*मानव भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को अपनाकर सानंद शांति व प्रेम के साथ रहने में सक्षम- डा विकास सिंह*

*बौद्ध धर्म- दर्शन के विकास में पालि सदृश संस्कृत साहित्य का भी महत्त्वपूर्ण योगदान- प्रो सी उपेन्द्र राव*

*बुध का समग्र धर्म- दर्शन एवं समस्त शिक्षाएं मैत्री, कल्याणकारी एवं मानवता की रक्षार्थ उपयोगी- डा अवधेश*

*भगवान बुद्ध से परिचित करवाकर मंगोलिया को बौद्धमय बनबाने हेतु हम भारत का सदा रहेंगे ऋणी- प्रो उल्जीत लुवसंजव*

*बुद्ध ने अपनी क्रांतिकारी शिक्षाओं से दुःखी, अज्ञानी व स्वार्थमना मानव को दिखाया उद्धार का मार्ग- डा चौरसिया*

मारवाड़ी महाविद्यालय,दरभंगा के संस्कृत विभाग द्वारा “भगवान बुद्ध की सार्वभौमिक शिक्षाएं” विषयक अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार/वेबीनार का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों सहित थाईलैंड, मंगोलिया, कंबोडिया, बर्मा, श्रीलंका, वियतनाम, जापान, अमेरिका, कनाडा, इंडोनेशिया आदि के अकादमिक जगत से सम्बद्ध 50 से अधिक प्रोफेसरों और शोधार्थियों ने अपनी बात रखी और 200 से अधिक प्रतिभागी इसमें जुड़े। पूर्वाह्न से संध्या के बीच आयोजित इस कार्यक्रम को उद्घाटन, तकनीकी और समापन तीन सत्रों में बांटा गया।
उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए इस वेबीनार के संयोजक मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ विकास सिंह ने सेमिनार/ वेबीनार के उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह कार्यक्रम भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के सार्वभौमिक पहलू पर केन्द्रित है। बौद्ध धर्म में 84000 शिक्षाएं हैं, जिनमें भगवान की अनिच्च, अनत्त, अरियसच्च, पटिच्चसमुप्पाद, ब्रह्मविहार, अहिंसा, मध्यम मार्ग व पंचशील आदि प्रमुख हैं। सार्वभौमिक शिक्षाएं वे हैं जो किसी भी धर्म, विश्वास, अभ्यास, पंथ या मान्यता की परवाह किए बिना सभी पर लागू हों और सभी अपना उद्धार उनसे करना चाहते हों। यदि मानव भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करे तो मानव शांति, आनंद और प्रेम के साथ रहने में सक्षम होंगे।
उद्घाटन सत्र की विधिवत् शुरुआत बौद्ध धर्म की दोनों परम्पराओं क्रमशः थेरवाद एवं महायान के अनुसार हुआ, जिसमें थेरवाद परम्परा के अनुसार बुद्ध वन्दना तमिलनाडु सरकार में अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य भिक्खु मोरियार बुद्ध ने की एवं महायान की बुद्ध वन्दना लामा शांता नेगी ने की। स्वागत वक्तव्य देते हुए मारवाड़ी कॉलेज की समाजशास्त्र विभागाध्यक्षा डॉ सुनीता कुमारी ने करते हुए कहा कि भगवान बुद्ध की समस्त शिक्षाएँ अनुकरणीय हैं जो व्यक्ति जीवन में उनको अंगीकार करता है, उसका जीवन श्रेष्ठ हो जाता है। वेबीनार का उद्घाटन मारवाड़ी कॉलेज के बर्सर डा अवधेश प्रसाद यादव ने करते हुए कहा कि भगवान् बुद्ध का समग्र दर्शन लोककल्याणकारी नीतियों एवं सिद्धान्तों से पूरित है, इसलिए वे आज भी उसी स्वीकार्यता के साथ उतने ही प्रासंगिक हो उठते हैं। उनके द्वारा उपदेशित उन्हीं सिद्धान्तों का पुनःस्मरण करने हेतु लोक में पुनः कल्याण एवं मैत्री के वातावरण की निर्मिति करने हेतु उनकी शिक्षाओं का वाचन व पठन किया जाता है।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमण संकाय के डीन प्रो रमेश प्रसाद ने कहा कि भगवान् बुद्ध ने प्राणी मात्र के कल्याण हेतु अपने 45 वर्षों में जीवन चारिका करते हुए समाज को जागृत किया एवं अनवरत उन समस्त शिक्षाओं को लोक के कल्याण हेतु उनके बीच रखा, जिससे उनका समग्र रूप से कल्याण हुआ। इतनी शताब्दियों के व्यतीत होने के पश्चात आज भी बुद्ध की शिक्षाएँ उसी रूप में प्रासंगिक हैं। विश्व के तमाम देशों में इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं जो इस बात के सूचक है कि बुद्ध की शिक्षाएँ वास्तव में सार्वभौमिक हैं जो समस्त देश, काल एवं परिस्थितियों में उसी रूप में प्रासंगिक है। अन्त में प्रो रमेश ने भगवान बुद्ध को उद्धृत करते हुए कहा कि वैर को अवैर से ही समाप्त किया जा सकता है।
वियतनाम के थान त्रि रिसर्च इंस्टीट्यूट के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की अध्यक्षा प्रो गुयेन थी थुय गा मैडम ने सम्मानित अतिथि के तौर पर कहा कि व्यक्ति का शरीर चाहे कितना मजबूत हो, आन्तरिक रूप से यदि सशक्त नहीं है तो फिर परेशानी होती है। इसलिए विपश्यना के माध्यम से मन को मजबूती प्रदान करते हुए बोधिचित्त का उत्पाद करना चाहिए। यदि आन्तरिक रूप से व्यक्ति सशक्त होगा तो उसमें सदैव सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होगा।
विशिष्ट अतिथि के रूप में मंगोलिया के छोई लुवसंजव यूनिवर्सटी ऑफ लैंग्वेज एंड कल्चर के कुलपति प्रो उल्जीत लुवसंजव ने कहा कि मंगोलिया में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थों का अनुवाद बड़ी संख्या में हो रहा है। जब तक व्यक्ति अपने प्राचीन मूल्यों को मजबूती से स्वीकार नहीं करता तब तक धर्म में उत्तरोतर वृद्धि का अभाव देखा जाता है। मंगोलिया सदैव भारत का ऋणी रहेगा, क्योंकि भारत ने उन्हें भगवान बुद्ध से परिचित कराकर बौद्धमय बनाया।
श्रीलंका के बुद्धिस्थ एंड पालि यूनिवर्सटी के भाषा संकाय के डीन प्रो लेनेगल सिरिनिवास ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि बुद्धदर्शन संसार के समस्त प्राणियों के लिए हितकारी है। जैसे- पंचशील के पालन से न सिर्फ सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है, अपितु यह समस्त प्राणियों के कल्याण एवं मैत्री भाव को स्पष्तः दर्शाता है। ब्रह्मविहार, अष्टांगिक मार्ग स्वतः ही व्यक्ति के अन्दर ऐसी चेतना भाव की निर्मिति करते हैं कि उसे समस्त संसार के लोग प्रिय हो जाते हैं। बुद्ध की समस्त शिक्षाएँ केवल देशों की सीमाओं में आबद्ध नहीं है, बल्कि उनका दायरा वृहत है। वे संसार के सभी प्राणियों में कोई भेदभाव किये बिना समान रूप से प्रासंगिक है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए जेएनयू, नई दिल्ली के स्कूल ऑफ संस्कृत एंड इंडिक स्टडीज के प्रो सी उपेन्द्र राव ने कहा कि बौद्ध धर्म के विकास में जितना योगदान पालि भाषा का है, उतना ही योगदान संस्कृत का भी रहा है। बुद्धदर्शन इतना समेकित व सारगर्भित रहा है कि न केवल एशियाई देशों में अपितु यूरोपीय देशों में भी स्वीकार्यता बढ़ी है। भगवान् बुद्ध ने समाज के लोगों को आध्यत्मिक एवं नैतिक मूल्यों की ओर अग्रसर किया। पंचशील समाज में नैतिक व्यवस्था के कुशल पर्याय है एवं समाज में कुशल एवं आदर्श व्यवस्था हेतु पंचशील अत्यावश्यक है।
इस कार्यक्रम में सभी अभ्यागतों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि बुद्ध की शिक्षाएं क्रांतिकारी हैं जो मानव के सर्वविद्ध कल्याणार्थ है। बुद्ध साहस, निर्भीकता व विराट प्रेम के प्रतीक हैं, जिन्होंने दुःखी, अज्ञानी, स्वार्थ व संकीर्णमना मानव को उद्धार का मार्ग दिखाया। गौतम बुद्ध की परिवर्तनकारी व्यवस्था की स्वीकार्यता उच्च स्तर पर हुई। लोगों के एक विशाल समूह ने
बौद्ध धर्म को अंगीकार किया तथा उसी रूप में मानने वाले आज भी मौजूद है।