वाराणसी।विश्व विख्यात आध्यात्मिक नगरी काशी की बात निराली है।गंगा घाट के किनारे अलग-अलग तरह के लोग दिखाई देते हैं,मगर रविदास घाट का नजारा कुछ और ही है। यहां हर रोज शाम 3 बजे से लेकर 7 बजे तक गरीब, शोषित, वंचित और समाज के सबसे निचले तबके के लोगों के बच्चों को पढ़या जाता है।बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा अस्सी घाट पर रहने वाली रोली सिंह ने उठाया है।रोली पिछले दो साल से रविदास घाट पर अपनी संस्था द्वारा बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देती है। मौजूदा समय में 55 बच्चे उनके संस्था से जुड़े हुए हैं।
कक्षा 10 के बच्चों को दी जाती है शिक्षा
खुला आसमान संस्था चलाने वाली रोली सिंह ने बताया कि दो साल पहले उन्होंने घाट किनारे बच्चों को शिक्षा देना शुरू किया था।इस दौरान तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन समय बदलता गया और लोग जुड़ते गए।उन्होंने बताया कि इस तरह आज उनके संस्था के माध्यम से 55 बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। रविदास घाट पर हर रोज संचालित होने वाले इस क्लास रूम में एलकेजी से लेकर 10वीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाया जाता है।यहां बच्चों को पढ़ाई के साथ ही कराटे और अन्य खेलों की भी ट्रेनिंग दी जाती है।
संघर्षों से भरा रहा जीवन
रोली सिंह बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान ही समाज सेवा करने का उन्होंने मन बना लिया था। यही कारण था कि उस समय उन्होंने घाट पर रहने वाले भिखारियों को रोजगार दिलवाने का फैसला किया। कई भिखारियों को रोली सिंह ने दुकानों पर रखवाया और आज भी वहां काम करके अपना परिवार चलाते हैं। रोली बताती हैं 2016 में शादी होने के बाद उनका जीवन एक कमरे में बंद हो गया। खुले आसमान का सपना मन में सजाए रोली सिंह दो साल पहले ससुराल छोड़कर मायके में चली आईं। उसके बाद से ही उनके द्वारा खुले आसमान की नींव रखी गई।
पिता बैंक से जुडे़ हैं तो मां हैं हाउस वाइफ
रोली सिंह ने बताया कि मूल रुप से वे गाजीपुर जिले की रहने वाली हैं,लेकिन बनारस में नौकरी लग जाने के कारण उनके पिता बनारस में रहने लगे।बचपन से ही बनारस के अस्सी में रहती हूं।पिता कोऑपरेटिव बैंक से जुड़े हुए हैं, जबकि मां हाउस वाइफ हैं। उन्होंने बताया कि हमारे द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों को लेकर माता-पिता भी उनका काफी सहयोग करते हैं।भाई-बहन अभी पढ़ाई कर रहे हैं।
बीएचयू और विद्यापीठ के छात्र आते हैं पढ़ाने
रोली सिंह ने बताया कि रविदास घाट पर खुला आसमान संस्था संचालित करने पर शुरुआती दौर में मेरे द्वारा ही बच्चों को शिक्षित किया जाता था बाद में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्र भी अपना सहयोग देने लगे। रोली बताती है कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो इन बच्चों को गरीबी से मुक्ति दिला सकता है।भविष्य में वे महिलाओं का एक समूह तैयार करके महिलाओं को भी खुले आसमान में लाने का प्रयास करेंगी।