थाईलैंड, बैंकाक के प्रसिद्ध महाचुलांगकॉर्नराजविद्यालय विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में डा विकास सिंह ने अपना विशिष्ट व्याख्यान दिया, जिसका विषय “ए बुद्धिस्थ सॉल्यूशन फॉर एजुकेशन इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी” था, जिसमें थाईलैंड और भारत के विभिन्न विद्वानों ने भाग लिया।
विशिष्ट वक्ता के तौर पर डा विकास सिंह ने बौद्ध सिद्धांतों- पंचशील, मध्यम मार्ग, अष्टांग मार्ग, शून्यता व करुणा आदि का विस्तार से वर्णन करते हुए सतत विकास और पर्यावरणीय जागरूकतापरक शिक्षा पर बौद्धों के दृष्टिकोण से परिचय करवाया।
उन्होंने कहा कि कारुणिक व्यक्ति साझा विरासत के बारे में सोचता है। वह चिंतन करता है कि आने वाली पीढ़ी भी उन वस्तुओं का उपभोग करे, जिन्हें वह स्वयं कर रहा है। इस तरह के व्यवहार के लिए चित्त को अत्यंत करुणा से संपन्न करना होता है और उसके लिए ध्यान एक अत्यावश्यक तत्त्व है। भगवान बुद्ध ने प्रतीत्य- समुत्पाद के माध्यम से जीव – अजीव सभी को अंतर्संबंधित किया है।
वे कहते हैं कि हमें धम्मानुसार जीवन यापन करना चाहिए और अधम्म का आचरण नहीं करना चाहिए। आधुनिक शिक्षा- व्यवस्था में यदि बुद्ध के इन सिद्धांतों को तरजीह दी जाती है तो विभिन्न विषयों में मानवीय मूल्यपरकता का उन्नयन होगा।
इस सारस्वत व्याख्यान के लिए डॉ विकास सिंह को बधाई एवं शुभकामना देने वालों में मारवाड़ी कॉलेज के प्रधानाचार्य डा दिलीप कुमार,बर्सर डा अवधेश प्रसाद यादव,स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया, डा घनश्याम महतो, डा सुनीता कुमारी, डा नीलम सेन, डा शगुफ्ता खानम, डा कीर्ति चौरसिया, डा शिशिर कुमार झा, डा अंकित कुमार सिंह, व डा अमित कुमार सिंह आदि के नाम शामिल हैं।