*भगवान बुद्ध और कार्ल मार्क्स के दर्शन की प्रासंगिकता विषयक पैनल चर्चा में 60 से अधिक लोगों की हुई सहभागिता*

*चर्चा में लंदन, थाईलैंड, सिक्किम, पटना व दरभंगा के अनेक विद्वानों ने रखे महत्वपूर्ण विचार*

*उद्घाटन डा कन्हैया झा, अध्यक्षता प्रो फ्रापलाद, रिपोर्टिंग डा शगुफ्ता, मॉडरेटर डा विकास, स्वागत डा सुनीता व धन्यवाद ज्ञापन डा चौरसिया ने किया*
मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के समाजशास्त्र विभाग तथा सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘भगवान बुद्ध और कार्ल मार्क्स के दर्शन की प्रासंगिकता’ विषय पर ऑनलाइन एक पैनल चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के प्रभारी प्रधानाचार्य डा कन्हैया जी झा द्वारा उद्घाटन वक्तव्य दिया गया, जबकि अध्यक्षीय संदेश प्रो फ्रापलाद सोरोवत आफीपन्यो, प्राध्यापक, भाषा संकाय, महाचूलांगकोर्नराज विश्वविद्यालय, थाईलैंड ने दिया। कार्यक्रम में डा अवधेश प्रसाद यादव, डा संजय साहनी, डा आर एन चौरसिया, डा सुनीता कुमारी, डा विकास सिंह, डा शगुप्ता खानम, डा नीलम सेन तथा शोधार्थी बाल कृष्ण कुमार सिंह सहित 60 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।
इस पैनल चर्चा के प्रथम पैनलिस्ट डॉ हुलेश मांझी, प्राध्यापक, डॉ अम्बेडकर चेयर, पटना विश्वविद्यालय, पटना ने कहा कि बाबासाहेब द्वारा लिखा गया साहित्य कालजयी है। उनके द्वारा “बुद्ध अथवा कार्ल मार्क्स” पुस्तक में दिया गया बुद्ध- संदेश सदा अनुकरणीय रहे हैं। विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान बुद्ध के दर्शन व विचारों से ही हो सकता है।
पैनल चर्चा के द्वितीय पैनलिस्ट श्री अरविंद कुमार, पीएचडी रॉयल हॉलवे, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन, यूनाइटेड किंगडम ने कहा कि इस पुस्तक में डा अम्बेडकर ने क्रांति की बात की और वे मार्क्स की तुलना में बुद्ध के विचारों से अधिक प्रभावित थे।
इस पैनल चर्चा के तृतीय पैनलिस्ट डॉ दिनेश कुमार अहिरवार, प्राध्यापक, डिपार्टमेंट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज, सिक्किम सेंट्रल यूनिवर्सिटी, सिक्किम ने कहा कि अम्बेडकर, बुद्ध और मार्क्स तीनों की सोच तार्किक थी, पर मार्क्स और बुद्ध में अंतर सिर्फ साधन के उपयोग का है। डा अम्बेडकर ने बिना हिंसा के संविधान द्वारा बहुजनों को समानता का अधिकार दिलाया।
पैनल चर्चा के चतुर्थ पैनलिस्ट श्री पिंडिगा अम्बेडकर, रिसर्चर, ट्राई कॉन्टिनेंटल रिसर्च, इंडिया ने बाबासाहेब की पुस्तक के हवाले से बताया कि बुद्ध ने निजी संपत्ति को सारे दुःखों का कारण माना और मार्क्स संघर्ष द्वारा निजी संपत्ति को समाप्त करके समाज में समानता लाना चाहते थे।
इस पैनल चर्चा का प्रारंभ सेशन मॉडरेटर डॉ विकास सिंह, विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, मारवाड़ी कॉलेज द्वारा किया गया। उन्होंने भगवान बुद्ध और कार्ल मार्क्स के मध्य के २३८१ वर्षों के अंतर को पुस्तक के जरिए बताते हुए कहा कि ‘बुद्ध अथवा कार्ल मार्क्स’ बाबासाहेब अम्बेडकर की अद्वितीय पुस्तक है, जिसमें उन्होंने भगवान बुद्ध और कार्ल मार्क्स की तुलना साध्य एवं साधनों को लेकर की है। उन्होंने पुस्तक के सार को बताते हुए कहा कि भ्रातृत्व या स्वतंत्रता के बिना समानता का कोई मूल्य नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व ये तीनों तभी विद्यमान रह सकते हैं, जब व्यक्ति बुद्ध के मार्ग का अनुसरण करें अन्यथा साम्यवादी इन तीनों में से किसी एक को दे सकता है।
पूरी चर्चा की रिपोर्टिंग एमआरएम कॉलेज की डा शगुफ्ता खानम ने किया। वहीं स्वागत अभिभाषण पैनल चर्चा की संयोजिका डॉ सुनीता कुमारी, विभागाध्यक्षा, समाजशास्त्र विभाग, मारवाड़ी कॉलेज द्वारा द्वारा किया गया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन सी एम कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया ने किया।