*मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के समाजशास्त्र विभाग के तत्वावधान में राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित*

*ऑनलाइन व्याख्यान में भारत सहित इंडोनेशिया, थाईलैंड, कनाडा व श्रीलंका आदि के विद्वानों में जुड़कर लाभ उठाया*

*ब्राह्मी लिपि के पढ़े जाने के पश्चात ही दुनिया सम्राट अशोक के जनकल्याणकारी कार्यों से हुई अवगत- डा विकास*

*जेम्स प्रिंसेप की जयंती पर 20 अगस्त से 7 दिवसीय ब्राह्मी लिपि प्रशिक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का होगा आयोजन- डा चौरसिया*
मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के समाजशास्त्र विभाग द्वारा प्राच्यविद् जेम्स प्रिंसेप की पुण्यतिथि के अवसर पर गूगल मीट के द्वारा “जेम्स प्रिंसेप का व्यक्तित्व एवं कृतित्व” विषयक ऑनलाइन राष्ट्रीय व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरम्भ थाईलैंड के महाचूलांग कोर्नराज विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ फ्राप्लाद सोरावित आफिपनयो ने बौद्ध रत्नत्रय की वंदना से किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमण संकाय के डीन और पालि सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव प्रो रमेश प्रसाद ने करते हुए जेम्स प्रिंसेप के काशी के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को याद किया। उन्होंने सम्राट अशोक की ब्राह्मी लिपि को पढ़ने के महान कार्य को अविस्मरणीय एवं चिरस्थायी बताया और आशा की कि निकट भविष्य में सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि भी विद्वानों द्वारा पढ़ने पर भारतीय इतिहास पुनः वैसे ही परिवर्तित होगा जैसा प्रिंसेप द्वारा ब्राह्मी लिपि पढ़ने पर हुआ था।
विशिष्ट वक्ता के तौर पर जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज, दिल्ली के प्राध्यापक डॉ राजेन्द्र कुमार ने कहा कि ब्राह्मी लिपि को फ़िरोजशाह तुगलक के समय से ही असफल प्रयास किए गए, किन्तु सफलता प्रिंसेप को ही मिली। डॉ कुमार ने कहा कि जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि को पढ़ने का जो काम किया, वह दुनिया के लिए एक नया संदेश लिए हुए था।
मुख्य वक्ता के तौर पर मारवाड़ी महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ विकास सिंह ने बोलते हुए विस्तार के साथ जेम्स प्रिंसेप के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर गंभीर चर्चा की। उन्होंने जेम्स प्रिंसेप के आरंभिक जीवन से लेकर मृत्यु पर्यंत तक के जीवन को विस्तार के साथ समझाया कि कैसे प्रिंसेप आर्थिक अभावों के चलते बाल्यकाल में विधिवत् किसी स्कूल में शिक्षा नहीं ले पाए और बाद में शिक्षा के प्रति उमड़ता उनका स्नेह ही पूरी दुनिया के लिए आदर्श बना। कोलकाता और बनारस के टकसालों में परख मास्टर के रूप में कार्य करते हुए सिक्कों को ढालने और बनाने के कार्य को करते हुए उन्होंने प्राचीन सिक्कों की उत्कीर्ण लिपि की ओर भी ध्यान लगाया और यहीं से उन्हें ब्राह्मी लिपि पढ़ने के लिए प्रेरणा मिली। बाद में एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल के जब वे संपादक बने तो उन्होंने भरहूत और सांची स्तूप के दान शब्द के आधार पर ब्राह्मी लिपि को 1837 में और खरोष्ठी लिपि को 1838 में पूर्णतया पढ़कर पूरी दुनिया में सम्राट अशोक से संबंधित इतिहास को एक नवीन दिशा दी और उनके इस महान कार्य के बाद भारत का इतिहास पुनः लिखा गया। जेम्स प्रिंसेप जैसे प्राच्यविदों के कारण ही भारत की ज्ञान परम्परा को पुनः सुदृढ करने में सहयोग मिला है जो श्लाघनीय और अविस्मरणीय है। प्रिंसेप ने बनारस का आधुनिकीकरण किया। वहां के ड्रेनेज सिस्टम से लेकर जनगणना और प्राचीन मंदिर- मस्जिदों का जीर्णोद्धार तक का कार्य उन्होंने करवाया, किंतु उनके योगदान को कोलकाता वासियों ने प्रिंसेप घाट बनाकर अमर कर दिया।
कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा की समाजशास्त्र विभागाध्यक्षा डॉ सुनीता कुमारी ने करते हुए जेम्स प्रिंसेप के सामाजिक कार्यों एवं उनके जीवन पर प्रकाश डाला।
सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आर एन चौरसिया ने स्वागत वक्तव्य देते हुए जेम्स प्रिंसेप को श्रद्धांजलि दी और ब्राह्मी लिपि के महत्त्व पर चर्चा की। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन एमआरएम कॉलेज, दरभंगा के समाजशास्त्र विभाग की प्राध्यापिका डॉ शगुफ्ता खानम ने किया।
इस व्याख्यान में थाईलैंड के महाचूलांग कोर्नराज विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ फ्राप्लाद सोरावित आफिपनयो, इंडोनेशिया से केनिया, श्रीलंका के बौद्ध एवं पालि विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ कंडेगम दीपवंसालंकार महाथेरो, कनाडा से कमलेश अहीर सहित प्रो रमेश प्रसाद, डॉ आरएन चौरसिया, डॉ विकास सिंह, डॉ सुनीता कुमारी, डॉ अवधेश प्रसाद यादव, डॉ नीलम सेन, डॉ शगुफ्ता ख़ानम, डॉ राजकुमारी, डॉ राजेन्द्र कुमार, डॉ त्रिदेव निराला, मो आसिफ मंसूरी, मुकेश पटेल, नितिन कुमार, ओम चौधरी, रामकिशन, रवीन्द्र कुमार, सौरभ, संगीता, सविता रामटेके, सिद्धार्थ स्वरूप, स्वाति झा, तथागत, अंजलि नारायणी, आशीष रंजन, अतुल कुमार झा, बहादुर सिंह, बाल कृष्ण कुमार सिंह, भिक्खु डॉ. उदयन सील, अजय प्रकाश, मिथुन मासम आदि सहित 60 से अधिक व्यक्तियों ने इस व्याख्यान से ऑनलाइन जुड़ कर लाभ उठाया।
डा चौरसिया ने बताया कि जेम्स प्रिंसेप की जयन्ती पर 20 अगस्त से सात दिवसीय ब्राह्मी लिपि प्रशिक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन सी एम कॉलेज, दरभंगा में किया जाएगा, जिसमें देश- विदेशों के विभिन्न शिक्षकों, पुरातत्व, लिपिविज्ञान और पांडुलिपियों के विद्वानों को आमंत्रित करते हुए डॉ विकास सिंह द्वारा ब्राह्मी लिपि लिखना, पढ़ना और शिलालेखों को डिसायफर करना सिखाया जाएगा।