#MNN@24X7 सीतामढ़ी: जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर एक साल से ज़्यादा समय से पदयात्रा कर रहे हैं। इसी क्रम में जब पत्रकारों ने बिहार में बेरोजगारी और पलायन को लेकर उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि बिहार में जो लोग स्वरोजगार करना चाहते हैं, उद्योग व्यापार लगाना चाहते हैं, उनके पास पूंजी ही नहीं है। पूंजी क्यों नहीं है इसको समझिए क्योंकि बिहार में इसकी बात ना कोई करता है, ना बताता है। लोगों को ऐसा लगता है कि यहां उद्योग इसलिए नहीं लग रहे क्योंकि खनिज नहीं है, कुछ लोग आजकल कह रहे हैं कि समुद्र नहीं है और कुछ लोगों का कहना है कि लॉ एंड ऑर्डर की वजह से उद्योग नहीं लग रहे हैं। तीनों बातों में पूरी सच्चाई नहीं है, बिहार में स्वरोजगार और उद्योग के ना होने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है, वह है पूंजी की अनुपलब्धता। बिहार में लोगों के पास पूंजी है ही नहीं। अब यह समझिए की पूंजी आती कहां से है? देश में पूंजी आती है जो आप और हम पैसा कमाते हैं और उसमें से जो बचत करते हैं उससे पूंजी का निर्माण होता है, जिसको कहते हैं “ग्रॉस कैपिटल फॉरमेशन”। अगर आपने 100 रुपया कमाया जिसमें से 60 रुपया खर्च करके 40 रुपया बचाया वही पैसा पूंजी के तौर पर आपके पास रहेगा। समाज में एक व्यवस्था है कि हर व्यक्ति जो बचत करता है वह अपना पैसा बैंकों में जमा करता है और बैंक उस पैसे को ऋण के तौर पर उनको देता है जो रोजगार करना चाहते हैं या उद्योग धंधा खोलना चाहते हैं।

प्रशांत किशोर -दूसरे राज्यों में 90% से ज्यादा सीडी रेश्यो, बिहार में 40% ही क्यों?

प्रशांत किशोर ने कहा कि बैंक से जो पूंजी आती है, इसको देखने के लिए देश भर में एक पैमाना है जिसको बोलते हैं “क्रेडिट डिपॉजिट रेश्यो” उससे पता चलता है कि बैंकों में कितना पैसा जमा हुआ और कितना पैसा बैंकों ने ऋण के तौर पर अलग-अलग काम करने के लिए दिया। देश में सीडी रेश्यो 70% है और बिहार में 40%। 1990 में यह था 38%, लालू जी के 15 साल के कालखंड में लॉ एंड ऑर्डर खराब हुआ तो लोगों ने उद्योग धंधे लगाने बंद कर दिए, बिहार छोड़कर भागने लगे जिसकी वजह से सीडी रेश्यो घटकर 23.5% हो गया। फिर 2004 से जो थोड़ी-थोड़ी स्थिति सुधरी है तो यह बढ़कर 40% हो गया। इसका खामियाजा बताते हुऐ प्रशांत किशोर ने कहा कि पिछले साल बिहार की जनता ने बैंकों में जमा किया 4 लाख 21 हजार करोड़ रुपए, बैंकों ने लोन के तौर पर दिया 1 लाख 61 हज़ार करोड़ रुपए क्योंकि सीडी रेश्यो यहां 40% है। अगर राष्ट्रीय स्तर 70% के हिसाब से बैंकों ने बिहार में ऋण दिया होता तो बिहार में ऋण मिलता 2 लाख 80 हज़ार करोड़ रूपया। बैंकों ने 40% के हिसाब से ऋण दिया तो बाकी का बचा हुआ पैसा गया कहां? वह बचा हुआ रूपया बैंकों ने बिहार से शिफ्ट कर दिया उन राज्यों में जहां पर उद्योग धंधे लग रहे हैं। कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और मध्यप्रदेश में अगर आप देखेंगे तो आरबीआई के डाटा के हिसाब से वहां सीडी रेश्यो है 90% से ज्यादा, मतलब अगर बैंक में वहाँ के लोगों ने 100 रुपया जमा किया तो बैंक उन्हें 90 रुपए ऋण के तौर पर दे रहा है।

प्रशांत किशोर -बिहार का 26 लाख 35 हज़ार करोड़ रूपया दूसरे राज्यों में ट्रांसफर, 32 वर्षों में बिहार सरकार का बजट नहीं है इतना।

प्रशांत किशोर ने बेरोजगारी और पलायन के पीछे के कारण को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम लोग यहां सिर्फ़ मजदूरों के पलायन की बात करते हैं या बच्चों के पलायन की, जो पढ़ने या कमाने के लिए बाहर जाते हैं। सबसे बड़ा पलायन है पूंजी का पलायन। इसी क्रम में उन्होंने आगे कहा कि याद रखिएगा कोई दूसरा आपको नहीं बताएगा, पिछले 32 वर्ष में यानी 1990 से जब लालू जी मुख्यमंत्री बने उस समय से लेकर पिछले वित्तीय वर्ष में रिजर्व बैंक का डाटा बता रहा है कि 26 लाख 35 हज़ार करोड़ रूपया बिहार के बैंकों ने यहां से ट्रांसफर कर दिया दूसरे राज्यों में, इन 32 वर्षों में बिहार सरकार का बजट इतना नहीं है। जो बिहार का पैसा है वह तो बिहार में इन्वेस्ट होना चाहिए, यही वजह है यहां स्वरोजगार की इतनी दिक्कत है।