#MNN@24X7 दरभंगा। भारतीय ज्ञान- परंपरा अति प्राचीन एवं समृद्ध है, जिसकी शुरुआत वैदिक काल से ही मानी जाती है।वेद न केवल ज्ञान- विज्ञान का भंडार है, बल्कि नैतिकता एवं मानव- मूल्यों के आदि एवं विस्तृत स्रोत भी हैं। भारतीय ज्ञान- परंपरा हमें सदाचारी, व्यावहारिक एवं समाजोपयोगी बनता है। व्यक्ति एवं समाज को सही मार्ग दिखाने के लिए संस्कृत साहित्य में नीतिशतक, पंचतंत्र और हितोपदेश जैसी नीतिकाव्यों की रचनाएँ हुईं। ऐसी रचनाएं पश्चिमी एवं अरबी साहित्य में नहीं मिलती। उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत- प्राध्यापक डॉ राजेन्द्र कुमार ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्वावधान में “भारतीय ज्ञान- परंपरा में नैतिकता एवं मानव- मूल्य” विषय पर आयोजित एकल व्याख्यान में कहीं।
उन्होंने कहा कि दण्ड या कानून के द्वारा तात्कालिक एवं बाह्य रूप से किसी को नियंत्रित किया जा सकता है, परंतु नैतिकता मानव को स्थायी एवं आंतरिक रूप से नियंत्रित करता है। भारत के सभी धर्मों एवं साहित्यों में समाज को बेहतरीन बनाने के लिए नैतिकता एवं मानव- मूल्यों का विस्तृत वर्णन मिलता है। दादी- नानी द्वारा भी नैतिकता एवं मानव मूल्यों को विकसित करने हेतु किस्से- कहानी कहने-सुनाने की परंपरा रही है। डॉ कुमार ने कहा कि समाज में हमारा व्यवहार ही हमारी नैतिकता एवं मानव -मूल्यों के गुणों को दर्शाता है। आज स्कूलों एवं कॉलेजों में जो डिग्रियां दी जाती हैं, उनसे बच्चों में नैतिकता एवं मानव- मूल्यों के गुणों का विकास नहीं हो पा रहा। इनके पाठ प्रारंभिक कक्षाओं से ही व्यावहारिक रूप में बच्चों को सिखाया जाना चाहिए। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में नैतिकता एवं मानवीय- मूल्यों पर ज्यादा जोर दिया गया है।
अध्यक्षीय संबोधन में विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने व्याख्यान के विषय को बृहद एवं प्रासंगिक बताते हुए कहा कि यदि व्यक्ति में नैतिकता एवं मानव- मूल्यों का अभाव हो, तो वह पशु सदृश्य ही व्यवहार करेगा। मानवीय धर्म पालन करने से ही हमारे कर्म भी पूर्ण होते हैं। नैतिकतावान एवं मानवीय गुणों से युक्त व्यक्ति ही विशिष्ट एवं समाजोपयोगी होते हैं। विषय प्रवेश करते हुए मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ विकास सिंह ने कहा कि भारत के सभी धर्मों, दर्शनों एवं साहित्य- संस्कृतियों में नैतिकता एवं मानव- मूल्यों पर बल दिया गया है, जिनके अध्ययन एवं अनुपालन से व्यक्ति जीवन को व्यवस्थित एवं उपयोगी बना सकता है। धर्म हमारे लिए धारण एवं आचरण करने की वस्तु है, न की प्रदर्शन की। उन्होंने कहा कि नैतिकता एवं मानवीय मूल्य भारतीय ज्ञान- परंपरा के अभिन्न अंग हैं। बौद्ध, जैन, हिन्दू, सिख आदि धर्म एवं भारतीय साहित्य नैतिकता से भरपूर हैं। नैतिकता सिर्फ सैद्धांतिक ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी होती है। केवल ज्ञानवान बनने से ही व्यक्ति महान नहीं होता, बल्कि नैतिकता एवं मूल्य युक्त जीवन से ही व्यक्ति महानता के गुणों की ओर अग्रसर होता है।
अतिथियों का स्वागत व कार्यक्रम का संचालन करते हुए विभागीय प्राध्यापक डॉ आर एन चौरसिया अपने संबोधन में कहा कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास हेतु नैतिकता एवं मानव- मूल्य अनिवार्य हैं , जो मोक्ष की विराट परिकल्पना की ओर ले जाते हैं। मानवीय मूल्यों पर आधारित गुण हमारे सामाजिक जीवन को सरल और सुखद बनाकर परम आनन्द प्रदान करते हैं, जिनसे हम शुभ- अशुभ, श्रेय- अश्रेय, नैतिक- अनैतिक और सत्य- असत्य में भेद कर पाते हैं। इनके कारण ही भारतीय धर्म व संस्कृति विश्व में प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभागीय प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही ने कहा कि हमें मन, वचन एवं कर्म से नैतिकता एवं मानव- मूल्यों को अपनाना चाहिए। नैतिकता एवं मानवीय- मूल्य हमें समाज के प्रति जागरूक बनाते हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ।व्याख्यान में शोधार्थी सदानंद विश्वास, बालकृष्ण कुमार सिंह, विपुल राय, आनंद सागर मौर्य, जिग्नेश, मनीष, मिहिर झा, मनीषा, रंजना, ज्योति, राधा, श्वेता, जूही, सुमेधा, माधुरी, साधु पासवान, विशाल, आकाश, देव कुमार, रितिक राज, प्रवीन्दर, राजीव, गिरधारी, विद्यासागर, योगेन्द्र और उदय कुमार आदि उपस्थित थे।