#MNN@24X7 दरभंगा, मैथिली के वरिष्ठ साहित्यकार पं विष्णुदेव झा ‘विकल’ का शुक्रवार की रात्रि में निधन हो गया। 77 वर्षीय साहित्यकार के निधन की खबर पाते ही विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू एवं वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत झा उनके पैतृक गांव आसी पहुंचकर उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित कर संस्थान परिवार की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

शोक संवेदना व्यक्त करते हुए संस्थान के अध्यक्ष सह कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशि नाथ झा ने कहा कि विद्यापति सेवा संस्थान के संस्थापक सदस्य रहे आंदोलनी साहित्यकार विकल जी मैथिली के वरद् पुत्र थे। उनके निधन से मैथिली साहित्य को अपूर्णीय क्षति हुई है।

महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने उनकी रचनाओं को मैथिली साहित्य की श्री वृद्धि करने में अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने मैथिली की सभी विधाओं में रचना कर इसके भंडार को परिपूर्ण करने में महती भूमिका निभाई।

मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि शक्ति के उपासक पं विष्णुदेव झा ‘विकल’ जीवन पर्यंत मिथिला-मैथिली के अनन्य सेवक रहे। वे व्यवहार कुशल होने के साथ-साथ मैथिली भाषा-साहित्य के सर्वांगीण विकास के रास्ते मिथिला के विकास के पक्षधर थे।

संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डा बुचरू पासवान ने कहा कि पं विकल ने मिथिला के सर्वांगीण विकास के लिए जीवन पर्यंत भीख की बजाय आंदोलन के रास्ते अधिकार हासिल करने को विशेष महत्व दिया। यह उनकी विशेषता थी।
वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत झा ने कहा कि एक संस्कारी शिक्षक, आंदोलनी साहित्यकार, वाकपटु वक्ता, अपनी रचना के माध्यम से सामाजिक समस्याओं को उजागर करने वाले नाटककार के रूप में हमेशा जीवंत रहेंगे।

प्रो जीवकांत मिश्र ने कहा कि वह एक ऐसे पंडित थे जिन्होंने आजीवन कर्मठता को ही विशेष तरजीह दिया। महात्मा गांधी शिक्षण संस्थान के चेयरमैन हीरा कुमार झा ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन में उनकी सक्रियता देखने लायक होती थी और उम्र के इस पड़ाव पर भी वे मिथिला मैथिली के विकास में छड़ी के सहारे भी अपनी सक्रियता बनाए रखी। डा महेंद्र नारायण राम ने कहा कि किसी भी विषय की तार्किक व्याख्या करने में उन्हें महारत हासिल थी।

मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि अपने गांव में आदर्श मैथिली परिषद की स्थापना कर ग्रामीण क्षेत्र में गर्मजोशी के साथ मिथिला मैथिली आंदोलन का अलख जगाने वाले विकल जी को रचना शिल्प की अद्भुत दूर-दृष्टि थी। हरिश्चंद्र हरित ने कहा कि विकलजी ने कथा, कविता, नाटक आदि की अपनी रचनाओं में समकालीन मिथिला के सामाजिक सांस्कृतिक शैक्षणिक कुरीतियों को जिस तरह उजागर किया है, यह समाज के विकास की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

उनके निधन पर डा गणेशकांत झा, विनोद कुमार झा, प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई, प्रो विजयकांत झा, दुर्गानंद झा, डा महानंद झा, सुधीर कुमार झा, आशीष चौधरी पुरुषोत्तम वत्स, नवल किशोर झा आदि ने भी शोक जताया।