दरभंगा।राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान, दरभंगा में विश्व क्षय रोग दिवस पर 24 मार्च को संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वर्ष 2022 के लिए टीबी दिवस की थीम है- टीबी को समाप्त करने के लिए निवेश करें । प्राचार्य प्रो. दिनेश्वर प्रसाद ने विश्व क्षय रोग दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में क्षय रोग के बारे में बताते हुए कहा कि 24 मार्च 1882 को जर्मन फिजीशियन और माइक्रोबायोलॉजिस्ट रॉबर्ट कांच ने टीबी के जीवाणु माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज की थी, उनकी खोज आगे चलकर टीबी के निदान और इलाज में बहुत मददगार साबित हुई। इस योगदान के लिए इस जर्मन माइक्रोबायोलॉजिस्ट को 1905 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया , यही वजह है कि हर साल विश्व स्वास्थ संगठन टीबी के सामाजिक, आर्थिक और सेहत के लिए हानिकारक नतीजों पर दुनिया में पब्लिक अवेयरनेस फैलाने और दुनिया से टीबी को समाप्त करने की कोशिश में तेजी लाने के लिए ये दिन मनाता आ रहा है। टीबी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। सबसे कॉमन फेफड़ों की टीवी है और यह हवा के जरिए एक से दूसरे इंसान में फैलती है। मरीज के खांसने और छीकने के दौरान मुंह- नाक से निकलने वाली बारीक बूंदे इन्हें फैलाती है। ऐसे में मरीज के बहुत पास बैठकर बात की जाए तो भी इंफेक्शन हो सकता है। फेफड़े के अलावा ब्रेन, यूटरस, लिवर, किडनी ,गले आदि में भी टीबी हो सकती है । टीबी खतरनाक इसलिए है , क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, सही इलाज न हो तो उसे बेकार कर देती है । फेफड़ों की टीबी फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है, तो यूटरस की टीबी बांझपन की वजह बनती है। ब्रेन की टीबी में मरीज को दौड़ पड़ते हैं ,तो हड्डी की टीबी हड्डी को गला सकती है। टीबी का पता कुछ लक्षणों के माध्यम से लगाया जा सकता है, हालांकि लक्षण आमतौर पर शुरुआती चरण में दिखलाए दिखाई नहीं देते हैं। इन लक्षणों में शामिल है-1. कम से कम तीन सप्ताह तक लगातार खांसी आना टीवी का प्रमुख लक्षण है। 2. खांसी के दौरान रक्त के साथ कफ का बनना एक अन्य लक्षण है।3. ठंड लगना, बुखार ,भूख न लगना और वजन कम होना अन्य लक्षण है। टीबी के कारण पेट में दर्द, जोड़ों में दर्द, लगातार सिर में दर्द भी हो सकता है। टीबी कोई सामान्य बीमारी नहीं है , इसे नजर अंदाज करने की भूल ना करें । डब्ल्यू एच ओ के अनुसार टीबी दुनिया में मृत्यु का सबसे घातक और संक्रामक कारणों में से एक है। प्रो.प्रसाद ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार अपने ही श्वसुर दक्ष प्रजापति के शाप के कारण नक्षत्रों के राजा चंद्रमा को सर्वप्रथम यह रोग हुआ था और राजा का रोग होने से इसका नाम राज्यक्षमा पड़ गया। वागभट्ट ने रोगों का राजा होने से इसका नाम राजयक्ष्मा माना है। इस रोग में शरीर की रस रक्त आदि धातुओं का शोषण हो जाता है, इसलिए से ‘ शोष ‘कहा जाता है। देवताओं के चिकित्सक अश्विनी कुमारों ने चंद्रमा को राजयक्ष्मा रोग से मुक्ति मुक्त किया था।
कार्यक्रम के संयोजक डॉक्टर दिनेश कुमार ने आयुर्वेद में वर्णित राजयक्ष्मा के चार कारणों का उल्लेख करते हुए बताया की- अपने शारीरिक बल की क्षमता से अधिक कार्य करना , मल -मूत्रादि के वेगों को रोकना , शरीर की धातुओं का क्षय होना और नियम विरुद्ध भोजन करना है।
डॉ विनय कुमार शर्मा ने यह बताया कि ऋग्वेद में राजयक्ष्मा का वर्णन प्राप्त होता है ।राजयक्ष्मा के छः लक्षण -कास, ज्वर , पार्श्व शूल, स्वर भेद,अतिसार एवं अरुचि है। प्रो. दिनेश्वर प्रसाद ने आयुर्वेद के माध्यम से राजयक्ष्मा के चिकित्सा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रोग एवं रोगी के बल के अनुसार पंचकर्म एवं औषधीय प्रयोग से राजयक्ष्मा का सफल इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेद में दशमूल धृत, पंचमूल धृत ,वासा धृत ,शतावरी घृत, च्यवनप्राश, सितोपलादि चूर्ण , तालीसादी चूर्ण आदि औषधियों का रोग एवं रोगी की परीक्षा के उपरांत प्रयोग करना चाहिए । राजयक्ष्मा के रोगी को बकरी का दूध, पशु- पक्षियों का मांस रस और चना, मूंग तथा मोठ इनका यूष बनाकर पीना चाहिए ।डॉक्टर मुकेश कुमार ने बताया कि कमजोर इम्यूनिटी वालों लोगों में इसका संक्रमण ज्यादा प्रभावकारी है। आयुर्वेद में वर्णित रोगप्रतिरोधक क्षमता वर्धक उपायों को अपनाना चाहिए।इस मौके पर अर्चना कुमारी ,अजीत कुमार बिरजू कुमार ,मोनू, संदीप आदि मौजूद रहे।