भारतीय संस्कृति अद्वितीय, अति विशाल तथा पूर्णतः वैज्ञानिक, जिसकी पर्यावरणीय चेतना अनुकरणीय- प्रो विद्यानाथ।

भारतीय संस्कृति के अनुरूप मानवीय आचरण से ही पर्यावरण का पूर्ण संरक्षण संभव- प्रो उमेश उत्पल।

हम अपनी श्रेष्ठ संस्कृति के व्यावहारिक रूप को जीवन में अपनाकर ही पर्यावरण समस्या का कर सकते हैं निदान- डा अजय कुमार।

मानव की बढ़ती जनसंख्या, संग्रह- प्रवृत्ति एवं अय्याशीपूर्ण जीवनशैली से प्रकृति के अति दोहन एवं शोषण के कारण पर्यावरण की समस्या भयावह – डा चौरसिया।

#MNN@24X7 दरभंगा, भारत विकास परिषद् की भारती- मंडन शाखा, दरभंगा तथा सेवा संस्कृति, जोगियारा, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय संस्कृति एवं पर्यावरणीय चेतना” विषयक राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन दरभंगा के प्रोफेसर कॉलोनी, दिग्घी पश्चिम स्थित ललित झाज रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सिविल सर्विसेज में किया गया।

एमएलएसएम कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य प्रो विद्यनाथ झा की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में विश्वविद्यालय हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो उमेश कुमार ‘उत्पल’ मुख्य अतिथि, मारवाड़ी महाविद्यालय के बर्सर डा अवधेश प्रसाद यादव विशिष्ट अतिथि, सेवा संस्कृति के अध्यक्ष का अजय कुमार मुख्य वक्ता के रूप में, भारत विकास परिषद् , दरभंगा के सचिव डॉ आर एन चौरसिया विषय प्रवर्तक के रूप में, प्लस टू माध्यमिक विद्यालय, बसुवारा, दरभंगा के विज्ञान- शिक्षक डा सुशील कुमार विशिष्ट वक्ता, सेवा संस्कृति के सचिव ललित कुमार झा स्वागत एवं संचालक तथा शिक्षक ऋषि कुमार रोहित धन्यवाद कर्ता के साथ ही पटना से डा सच्चिदानंद झा एवं अशोक सिंह, प्रशांत कुमार झा, बेगूसराय से नीरज कुमार सिंह, सीतामढ़ी से आशीष रंजन, शिक्षिका सुनीति कुमारी एवं डा अंजू कुमारी, अजीत मिश्रा, प्रणव नारायण,अनुराधा कुमारी, कुमार अनुराग, अशोक कुमार शर्मा, भार्गवी कुमारी, सोनू कुमार तथा अजीत कुमार सहित देश के विभिन्न भागों से 60 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।

प्रो विद्यानाथ झा ने वेबीनार के विषय को उपयोगी एवं समीचीन बताते हुए कहा कि पर्यावरण की महत्ता से हम कोरोना काल में रूबरू हो चुके हैं, क्योंकि तब ऑक्सीजन के बिना लाखों लोगों की मृत्यु हो गई थी। आजकल हम प्रकृति के रौद्र रूप लगातार देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम विकास भी करें और विनाश से भी बचे। पर्यावरण रक्षा हेतु हमें विकास बनाम विनाश के बीच संतुलन बनाना ही होगा। हमारे पूर्वजों की बुद्धिमत्ता पर्यावरण जागरूकता में मौजूद थी। पेड़- पौधों सहित प्रकृति के सभी अंगों से प्राप्त लाभों के कारण ही उनकी पूजा की जाती है।

प्रो उमेश कुमार ‘उत्पल’ ने कहा कि भारतीय संस्कृति के अनुरूप मानवीय आचरण से ही पर्यावरण का पूर्ण संरक्षण संभव है। हमारे साहित्य, संगीत तथा चित्रकलाओं आदि में प्रकृति के मोहक स्वरूप एवं उसके संरक्षण की बातें विस्तार से बताई गई हैं। पर्यावरण हमारे साथी और जीवन के आधार हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के सभी पक्षों में पर्यावरणीय चेतना दृष्टिगोचर होती है।

डा अजय कुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति के व्यावहारिक रूप को अपने जीवन में अपनाकर ही हम पर्यावरण की समस्या का निदान कर सकते हैं। भारत में पर्यावरण की चेतना बहुत गहरी है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति प्रेम को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। उन्होंने कहा कि मानव जीवन की सुरक्षा एवं भविष्य प्रकृति पर ही निर्भर है।

डा आर एन चौरसिया ने कहा कि मानव की बढ़ती जनसंख्या, अति संग्रह की प्रवृत्ति एवं अय्याशीपूर्ण जीवन शैली से प्रकृति के अति दोहन एवं शोषण के कारण पर्यावरण की समस्या भयावह बनती जा रही है। हमारी संस्कृति में पर्यावरण को देवतुल्य स्थान देते हुए उसके संरक्षण की बातें विस्तार से बतायी गई है। इसमें जल को देवता, पृथ्वी को माता, नदी को जीवनदायनी तथा अन्न आदि को देव कहा गया है। कालिदास, रसखान तथा कबीरदास आदि की रचनाओं में प्रकृति का सुंदर, उपयोगी एवं सजीव चित्रण किया गया है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण का संरक्षण हम सबका नैतिक दायित्व है, क्योंकि इसकी कोई भौगोलिक या राजनीतिक, धार्मिक या कालकी सीमा नहीं होती है।

डा अवधेश प्रसाद यादव ने कहा आज हम भौतिकता के प्रभाव के कारण ही प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। पेड़- पौधों, जल, वायु आदि प्रकृति के संरक्षण से ही मानव सुखी रह सकता है। पर्यावरण विश्वव्यापी है, जिसके साथ किया गया क्रूर मानवीय व्यवहार हमारा ही विनाश करेगा।डॉ सुशील कुमार ने कविता पाठ के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की बात करते हुए कहा कि यदि बच्चों को छोटी- छोटी बातों की सीख दी जाए तो वे जीवन भर उन्होंने याद रखेंगे और पर्यावरण के संरक्षक भी बन जाएंगे।

उन्होंने पर्यावरण संरक्षण हेतु अधिक से अधिक पेड़ लगाने पर बल दिया। पत्रकार आशीष रंजन ने कहा कि हमें अपने जन्म दिवस तथा पर्व- त्योहार आदि के अवसर पर अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए, ताकि पर्यावरण शुद्ध रह सके।

डा सच्चिदानंद झा ने कहा कि हमारे देवी- देवताओं के लिए अनेक पेड़- पौधे तथा जीव- जन्तु प्रिय हैं जो प्रकृति के महत्व को दर्शाता है। हमने पर्यावरण पर बहुत अधिक दबाव डाल दिया है, जिससे वह खतरे में आ गया है। भारतीय संस्कृति को अपनाकर हम स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण बना सकते हैं। सुनीति कुमारी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण की बातें हमें बच्चों को भी सीखानी चाहिए, क्योंकि पर्यावरण सुरक्षा से ही हमारा जीवन संभव है। इस अवसर पर नीरज कुमार सिंह आदि कई वक्ताओं ने भी अपने विचार रखें।

कार्यक्रम का संचालन एवं अतिथि स्वागत करते हुए सेवा संस्कृति के सचिव ललित कुमार झा में पर्यावरण प्रदूषण को वैश्विक समस्या बताते हुए कहा कि इस चुनौती पर विजय पाने में भारतीय संस्कृति सक्षम है, क्योंकि इसमें पर्यावरण चेतना की बातें गहराई से बताई गई हैं। वहीं धन्यवाद ज्ञापन शिक्षक ऋषि कुमार रोहित ने किया।