शिक्षा और ज्ञान से हीं हम विश्व गुरु बन सकते हैं – कुलपति।

पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया के तत्वावधान में सोमवार को भारत के पूर्व राष्ट्रपति सह उपराष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन की जन्म दिन के शुभ अवसर पर सेवानिवृत्त छह शिक्षकों का सम्मान सह डॉ मनोज पराशर लिखित पुस्तक ‘हिंदी आलोचना की विकास यात्रा’ का लोकार्पण कुलपति प्रोफेसर राजनाथ यादव की अध्यक्षता में सीनेट हॉल में आयोजित किया गया। सर्वप्रथम कुलपति सहित तमाम संकायाध्यक्ष एवं पदाधिकारियों द्वारा द्वीप प्रज्जविलत कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। तदुपरान्त डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मूर्ति पर पुष्प गुच्छ अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।

स्वागत भाषण कुलसचिव डॉ घनश्याम राय ने किया। उन्होंने उपस्थित सभी लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय को गरिमा प्रदान करने की जिम्मेदारी हम सभी की है। संचालन ज्ञानदीप ने किया। कुलपति का सम्मान कुलसचिव के द्वारा किया गया ‌ कुलपति द्वारा सेवानिवृत्त छह शिक्षक क्रमशः प्रो मिथिलेश मिश्रा, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग,प्रो गौरीकांत झा, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, मैथिली विभाग, डॉ कामेश्वर पंकज, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, डॉ नित्यानंद झा, सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर, मैथिली विभाग, डॉ बीनू पाठक, सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग एवं श्री वशी अहमद, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग को शाॉल और पौधा देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर पूर्णिया विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ मनोज पराशर द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन किया गया।

कुलपति ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में प्रशासन को शिक्षक हीं सलाह देते हैं। वहां शिक्षकों का सम्मान सबसे ज्यादा है। हमारे यहां ऐतिहासिक काल से गुरू शिष्य परंपरा रही है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्वयं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिक्षक और विद्वान थे। भारत के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति रहे। उनके शिष्यों ने 1962 में उनका जन्मदिन दिन मनाने लगे तो उन्होंने कहा कि शिक्षक दिवस के रूप में मनाओ। तबसे भारतवर्ष में आज का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

उन्होंने नई शिक्षा नीति 2020 का विस्तार से चर्चा करते हुए शिक्षकों से आह्वान किया कि आप खोई हुई गुरू शिष्य परंपरा को पुनः स्थापित कर सकते हैं। विधार्थियों को शिक्षा, ज्ञान के साथ साथ भविष्य में चुनौतियों को सामना करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। कोरोना के कारण जो गतिरूधता आ गई थी उसे पुर्नस्थापित करने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है। तभी हमारा समाज और देश समृद्ध बन सकेगा और हम विश्व गुरु बन सकते हैं।

उन्होंने कहा कि नियमित क्लास लें, रिसर्च एक्टीविटी को बढ़ाएं, आलेख, पुस्तक का प्रकाशन करें। इसी से विश्वविद्यालय की गरिमा और प्रतिष्ठा बढ़ती है। धन्यवाद ज्ञापन कुलानुशासक ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी संकायाध्यक्ष, पदाधिकारी, विभागाध्यक्ष, शिक्षक एवं कर्मचारी उपस्थित थे।