#MNN@24X7 दरभंगा, हिन्दी–उर्दू के महान कथाशिल्पी मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की ओर से लघुकथा वाचन एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। बुधवार को आयोजित जयंती समारोह
की अध्यक्षता कर रहे विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार ने ‘लघुकथा’ पर केंद्रित व्याख्यान दिया।
उन्होंने कहा कि लघुकथा के शिल्प और प्लॉट की खोज कैसे करनी चाहिए, इस पर संवाद करने के उद्देश्य से हमने इस पुनीत अवसर को चुना है। कहानी का प्लॉट सामान्य जन-जीवन से जुड़ा होता है। लेखक के ज़हन में वो भूख होनी चाहिए, कहानियां हमारे चारों तरफ़ बिखरी पड़ी हैं। यदि सृजनात्मक लेखन की दिशा में हम आगे बढ़े,तो बतौर साहित्य -प्रेमी प्रेमचंद के और करीब अपने को पाएंगे। लेखन हमें सोचने–समझने का नया वितान देता है। प्रो कुमार ने अपने वक्तव्य के उपरांत स्व- लिखित कहानी ‘आशीर्वाद’ का पाठ किया एवं कथा के विभिन्न पहलुओं पर सोदाहरण चर्चा की।
विभाग के वरिष्ठ प्राचार्य डॉ. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि प्रेमचंद भारत की मुकम्मल आजादी के पहले मुकम्मल कथाकार हैं। उन्हें उर्दू–हिन्दी की साझी विरासत एवं गंगा–जमुनी तहज़ीब का प्रथम कथाकार होने का गौरव प्राप्त है। प्रेमचंद हमारे लिए सिर्फ स्मृति–संदर्भ नहीं, जीवित–प्रसंग हैं। वे अपने जमाने में जितने प्रासंगिक नहीं थे, उससे कई अधिक आज प्रासंगिक हैं। प्रेमचंद जिन सवालों से संघर्षरत थे, वे आज विकराल रूप ले चुके हैं। लाखों होरी आज आत्महत्या करने को मजबूर हैं। सच पूछिए तो उनका पूरा साहित्य संघर्षरत आम जनता की समरगाथा है। उन्हें याद करने की सार्थकता तभी होगी जब हम उनके सपनों का भारत बनाने के लिए प्रतिबद्ध होंगे।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए सहप्राचार्य डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि प्रेमचंद हिन्दी कथा साहित्य में दलित चेतना के उन्नायक हैं। फिर भी दलित लेखन से उन्हें दरकिनार करना दुर्भाग्यपूर्ण है। भूमंडलीकरण और बाज़ारवाद के दौर में भी उनकी कहानियों के पात्र हमारे बीच जिंदा हैं। सत्य है कि प्रेमचंद के साहित्य से सम्पूर्ण साहित्य जगत रोशनी पाता है। हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ. मंजरी खरे ने स्व- रचित लघु कहानी ‘मूर्ख होशियारी’ के भावपूर्ण पाठ से अपना संबोधन प्रारंभ किया।डॉ. खरे ने प्रेमचंद की कहानियों को व्यवहार में कम ढाले जाने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि वे केवल कथाकार नहीं हैं बल्कि उनका समग्र जीवन अनुकरणीय है। उनकी कहानियों में अभिव्यक्त जीवन- मूल्यों को आत्मसात कर हम स्वस्थ समाज के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
प्रेमचंद जयंती समारोह समिति के संयोजक डॉ. लाल जी ने कहा कि जिस प्रकार औपनिवेशिक काल में उनकी कहानियां युवाओं में जोश का संचार कर रही थीं, आज भी उनकी कहानियां वो माद्दा रखती हैं कि छात्रों–नौजवानों को जागरूक कर सके। प्रेमचंद की ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ कहानी का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि राष्ट्र सेवा एवं समाजिक प्रतिबद्धता ही दुनिया का सबसे अनमोल रतन है।
लघुकथा वाचन सत्र में शोधार्थी सियाराम मुखिया, रूपक कुमार, रोहित कुमार, सुभद्रा कुमारी, मलय नीरव, रूबी कुमारी तथा स्नातकोत्तर छात्र विक्रम कुमार, अमरेंद्र कुमार, अर्पणा कुमारी, पम्मी कुमारी, विजय कुमार महतो, दीपक कुमार, दर्शन सुधाकर, गुंजन कुमारी आदि ने हिस्सा लिया।
चयनित लघु- कहानियों को हिंदी विभाग के सौजन्य से पुस्ताकाकार रूप में प्रकाशित किया जाएगा। संगोष्ठी में शोधार्थी दुर्गानंद ठाकुर, अमित कुमार, जय प्रकाश, संध्या, बबिता, निशा, खुशबू और कई छात्र–छात्राएं उपस्थित थे।
धन्यवाद ज्ञापन वरीय शोधप्रज्ञ समीर कुमार ने किया।