ऊँ अनन्ताय नमस्तुभ्यं सहस्त्र सिरसे नमः।
नमोस्तु पद्मानाभय नागनां पतये नमः।।
भादव ईजोरिया चतुर्दशी दिन भविष्य पुराणक अनुसार अनन्त पूजा कएल जाइत अछि। ओना ई पूजा १४ वर्ष करबाक चाही। मिथिलामे लोक ई पूजा आजीवन सेहो करैत छथि। एहि पूजासँ पापक क्षय आ सुखक प्राप्ति होइछ। पाटक डोरा या जनेऊसँ बनल अनन्त बनाय,तकर पूजा केलाक बाद बाँहिपर बान्हल जाइछ। एहि पूजाक निर्णयक हिसाबसँ ई चतुर्दशी उदयकालिक ग्राह्य अछि।
पाण्डव जखन जुआमे सबटा हारि अज्ञातवासमे छला तखन एक दिन युद्धिष्ठिर अपन दु:स्थितिक कारण चिन्तित छला। कृष्ण भगवानक परामर्शसँ अनन्त पूजा केलनि। अनन्त भगवान विष्णु सृष्टि केर आरंभमे चौदहो लोक तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य आ मह केर रचना केने छलाह। ओहि सबटा लोकक पालन करबाक लेल स्वयं चौदह रूपमे प्रकट भेला,जाहिसँ अनन्त प्रतीत होमय लगला।
ताहि कारणेँ अनन्त पूजाक दिन एकटा बासनमे दूध, दही,घी,मधु आ गंगाजल मिला क’ क्षीरसागर बनाओल जाइछ। ओकरबाद चौदह गीरहवला अनन्तसूत्रसँ भगवान अनन्तकेँ क्षीरसागरमे ताकल जाइत छनि। अनन्तक डोरामे विद्यमान चौदह टा गीरहमे चौदह टा देवता अनन्त, पुरुषोत्तम, हृषिकेश, पद्मानाभ, माधव, बैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण,दामोदर आ गोविंद केर निवास छनि। चौदहो देवताक पंचोपचार पूजा अनन्तपूजाक समय होइछ। पूजाक बाद एहि अनन्तकेँ पुरुष दहिना आ स्त्री बामा बाँहिपर बन्है छथि।
अनन्त बन्हबाकाल निम्न लिखित मंत्र पढ़ै छथि-:
अनन्त संसार महासमुद्रे
मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे विनियोजयस्व,
ह्यनन्तसूत्राय नमोनमस्ते
नव अनन्त बाँहि पर बन्हबासँ पूर्व पुरना अनन्त खोलि क’ विसर्जित कएल जाइत अछि। ओहि काल पढ़ल जाइ वला मंत्र एहि प्रकारे अछि।-:
ऊँ संवत्सरकृतांपूजां संपाद्य विधिवन्मम।
व्रजेदानीं सुरश्रेष्ठ ह्यनन्तफलदायकः न्यूनातिरिक्तानि परिस्फुटानि यानीह कर्माणि मयाकृतानिन सर्वाणि चैतानि मम क्षमस्व प्रयाहि तुष्टः पुनरागमाय।।
अनन्त पूजाक संक्षिप्त कथा:-
एक बेर कौण्डिल्य मुनिक पत्नी शीला सुख-सम्पत्तिक इच्छासँ अनन्त चतुर्दशीक व्रत केलनि, तकरबाद अनन्तसूत्र बामा बाँहिमे बान्हि लेलनि। भगवान अनन्तक कृपासँ शीला धन सम्पत्तिसँ युक्त भ’ गेली।
एक दिन कौण्डिल्य मुनिक ध्यान शीलाक बाँहिपर बान्हल अनन्तपर गेलनि। मुनिकेँ बुझेलनि जे कोनो जादू-टोना वला ताग छीयै आ ओ ओकरा तोड़ि क’ फेकि देलनि। एहिसँ भगवान अनन्त क्रुद्ध भ’ हुनका निर्धन आ लाचार बना देलनि। शीला अपन पति कौण्डिल्य मुनिकेँ कहलनि जे अहीँक एहन काजसँ अनन्त भगवान हमरा सभकेँ संकटमे ठेलि देलनि। ई सुनि मुनि पछताए लगला आ आनन्त भगवानसँ क्षमायाचना केलनि।
एक दिन गरीब ब्राह्मणक वेशमे भगवान अनन्त मुनिक आश्रम आबि हुनका सपत्नीक सविधि अनन्तपूजाक आज्ञाँ द’ देलनि आ कहलथिन जे एहिसँ सबटा संकट दूर होयत। मुनि आ हुनक पत्नी ब्राह्मणक आज्ञाँ अक्षरसः पालन केलनि। एहिसँ हुनक सभ संकट दूर भेलनि आ पुनः सुख समृद्धि भेटलनि। एहि व्रतक नियम अछि जे अनोन भोजन करब अनिवार्य होइछ।
लेखक-:अखिलेश कुमार झा
उत्तमग्राम ननौर, जिला-: मधुबनी(मिथिला)