9 अगस्त को आहूत बैठक में आगे की रणनीति पर होगा मंथन
#MNN@24X7 मिथिला के सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन की मांग कर रहे विभिन्न संगठनों ने एक मंच पर आकर आंदोलन की गति को तेज करने का निर्णय लिया है। अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति की अगुवाई में आगे की रणनीति तय करने के लिए विभिन्न संगठनों से जुड़े आम व खास लोग 9 अगस्त को ऐतिहासिक क्रांति दिवस के अवसर पर शहर के एमएलएसएम कॉलेज के सभागार में आयोजित बैठक में भाग लेंगे।
जानकारी देते हुए विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव सह अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने बताया कि इस बैठक में विभिन्न संगठनों की समन्वय समिति का गठन किए जाने के साथ ही आंदोलन की आगे की रणनीति पर खुले मन से विचार विमर्श किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि पृथक मिथिला राज्य के लिए समेकित प्रयास किया जाना समय की मांग है और उनके आग्रह पर विभिन्न संगठनों द्वारा एक मंच पर आकर मातृभूमि और मातृभाषा के सर्वांगीण विकास के लिए आगे की लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया जाना स्वागत योग्य है।
उन्होंने कहा कि मिथिला-मैथिली आन्दोलन के स्वतंत्र सचेतक एवं लेखक प्रवीण नारायण चौधरी के संयोजन में आहूत इस बैठक में मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष कमलाकान्त झा, विद्यापति सेवा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डा बुचरू पासवान, विभिन्न संगठनों से जुड़े डा रंगनाथ ठाकुर, राजेश कुमार झा, विक्रम मंडल, रियाज खान, दिनेशचन्द्र यादव, प्रो उदयशंकर मिश्र, सहरसा-सुपौल के शैलेन्द्र शैली, किसलय कृष्ण, मैथिल यायावर, राम कुमार सिंह, कटिहार के नवीन झा, सुपौल के आचार्य धर्मेन्द्रनाथ, हेमन्त झा, दीपक कुमार झा, कौशल पाठक, आनंद झा, शीतलाम्बर झा, अनिल झा, आशीष चौधरी, जीवानन्द झा, पंकज चौधरी, संतोष मिश्र, विजय झा, विरेन्द्र कुमार सहित मिथिला राज्य आन्दोलन से जुड़े आम व खास अभियानी उपस्थित रहेंगे।
डा बैजू ने कहा कि मिथिला के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं भाषाई आजादी के बिना समग्र मिथिला क्षेत्र का विकास असंभव है। सड़़क से संसद तक संघर्ष जारी है और यह आंदोलन पृथक मिथिला राज्य का गठन होने तक अनवरत जारी रहेगा।
डा बैजू ने कहा कि सनातनी मिथिला को पृथक राज्य के रूप में गठन की मांग करते हुए सौ बरस से ऊपर हो गया। इस भौगोलिक क्षेत्र में बंगाल से बिहार, उड़ीसा और झारखंड राज्य बन गया लेकिन पृथक मिथिला राज्य के गठन की आठ करोड़ से अधिक मिथिला वासी के मांग की अब तक अनदेखी किया जाना निंदनीय है।
उन्होंने कहा कि मिथिला क्षेत्र लगातार बिहार से अलग होने की बात कर रहा है क्योंकि मैथिलों के लिए बिहारी शब्द मिथिला के नैतिक पहचान ,नैतिक मूल्य, सभ्यता-संस्कृति, भाषा एवं विकास में बाधक है और इस कारण बिहार में मैथिलों की पहचान लुप्त होती जा रही है। उन्होंने बताया कि इस बैठक को लेकर जनसंपर्क अभियान चलाने के साथ-साथ मिथिला एवं नेपाल के अनेक गणमान्य व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया जा रहा है।।