*’सम्राट् अशोक का योगदान एवं उनकी विरासत’ विषयक अन्तरराष्ट्रीय वेबीनार आयोजित*
सम्राट् अशोक के योगदान को रेखांकित करने, उनकी समृद्ध विरासत को सहेजने तथा उनके द्वारा किये गए जनकार्यों को स्मरण करते हुए संस्कृत विभाग, मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा द्वारा दिनांक गूगल मीट के माध्यम से एक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया, जिसका शीर्षक ‘Emperor Asoka’s Contribution & his Legacy’ था। इस वेबीनार में भारत के जेएनयू, दिल्ली, मुम्बई विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, मिजोरम विश्वविद्यालय, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, भूपेन्द्र नारायण मण्डल विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय,सागर, सांची विश्वविद्यालय, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय आदि सहित थाईलैण्ड, इंडोनेशिया, वियतनाम, श्रीलंका, कनाडा, अमेरिका आदि देशों से 130 प्रतिभागी जुड़े। इस वेबीनार में देश-विदेशों के लगभग 40 विद्वानों ने आमंत्रित वक्तव्य दिए और शोध पत्र पढे।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. दिलीप कुमार ने एवं संयोजन महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. विकास सिंह द्वारा किया गया।भन्ते दीपरतन ने बुद्ध-वंदना से कार्यक्रम को आरम्भ किया। तदनन्तर वेबीनार में विषय-प्रवर्तन कराते हुए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर के आचार्य डॉ. प्रफुल्ल गडपाल ने कहा कि तत्कालीन समय से लेकर वर्तमान तक सम्राट् अशोक के योगदान की सराहना की जाती रही है। सम्राट् अशोक ने समाज में जो मापदण्ड स्थापित किये, उन्हीं मापदण्डों का अनुकरण परवर्ती काल के लेखकों ने किया, जिससे इतिहास में पारदर्शिता देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना का श्रेय वास्तव में सम्राट् अशोक को जाता है एवं उनकी यह लोककल्याण की अवधारणा उनकी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से प्रेरित रहती है। उनके साम्राज्य की सीमाएँ अन्तरराष्ट्रीय स्तर की थी, इसलिए आज की सरकारों को भी देश, काल एवं परिस्थितियों से ऊपर उठकर उनकी जयंती का आयोजन करना चाहिए, जिससे आने वाली नौजवान पीढ़ी प्रेरणा ले सकें एवं भारत के समृद्ध इतिहास से परिचित हो सकें।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमण संकाय के डीन प्रो. रमेश प्रसाद जी ने वेबीनार में बीज-वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि सम्राट् अशोक का योगदान अतुलनीय है। वे हर क्षेत्र में महान् थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब हम इतिहास का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि अनेक ऐसे राजा हुए, जिनको सत्ता या तो विरासत में मिली या फिर उन पर जबरन थोपी गयी। इसके विपरीत सम्राट् अशोक ऐसे राजा हमारे इतिहास में हुए, जिन्होंने सत्ता को अपने पराक्रम से हासिल किया। बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार में अपना अभूतपूर्व योगदान सम्राट् अशोक ने दिया।उन्होंने बौद्ध धर्म के ऊपर कुठाराघात होने के भय से धम्म को सिंहल देश, म्यांमार, सुमात्रा एवं अनेक देशों में धर्म-प्रचारकों को भेजकर संरक्षित करवाया।
जेएनयू के संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन संस्थान के प्रो चौधरी उपेन्द्र राव ने सम्मानीय अतिथि के रूप में अपना कहा कि भारतीय संस्कृति के प्रत्येक पृष्ठ से सम्राट् अशोक बेहद करीब से जुड़े हुए हैं। उनके योगदान से सभी आज तक अभिभूत हैं। वे एक बेहतर शासक थे, जिन्होंने हर चीज को प्रियता के साथ देखा, इसलिए उन्हें प्रियदर्शी कहा गया। कलिंग युद्ध के बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ और बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
श्रीलंका के बौद्ध एवं पालि विश्वविद्यालय के पालि विभाग के व्याख्याता डॉ भदन्त कन्देगम दीपवंसालंकार ने विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि आज विश्व कई तरह की चुनौतियों व कष्टों को झेल रहा है, जिनके समाधान में सम्राट् अशोक की शासन व्यवस्था से सीखा जा सकता है। श्रीलंका के लोग आज तक सम्राट् अशोक के द्वारा अपने पुत्र भिक्खु महेन्द्र और पुत्री भिक्खुनी संघमित्रा के द्वारा भेजे गए धम्म से लाभन्वित हैं और उनके प्रति श्रद्धाभाव रखते हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में सीएम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि आज अशोक की शासन व्यवस्था को जानने की आवश्यकता है। अशोक चक्रवर्ती सम्राट् थे, जिन्होंने अखण्ड भारत पर शासन किया और जनता की भलाई के लिए अनेक कार्य किए। उनकी शासन व्यवस्था एवं प्रजा कल्याण के कार्यों की आज सर्वाधिक प्रासंगिकता है।
वेबीनार के मुख्य अतिथि जेएनयू के भारतीय भाषा केन्द्र के अनुवाद विशेषज्ञ प्रो देव शंकर नवीन ने बताया कि अशोक ने विलक्षण दूरदृष्टि धारण करते हुए नालन्दा आदि 23 विश्वविद्यालयों का निर्माण करवाया। शिक्षा के क्षेत्र में अशोक ने जो प्रतिमान स्थापित किए, आधुनिक पीढ़ी को इस पर गंभीर शोध करने की आवश्यकता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन मारवाड़ी महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ दिलीप कुमार ने देते हुए अभ्यागतों का धन्यवाद किया और अशोक के जीवन और भव्य कार्यों की ओर ध्यानाकर्षित किया। उन्होंने कहा कि विद्वानों द्वारा अशोक के सन्दर्भ में विभिन्न महत्त्वपूर्ण तथ्यों और जानकारियों से स्वतः अशोक रूपी सूर्य पुनः प्रकाशमान होगा।