर से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा। उन्होंने कहा कि चन्दा झा ने मिथिला व मैथिली साहित्य को अपने अत्युत्तम कृति से संसार में अमर कर दिया।
मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने चंदा झा कृत मैथिली भाषा रामायण की महत्ता को उद्घाटित करते हुए कहा कि उनके पूर्व मिथिला में कृष्ण काव्य की धारा ही विशेष रूप से प्रवाहमान थी। चन्दा झा पहले ऐसे कवि हुए जिन्होंने मैथिली भाषा रामायण के माध्यम से इस क्षेत्र में राम काव्य की धारा प्रवाहित की। इसकी मूल वजह थी कि तत्कालीन विशृंखलित समाज को उन्नयन की राह पर अग्रसर करने के लिए उन्हें कृष्ण से अधिक राम का चरित्र प्रेरणास्पद लगा।
मणिकांत झा ने कहा कि तुलसी के क्वचिदन्यतोपि की विशेषता चंदा झा की रामायण में भी परिलक्षित होती है। उन्होंने मिथिला भाषा रामायण की रचना के लिए वाल्मीकि रामायण, आध्यात्म रामायण,अद्भुत रामायण, प्रसन्न राघवम, हनुमन्नाटक सबका आधार लिया पर उस कृति में अनेक मौलिक उद्भावनाएं भी प्रस्तुत कर अपनी रचनाधर्मिता को उजागर किया। मिथिला के लोकाचार और यहां की संस्कृति के चित्रण तथा अहिल्या प्रसंग में यह नवीनता सहज ही देखी जा सकती है।
मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि चंदा झा ने हिंदी पट्टी की समस्त भाषाओं को पहली बार अनुवाद की महत्ता से अवगत कराया। यह उनकी विशेषता थी। विद्यापति कृत पुरुष परीक्षा का अनुवाद कर उन्होंने इस क्षेत्र में अनुवाद परंपरा का श्रीगणेश किया। हरिश्चंद्र हरित ने कहा कि कवीश्वर चन्दा झा संस्कृत, मैथिली और हिंदी तीनों भाषाओं के निष्णात पंडित थे। श्रद्धांजलि देने वालों में प्रो विजयकांत झा, विनोद कुमार झा, प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ाभाई, दुर्गा नन्द झा, आशीष चौधरी, पुरुषोत्तम वत्स, नवल किशोर झा, मणिभूषण राजू आदि शामिल थे।