विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में देश के 80 से अधिक विद्वान प्राध्यापकों एवं प्रतिभागियों की हुई सहभागिता।
गलत मान्यताओं एवं आचरणों को बदले बिना पर्यावरण का विकास असंभव- प्रो यशदत्त अलोने।
साहित्य हमें न केवल सत्य की अनुभूति कराने,बल्कि संस्कारित एवं पर्यावरण के प्रति जागरूक कराने में भी सक्षम- डा शंभू शरण।
मानवता एवं सृष्टि के रक्षार्थ हमें प्रकृति की ओर लौटना अनिवार्य- डा मुकेश मिरोठा।
साहित्य समाज का दर्पण होता है जो संस्कृति एवं पर्यावरण की रक्षा में पूर्णतः समर्थ – डा चौरसिया।
मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा की राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाई द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर “संस्कृति, साहित्य और पर्यावरण” विषय पर गूगल मीट द्वारा ऑनलाइन एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। इग्नू दरभंगा के वरीय क्षेत्रीय निदेशक डा शंभू शरण सिंह की अध्यक्षता में आयोजित वेबीनार में जेएनयू, नई दिल्ली के स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स के प्रोफ़ेसर वाई एस अलोने मुख्य अतिथि, जामिया मिलिया इस्लामिया (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के हिन्दी प्राध्यापक डा मुकेश मिरोठा मुख्य वक्ता, सी एम कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष सह इग्नू समन्वयक डा आर एन चौरसिया विशिष्ट अतिथि, मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह विषय प्रवेशक, जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत प्राध्यापक डा राजेंद्र कुमार स्वागत कर्ता, मारवाड़ी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डा सुनीता कुमारी संचालिका तथा मारवाड़ी कॉलेज के एनएसएस पदाधिकारी डा अवधेश प्रसाद यादव संयोजक, एमएलएसएम कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य प्रो विद्यानाथ झा, डा अनिल कुमार, डा रामबाबू चौपाल, सतीशचन्द्र पाठक, डा प्रीति, कृष्ण मोहन, दिनेश मांझी, दीपांशु, सुधांशु शेखर, चंद्रकांत, सूर्यकांत, रंजन, संगम जी झा, नटवर, कोमल, श्रेया, शिवानी, स्वेता, रूपा, पूजा, मनीष, दीपक, शत्रुघ्न, अजीत, अंबिका, शुभम, मिथुन मासूम, रवि राय, गोलू, कन्हैया, रंजीता, बालकृष्ण, आनंद, दिनेश, संजीव, निर्मल, नीरज, मणिकांत, प्रह्लाद, ऋतु झा, डोली, श्याम, सुजीत, प्रकाश, आशीष, धर्मेंद्र, अविनाश, रूस्तम, अजय, ओमप्रकाश, हरिशंकर, आदित्य नारायण, अंबिका आनंद, डॉली व चंद्रकांत सहित 80 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।
डा शंभू शरण सिंह ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि प्रकृति को माता की तरह और स्वयं को पुत्रवत् भाव रखते हुए हम प्रकृति बचा बचा सकते हैं। साहित्य हमें न केवल सत्य की अनुभूति कराता है, बल्कि हमें संस्कारित एवं पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने में भी सक्षम है। उन्होंने विषय को व्यापक एवं महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह धरती जीने लायक रखने तथा आनेवाली पीढ़ी के लिए पर्यावरण का संरक्षण करना अति आवश्यक है।
मुख्य वक्ता डॉ मुकेश मिरोठा ने कहा कि मानवता एवं सृष्टि के रक्षार्थ हमें प्रकृति की ओर लौटना अनिवार्य है। बौद्ध एवं वैदिक परम्पराओं से विभिन्न संदर्भ देते हुए मनुष्य और प्रकृति के संबंध को बनाए रखने की बात कही।साथ ही कहा कि हम प्रकृति से लेते हैं, किन्तु कितना देते हैं,यह महत्वपूर्ण है। हमें प्रकृति के अनुकूल अपने को रखना चाहिए, न की प्रकृति को अपने अनुकूल करना चाहिए।
वैश्विक जगत् में कला एवं सौन्दर्यशास्त्र के यशस्वी विद्वान् और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो यशदत्त अलोने ने कहा गया कि गलत मान्यताओं एवं आचरणों को बदले बिना पर्यावरण का विकास संभव है। जो मान्यताएं पर्यावरण के लिए सकारात्मक हैं सिर्फ उन्हें ही माने, अन्यथा त्याग देने में ही भलाई है। बिना धारणाओं को तोड़े और मान्यताओं को छोड़े हम किसी को पर्यावरण अवबोध नहीं करा सकते। इन्हीं विभिन्न परम्पराओं के चलते गंगा की सफाई के लिए चल रहे सभी कार्यक्रम असफल हुए। ग्रंथों में उद्धरण खोजने की अपेक्षा स्वयं में सुधार करें, ताकि समाज के साथ-साथ पर्यावरण भी स्वच्छ हो सके।
विशिष्ट अतिथि के रूप में सी एम कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आर एन चौरसिया ने वेबीनार के विषय को अति प्रासंगिक एवं समाजोपयोगी बताते हुए कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है जो संस्कृति एवं पर्यावरण की रक्षा करने में पूर्णतः समर्थ है। साहित्य मानव समाज की अभिव्यक्ति एवं रचनात्मक प्रवृत्ति के विकास का सहयोगी रहा है, जिसमें तत्कालीन समाज की वास्तविकता निहित होती है। यह मानवीय मूल्य एवं संस्कृति विकास में सहायक होता है। एनएसएस युवाओं को जोड़कर समाज के उत्थान का कार्य करती है, जिसमें सांस्कृतिक बोध तथा पर्यावरण चेतना का भाव भी महत्वपूर्ण है। सामूहिकता का पाठ पढ़कार एनएसएस समाज के विकास के साथ ही युवाओं का भी सर्वांगीण विकास करता है।कार्यक्रम में स्वागत भाषण डॉ राजेन्द्र कुमार,सहायक प्राध्यापक,संस्कृत विभाग,जानकी देवी मेमोरियल कालेज,दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली द्वारा दिया गया।
अतिथि परिचय एवं विषय प्रवेश वेबीनार के आयोजन सचिव तथा संस्कृत विभागाध्यक्ष, मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा डा विकास सिंह द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि संस्कृति में मानवीय जीवन की समग्रता समा जाती है। अतएव संस्कृति में पर्यावरण पर चिन्तन मनन अत्यावश्यक है। भारतीय संस्कृति सदैव पर्यावरण को केन्द्र में रखकर चिंतन व मनन करती है और हमारा अधिकांश साहित्य पर्यावरण के इर्द-गिर्द ही घूमता है। अत: साहित्य, संस्कृति और पर्यावरण एक- दूसरे के पूरक हैं।
धन्यवाद ज्ञापन मारवाड़ी कॉलेज के एनएसएस पदाधिकारी एवं कार्यक्रम के संयोजक डॉ अवधेश प्रसाद यादव द्वारा किया गया।
मारवाड़ी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम के समन्वयक डॉ सुनीता कुमारी द्वारा वेबीनार का सत्र संचालन एवं तकनीकी संयोजन का कार्य किया गया, जबकि रिपोर्टिंग का कार्य अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष सह एनएसएस के विश्वविद्यालय समन्वयक डा बिनोद बैठा द्वारा किया गया।