•एचआईवी पॉजिटिव लोगों में टीबी होने का खतरा 16 से 27% ज्यादा
•काराग्रह एवं अन्य बंद जगहों में रहने वाले लोगों को टीबी संक्रमण का खतरा सबसे अधिक
•टीबी एवं एचआईवी की दवाइयां सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में निःशुल्क उपलब्ध
#MNN@24X7 मधुबनी / 17 अगस्त, जिला मुख्यालय स्थित मंडल कारा रामपट्टी में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया जिसमें जेल में बंद कैदियों का एचआईवी , टीबी, हेपेटाइटिस की जांच की गई। कार्यक्रम का उद्घाटन जिलाधिकारी अरविंद कुमार वर्मा ने जेल परिसर में वृक्षारोपण व दीप प्रज्वलित कर किया.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिलाधिकारी ने बताया जिले के 3 काराग्रहों में 17 अगस्त से 17 सितंबर, 2023 तक विशेष अभियान चलाकर जेल में बंद कैदियों की यक्ष्मा यानी टीबी जांच, एड्स जांच, हेपाटाईटिस बी एवं सी एवं उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है . जिसकी आज मंडल कारा मधुबनी से शुरुआत की गई है.
जानकारी मिली है कि काराग्रहों में टीबी जांच के लिए स्पुटम संग्रहण एवं ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था का अभाव है. इसे ध्यान में रखे हुए स्वास्थ्य विभाग के कार्यरत कर्मियों की जानकारी लेकर एवं उनसे संपर्क स्थापित कर यक्ष्मा के संभावित रोगियों की समय से जांच एवं आवश्यक उपचार प्रदान करने का निर्णय लिया गया है. यह अभियान 17 अगस्त से 29 अगस्त तक मंडल कारा मधुबनी में 1 से 5 सितंबर तक झंझारपुर तथा 6 से 9 सितंबर तक बेनीपट्टी के जेल में जांच की जाएगी. रामपट्टी मंडल कारा में प्रथम दिन 100 से अधिक कैदियों का जांच किया गया. कार्यक्रम के दौरान जेल के वार्ड इंचार्ज और कैदियों को बचाव और सावधानी के बारे में जागरूक किया गया.
जांच एवं उपचार की निरंतरता की जाएगी सुनिश्चित:
जिलाधिकारी ने बताया अभियान का मकसद सिर्फ एक महीने तक ही जेल में बंद कैदियों की जांच एवं उपचार की व्यवस्था प्रदान करना नहीं है. इसका मुख्य उद्देश्य अभियान के बाद भी नियमित तौर पर काराग्रहों में बंद कैदियों की एचआईवी, टीबी, यौन संबंधित रोग एवं हेपाटाईटिस बी एवं सी की जांच एवं समुचित उपचार को जारी रखना है. इसे ध्यान में रखते हुए कैदियों की टीबी जांच एवं उपचार की निरंतरता आगे भी सुनिश्चित की जाएगी.
जिले में सभी संभावित टीबी मरीजों की जाँच करना लक्ष्य:
सिविल सर्जन डॉक्टर नरेश कुमार भीमसारिया ने बताया कि वर्ष 2025 तक यक्ष्मा उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तीन चीजें जरुरी है. पहला सभी आम लोगों को टीबी के विषय में पूरी जानकारी देना. दूसरा सभी संभावित एवं छिपे हुए टीबी मरीजों की ससमय स्क्रीनिंग कराना एवं उन्हें बेहतर उपचार प्रदान कराना. तीसरा टीबी उन्मूलन के लिए किए जा रहे सभी सरकारी प्रयासों एवं उपाय के बारे में भी सभी लोगों को अवगत कराना. जेल में बंद बंद कैदियों की जांच इसी क्रम में एक पहल है. इस पहल के जरिए जेल में बंद कैदियों की भी टीबी जाँच सुनिश्चित हो सकेगी.
कारागृह एवं अन्य बंद जगहों में रहने वाले लोगों को टीबी संक्रमण का खतरा सबसे अधिक:
सीडीओ डॉक्टर जीएम ठाकुर ने बताया कारागृह एवं अन्य बंद जगहों में रहने वाले लोगों को टीबी संक्रमण का खतरा सबसे अधिक रहता है. बंद जगहों में टीबी के बैक्टीरिया जल्दी फैलते हैं और उक्त जगहों पर रहने वाले लोगों को आसानी से संक्रमित कर सकते हैं. डॉ ठाकुर ने बताया कि नाको से प्राप्त निर्देश के आलोक में इस अभियान का आयोजन किया गया है, जिसमें जेल में बंद विचाराधीन एवं सजायाफ्ता दोनों प्रकार के कैदियों की एचआईवी, टीबी, यौन संबंधित रोग एवं हेपाटाईटिस बी एवं सी की जांच की जाएगी. जांच में चिन्हित व्यक्तियों को ससमय उपचार उपलब्ध करायी जाएगी.
एचआईवी पॉजिटिव लोगों में टीबी होने का खतरा अधिक :
एचआईवी पॉजिटिव लोगों में टीबी होने का खतरा 16 से 27% ज्यादा होता है। साथ ही ऐसे रोगियों में टीबी से मृत्यु का खतरा भी ज्यादा होता है। ऐसे रोगियों को टीबी की दवा के साथ-साथ एआरटी ( एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी) एवं दवा भी नियमित रूप से खाने की आवश्यकता होती है। हर टीबी रोगी को एचआईवी जांच कराना आवश्यक होता है। यदि वह पॉजिटिव पाए जाते हैं तो तत्काल एआरसी सेंटर रेफर करना चाहिए। एचआईवी पॉजिटिव लोगों में एकीकृत परामर्श, जांच केंद्रों एवं एआरटी सेंटर पर लगातार टीबी के लक्षण की जांच की जाती है। टीबी एवं एचआईवी की दवाइयां समस्त सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में निःशुल्क उपलब्ध है।
मौके पर जेल अधीक्षक जलज कुमार ,उपाधीक्षक मोहम्मद अख्तर हुसैन, सिविल सर्जन डॉ नरेंद्र कुमार भीमसारिया सीडीओ डॉ जी एमठाकुर, आईसीडीएस सचिन कुमार पासवान, डीसी पंकज कुमार अमीरुद्दीन अंसारी, साथ में सभी कर्मचारी मौजूद थे.