#MNN@24X7 दरभंगा। लोहिया चरण सिंह महाविद्यालय में भारतीय पिछड़ा शोषित संगठन , दरभंगा के बैनर तले लॉर्ड थॉमस बेबिन्गटन मैकाले की 222वीं जयंती मनायी गयी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री दिनेश साफी ने की। वक्ताओं में सर्व श्री डॉ0 सुरेन्द्र सुमन, शंकर प्रलामी, राम बाबू आर्य, सुजाता कुमारी, पुर्व प्राचार्य डॉ0राम औतार यादव, सुनील कु0मंडल जिला सचिव,शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ0 सूरज, भारतीय पिछड़ा शोषित संगठन के प्रदेश अध्यक्ष उमेश राय सहित अन्य विद्वानों ने अपनी-अपनी बातें रखी।
प्राय: सभी वक्ताओं ने गुलाम भारत मे अपनी शिक्षा नीति और मानवीय सम्वेदनाओं के कारण मैकाले की प्रभावशाली भूमिका की सराहना करते हुए उन्हे बार-बार स्मरण करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
वक्ताओं ने बताया कि 1823 मे बैरिस्टर और 1833 मे ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य बने इतिहासकार, न्यायविद, साहित्यकार,समीक्षक मैकाले को भारत के पहले गवर्नर लॉर्ड बैन्टिक के अनुरोध पर भारत भेजा गया। 1834 मे ही उन्हे न्यायिक काऊंसिल का चौथा सदस्य बना दिया गया और लोक शिक्षा समिति के अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंप दी गयी। 1834 से 1839 के छोटे से कार्यकाल मे मैकाले ने इंग्लैंड मे बैठे अंग्रेज हुक्मरानो पर दबाव बनाकर शिक्षा मे आधुनिकीकरण के लिये एक लाख रुपए की राशि मंगवायी और योजनाबद्ध ढंग से काम शुरु कर दिया।
प्रदेश अध्यक्ष उमेश राय ने कहा कि लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति के कारण भारत के कुलीनो के द्वारा किए गए बिरोध को 1857 का विद्रोह नाम दे दिया।
उन्होने भारत मे पहले से चली आ रही परम्परागत गुरुकुल शिक्षा से आगे बढकर भारत को विज्ञान और दुनिया से जोड़नेवाली शिक्षा पद्धति और 1835ई में। कलकत्ता मे पहला विश्व विद्यालय, मेडिकल कॉलेज, रुड़की मे इंजीनियरिंग कॉलेज और मद्रास-बम्बई मे यूनिवर्सिटी की स्थापना की। “एजुकेशन फ़ॉर ऑल एंड इक्युअल ” लागू किया। इसका परिणाम हुआ कि सारे वर्ण और वर्ग के बच्चे एक साथ पढने लगे। अंग्रेजी शिक्षा मे भारत के सामान्य लोगों को विज्ञान और उच्च शिक्षा से जोड़ा। मैकाले न होते तो भारत मे आजाद होने का जज्बा पैदा होने मे सदियाँ लग जाती और शाहू जी, अम्बेडकर, नेहरु, पटेल, जैसे सैकडों विद्वान और नेता भी पता नही, कब जन्म लेते।इसिलिए, हमे अंग्रेज होने के बावजूद उनके सकारात्मक योगदान को याद करते हुए मैकाले के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए ।