रैदास समाज में प्रगतिशीलता के अग्रदूत थे*– डॉ. रामबाबू आर्य।

#MNN@24X7 दरभंगा, 24 फरवरी, लोकजागरण के पुरोधा कवि संत रैदास जी की जयंती के अवसर पर जसम और आइसा के संयुक्त तत्वावधान में नागार्जुन नगर स्थित जनकवि सुरेंद्र प्रसाद स्मृति सभागार में संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने की।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि आज लोग इतिहास पर मक्खन चढ़ा रहे हैं। हमारे आईकॉन का ब्रह्माणीकरण किया जा रहा है। ताकि कबीर और रैदास के समाज को हड़पा जा सके। सत्ता में बने रहने के लिए बहुजन समाज को अंधकुप में धकेला जा रहा है।

स्मरण रहे, भारतीय ब्राह्मणवादी समाज, साहित्य और सत्ता संस्कृति की छाती में कील ठोकने का नाम रैदास और कबीर है। आज तक वो समतावादी कील वर्चस्ववादियों को टीस रही है।

उन्होंने आगे कहा कि रैदास का बेगमपुरा क्या है? वह पूर्णतः साम्यवादी व्यवस्था जैसी परिकल्पना थी। भारतीय जमीन पर मार्क्स के पूर्ववर्ती मुक्तिकामी चिंतन के प्रस्तोता के रूप में रैदास को देखा जाना चाहिए। आज हिंदुत्ववाद के पुनरुत्थान के दौर में व्यवस्था से मुठभेड़ किए बिना रैदास और कबीर के सपनों का समाज नहीं बनाया जा सकता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जसम जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने कहा कि रैदास वर्ण व्यवस्था के खिलाफ लोकयुद्ध छेड़ने के लिए जनता का आह्वान करने वाले क्रांतिकारी कवि थे।

रैदास वैदिक संस्कृति के खिलाफ लोक संस्कृति का जो संघर्ष था, उस परंपरा के कवि थे। रैदास की परंपरा चार्वाक, बुद्ध और सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले तमाम अनाम योद्धाओं की परंपरा थी। आज के दौर में अगर समानता दिखती है तो इन्हीं सामाजिक योद्धाओं के संघर्ष का परिणाम है। वास्तव में, रैदास समाज में प्रगतिशीलता के अग्रदूत थे।

उन्होंने आगे कहा कि आज भाजपा–आरएसएस फिर से अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए जनता को उल्टे पांव बर्बर आदिम युग में ले जा रही है, ऐसे दौर में रैदास–कबीर की परंपरा को लेकर हमें आगे बढ़ना होगा।

शिक्षाविद डॉ. संजय कुमार ने कहा कि आधुनिक काल में बाबासाहेब अम्बेडकर जिस एन्हिलेशन ऑफ कास्ट की बात करते हैं, रैदास ने उसकी पुर्वपीठिका 14वीं शताब्दी में ही तैयार की थी। रैदास के सामाजिक क्रांति की एंटी थीसिस हैं तुलसीदास। जिन्होंने कहा कि गुणहीन विप्र को भी पूजिए। यह रैदास की प्रतिक्रिया थी।

आज की सत्ता रैदास के समय के सत्ता–शासन से अधिक क्रूर और विषमतावादी है। विभाजनकारी, दमनकारी वैचारिकी को समाज में जहर घोलने से रोकने के लिए रैदास, बाबा गाडगे, गुरु घासीदास जैसे सामाजिक परिवर्तन के नायकों को याद करना बेहद जरूरी है।

आइसा के जिला सचिव मयंक कुमार ने कहा कि जब रामराज्य का उद्घोष किया जा रहा है तो शंबूक की हत्या को विस्मृत नहीं करना चाहिए । जाहिर है आज वंचित–शोषित समाज को रैदास, कबीर, फूले, अंबेडकर जैसे महापुरुषों को अपना आइकॉन बनाने की जरूरत है।

आइसा नेता संदीप कुमार ने कहा कि शिक्षा पर, सामाजिक एकता, बंधुता पर लगातार हमला जारी है। हमारे समक्ष देश बचाने का प्रश्न है। आज संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होना ही रैदास के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी!

मौके पर रूपक कुमार, मिथिलेश कुमार, दीपक कुमार, बबिता सुमन, अनामिका सुमन, शशि शंकर आदि ने भी अपनी बातें रखीं। कार्यक्रम का संचालन जिला सचिव समीर ने किया।