*’सांस्कृतिक पुनरुत्थान में आधुनिक भारतीय विचारकों का योगदान’ विषयक सेमिनार में 100 से अधिक व्यक्तियों की सहभागिता*
*एक दिवसीय सेमिनार में डा फुलो, प्रो गोपीरमण, प्रो शाहिद, डा चौरसिया, डा पुतुल, डा प्रभात व डा सरोज आदि ने रखे महत्वपूर्ण विचार*
*ज्योति बा फूले व सावित्री बाई के शिक्षा- प्रसार तथा डा अंबेडकर के संवैधानिक प्रबंधन से हुआ भारत में सामाजिक व सांस्कृतिक सुधार- डा फुलो पासवान*
*मानवीय जरूरत हेतु मानव निर्मित संस्कृति का समय-समय पर पुनरुत्थान आवश्यक- प्रो गोपी रमण*
*पैतृक एवं अर्जित रूप में संग्रहित संस्कृति में परिस्थिति एवं काल के अनुसार परिवर्तन स्वाभाविक- प्रो शाहिद*
स्थानीय मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के समाजशास्त्र तथा संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में “सांस्कृतिक पुनरुत्थान में आधुनिक भारतीय विचारकों का योगदान” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन महाविद्यालय परिसर में किया गया, जिसमें डा फुलो पासवान, प्रो गोपी रमण प्रसाद सिंह, प्रो शाहिद हसन,डा आर एन चौरसिया, डा पुतुल सिंह, डा कन्हैया जी झा, डा अवधेश प्रसाद यादव, डा सुनीता कुमारी, डा विकास सिंह, डा सगुफ्ता खानम, डा प्रभात कुमार चौधरी, डा सरोज चौधरी, डा विनोद बैठा, डा अलख निरंजन, डा ममता स्नेही, डा सरिता कुमारी, डा कुमारी कविता, अनिता कुमारी, डा नीलम सेन, प्रो संजीव कुमार, डा श्यामानंद चौधरी, डा फारुख, डा मंजू, अविनाश,अजय, बालकृष्ण, नीरज तथा मुशारिब सहित 100 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।
दीप प्रज्वलित कर संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए सी एम कॉलेज के प्रधानाचार्य डा फुलो पासवान ने कहा कि सेमिनार का विषय व्यापक एवं प्रासंगिक है। छठी सदी में ही बुद्ध ने कहा था कि जानो, समझो तब मानो और अंधविश्वास पूर्ण एवं तर्कहीन बातों को न स्वीकारो। मिथिला में चार आस्तिक दर्शनों का उदय हुआ, जिसमें दया, परोपकार व सहयोग आदि की भावनाएं निहित हैं। उन्होंने ज्योतिबा फूले व सावित्री बाई के शिक्षा- प्रसार तथा डा अंबेडकर के संवैधानिक प्रबंधन की चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे प्रयासों से भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार की गति तीव्र हुई। जब समाज में किसी विचारधारा का अति होता है तो नई एवं मानव कल्याण की विचारधारा उत्पन्न होती है।
मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो शाहिद हुसैन ने कहा कि पैतृक एवं अर्जित दोनों रूपों में संग्रहित संस्कृति में परिस्थिति एवं काल के अनुसार आवश्यक सकारात्मक परिवर्तन स्वभाविक है। मानव सृष्टि के साथ ही समाज व संस्कृति का निर्माण हुआ था। मानवता हमारे सभी धर्म- संस्कृतियों का सर्वोपरि अंग है। डा अंबेडकर ने समाज में समानता लाने का सद्प्रयास किया, वहीं डॉ इकबाल गंगा- जमुनी संस्कृति के प्रतीक थे, जिन्होंने इंसानियत का संदेश दिया।
सम्मानित अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के पूर्व सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो गोपी रमण प्रसाद सिंह ने कहा कि संस्कृति का निर्माता स्वयं मानव ने ही अपनी जरूरत के लिए किया है, जिसका समय-समय पर पुनरुत्थान आवश्यक है। जब तक मानव जगत सुपर मानव जगत में नहीं बदल जाता,तब तक संस्कृति में सुधार व परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहेगी। आधुनिक भारत में राजा राममोहन राय से डा अब्दुल कलाम तक सुपर मैन ने हमारी संस्कृति की खामियों को दूर करने का बेहतरीन प्रयास किया है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा आर एन चौरसिया ने भारत के नवजागरण व आध्यात्मिक चेतना के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद का सांस्कृतिक पुनरुत्थान में योगदान की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि स्वामी ने नर की सेवा को ही नारायण की सेवा बताया। भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन एवं सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि यह आध्यात्मिकता से पूर्ण है। इसमें वे सब गुण मौजूद हैं जो मानव कल्याणार्थ अनिवार्य हैं।
बीज वक्तव्य देते हुए डा पुतुल सिंह ने कहा कि आधुनिक काल में अनेक विचारक हुए, जिन्होंने संस्कृतिक पुनरुत्थान के प्रति आमलोगों को जागरूक किया। कुरीतियां हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचाती हैं। शिक्षा सांस्कृतिक पुनरुत्थान का एक सशक्त माध्यम है। राष्ट्रीयता आधुनिक संस्कृति की उपज हैं।
सी एम कॉलेज के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ प्रभात कुमार चौधरी ने कहा कि हमारी पहचान संस्कृति से होती है, पर आज नैतिकता के अभाव में सांस्कृतिक क्षरण हो रहा है। समाज संस्कृति का वाहक होता है और एक संस्कृति दूसरे को प्रभावित भी करती है। एक ओर हमें संस्कृति पैतृक रूप से प्राप्त होती है, वहीं सामाजिक प्राणी होने के नाते हम इसे अर्जित भी करते हैं।
एम के कॉलेज, लहेरियासराय के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डा सरोज चौधरी ने सावित्री बाई फुले के नारी-शिक्षा प्रसार एवं समाजसुधार की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि उनके नारी- शिक्षा विस्तार से सांस्कृतिक पुनरुत्थान की गति तीव्र हुई।
अध्यक्षीय संबोधन में मारवाड़ी कॉलेज के प्रभारी प्रधानाचार्य डा कन्हैया जी झा ने कहा कि सांस्कृतिक शब्द अति व्यापक है, जिसमें परिवर्तन स्वाभाविक है। स्वतंत्रता काल में अनेक महापुरुषों के सद्प्रयास से सांस्कृतिक पुनरुत्थान की गति तीव्र हुई। सेमिनार की रूपरेखा समाजशास्त्र विभागाध्यक्षा एवं सेमिनार की संयोजिका डा सुनीता कुमारी ने किया। आगत अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ एवं मोमेंटो से किया गया, जबकि सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। संगोष्ठी में 40 से अधिक व्यक्तियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिन्हें बाद में पुस्तकाकार रूप दिया जाएगा।
संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं सेमिनार- समन्वयक डा विकास सिंह की विद्वता पूर्ण संचालन में आयोजित संगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत बर्सर डा अवधेश प्रसाद यादव ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डा सगुप्ता खानम ने किया। सेमिनार का प्रारंभ डा विकास सिंह के मंगलाचरण गायन से हुआ, जबकि समापन राष्ट्रगान के सामूहिक गायन से हुआ।