आजादी के बाद अधिकार बोध बढ़ा और कर्तव्य बोध में ह्रास : विनय चौधरी।
ख्यातिलब्ध पत्रकार स्वर्गीय राम गोविंद गुप्ता की 26 वी पुण्यतिथि पर संगोष्ठी आयोजित।
दरभंगा। आजादी के बाद ही भारतीयों को अधिकार और कर्तव्य की प्राप्ति हुई। संघर्ष से मिले स्वतंत्र आबोहवा में देश विकास पथ पर बढ़ा पर स्वार्थ की रेशमी चादर में मानवता लुप्त होने लगी। नतीजन व्यक्ति में अधिकार बोध तो बढ़ा और सब इसकी प्राप्ति की आपाधापी करने लगे पर हम अपने कर्त्तव्यों को भूल गए। कर्त्तव्य निर्वहन में पिछड़ते चले गए। इसका परिणाम यह है कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी देश में नागरिक सुविधाएँ अपेक्षित स्तर से दूर है। ये बातें समाजसेवी स्व० रामगोविन्द प्रसाद गुप्ता की 26वीं पुण्यतिथि के अवसर पर शहर के सागर फैमिली रेस्टोरेंट के सभागार में “आजादी के 75 वर्ष : क्या खोया, क्या पाया” विषयक संगोष्ठी में पत्रकार एवं शिक्षाविद से विधायक बने डॉ विनय कुमार चौधरी ने कही। श्री चौधरी ने कहा कि कर्त्तव्य निर्वाह किये बिना सिर्फ अधिकार प्राप्त कर लेने से ही कुव्यवस्थाओं का जन्म हुआ है जो देश की प्रगति में रोड़ा साबित हो रहा है। फिर प्रगति हुई है और हम आज जात-धर्म से ऊपर उठकर सबों के विकास पथ की ओर बढ़ रहे है।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद सामाजिक एवं राजनीतिक चिंतक प्रखर वक्ता डॉ. जितेन्द्र नारायण ने कहा कि आजादी के 75 वर्षों के दरम्यान पाने की खुशी और खोने का कसक दोनों ही बरकरार है। आजादी के बाद सत्तासीन दलों ने विकास का पैमाना स्कूलों में पलने लगे। भौतिक सुखों के प्रति आकांक्षा बढ़ी और हम भी मानवीय मूल्यों को छोड़कर विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गए।
डॉ. जीतेंद्र नारायण ने कहा कि देश के आजादी के बाद जिन लोगों के हाथ में इसकी बागडोर मिली जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता समझा जाता है उन लोगों ने आजादी के बाद विकास के पाश्चात्य मॉडल को स्वीकार किया और उसके आधार पर देश के विकास की रूपरेखा तैयार की जिसके परिणाम स्वरूप आर्थिक तरक्की तो हुई इसमें संदेह नहीं है कि भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ आर्थिक तरक्की के लिए जिस तरह की संरचनाओं की जरूरत थी उसमें भी हमने कुछ हद तक सफलता पाई लेकिन पाश्चात्य मॉडल पर आधारित विकास की अवधारणा विदेशी संसाधनों एवं सहयोग के लिए विकास के हर काम के लिए हम सब पश्चिमी देशों एवं विदेशी पूंजी पर ही निर्भर करते रहे इस क्रम में हमारी संपूर्ण व्यवस्था नौकरशाही एवं भ्रष्टाचार का शिकार हुई और गरीबी हटाओ नारा बनकर रह गया।
उन्होंने कहा कि जो थोड़ा बहुत विकास हुआ वह पाश्चात्य दर्शन- संत जीवन के लिए संघर्ष एवं सबसे सबल को जिंदा रहने का अधिकार पर आधारित रही जिसकी वजह से देश में असंतुलित आर्थिक विकास हुआ और संघर्ष के अनेक कारण उत्पन्न हुए। उन्होंने कहा कि फिर भी विकास में मंद गति से ही सही हम लोग आगे बढ़ते रहे हाल के वर्षों में भारतीय दर्शन पर आधारित स्वावलंबी भारत एवं श्रेष्ठ भारत बनाने की परिकल्पना के तहत हम तेजी से आगे बढ़े हैं हाल में कोरोना की विपत्ती से निबटने में अपने संसाधनों के बल पर अपना तो भला किया ही है विश्व को भी हमने सहायता पहुंचाई है। अपने संसाधनों एवं स्वदेशी तकनीक के बल पर अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी अनेकों इतिहास हमने रचे हैं। उन्होंने कहा कि आधारभूत संरचना के क्षेत्र में भी हम विश्व से लोहा लेने के स्थिति में हैं सामरिक दृष्टि एवं आर्थिक दृष्टि से भी विश्व में हमें आदर एवं सम्मान के साथ देखा जाता है परंतु इस क्रम में भारतीय सनातन मूल्य को हमने तिलांजलि दे दी। गांधी के जीवन दर्शन आर्थिक दर्शन एवं राजनीतिक दर्शन को भुला दिया जिसके फलस्वरूप मानवीय मूल्यों का हर क्षेत्र में क्षरण हुआ है और हम विकास के बावजूद अवसाद एवं संघर्ष से घिरे हुए हैं। डॉ नारायण ने कहा कि भारतीय सनातन मूल्य हमने खोए हैं इसे पुनः प्रतिष्ठा देने की आवश्यकता है तभी हम जगतगुरु एवं श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को पूरा कर सकेंगे उन्होंने कहा कि तरक्की के नाम पर जो हमने पाया है उसका बहुत महत्व है और0 रहेगा भी क्योंकि उसकी आवश्यकता हमेशा बनी रहेगी लेकिन जिन माननीय एवं सनातन मूल्यों को हमने खोया है वह अनमोल है उसको पाने का सतत प्रयास अनिवार्य है।
आर्थिक प्रगति ने सबको प्रभावित किया है। एक तरफ सुख-सुविधाएँ बढ़ी है तो दूसरी ओर हम निरंतर अपने दर्शन, अपनी सभ्यता, संस्कृति से दूर हो रहे है। आज पैकेज और पैकेट के बीच हमारी जिदंगी सिमट गई है।पाश्चात्य जगत के अर्थ प्रधानता वाले सिद्धांत में हमारी वो नैतिकता गुम हो गई है जिसके बल पर हम विश्व गुरु हुआ करते थे। हमारे यहाँ पवित्र भाव से कर्म करने की रवायत रही है पर पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के चलते कार्य करने का निर्धारण घंटा है। नतीजतन पवित्रता समाप्त हो गई और ड्यूटी आंरभ हो गई है। हमने स्कूल-कॉलेजों की बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी पर गुरु-शिष्य परपंरा समाप्त हो गई है। फिर तमाम विसंगतियों और किंतु-परंतु के बावजूद आज भी भारत प्रजातांत्रिक मूल्यों का ध्वजवाहक बना हुआ है।
रसायन शास्त्र के विद्वान डॉ. प्रेम मोहन मिश्रा ने देश में हुई वैज्ञानिक प्रगति की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि यहां रूल और लॉ दोनों का नियम बरकरार है। आजादी के बाद देश के बँटवारे ने विचारों को भी बाँट दिया। विकास की चाहत में और जीडीपी के खेल में आमलोगों का हक गौण हो गया। यही कारण है कि आज 75 वर्षों बाद भी अधिकांश संसाधन चंद लोगों के हाथों में है।
इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए वरीय पत्रकार विष्णु कुमार झा ने यथार्थवादी नजरिया प्रस्तुत करते हुए बताया कि 75 वर्षों के बाद मानवीय मूल्यों, इंसानियत को हमने खोया है।भौतिक सुखों की वृद्धि हुई है पर हमारे संस्कार मिट गए है। व्यक्तिगत उन्नति ही आज सर्वोपरि है। हम पड़ोसियों के हितों को भी नजरअंदाज कर आगे बढ़ने की चाहत रखने लगे है। वरीय पत्रकार रविभूषण चर्तुवेदी ने कहा कि आज जो भारत विश्व का सिरमौर बना हुआ है तो वो हमारे पाने की हसरतों का ही नतीजा है। पर यहाँ तक पहुंचने में हमने जितना खोया है उसकी अपेक्षा पाया अधिक है। राजेश बोहरा ने विषयवस्तु को उकेरते हुए कहा कि आजादी के बाद मशीनीकरण का विकास हुआ।इसने मानवता को प्रभावित किया। पर मशीनरी के तीव्रतम विकास ने ही आजकल मोबाइल के सहारे अभिव्यक्ति को आसान कर दिया है
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार ने किया वही कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर ए डी एन सिंह ने किया। अतिथियों का स्वागत पत्रकार प्रदीप गुप्ता ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद गुप्ता ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पत्रकार, चिकित्सक एवं बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।