#MNN24X7 दरभंगा। मिथिला लेखक मंच के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी “रचनाकार ओ समीक्षक”की अध्यक्षता डा राजकिशोर झा और संचालन चन्द्रेश ने की मैथिली साहित्य परिषद दिग्घी दरभंगा के सभागार में।
इस अवसर पर प्रोफेसर उदय शंकर मिश्र ने कहा कि रचनाकार मौलिक रचना करता है स्वयं के प्रेरणा से। समीक्षक समीक्षा के माध्यम से रचना को व्यवस्थित करता है। हिंदी साहित्य में आचार्य रामचंद्र शुक्ल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी रामविलास शर्मा एवं डा नामवर सिंह जैसे समालोचकों ने जो काम किया वह मैथिली साहित्य में अभाव है। रचनाकार मौलिक रचना में महाकवि विद्यापति ने लिखा कि “पिया मोर वालक हम तरुनी गे” के माध्यम से समाज में बेमेल विवाह का वर्णन किया। जिसे समालोचकों द्वारा आज भी वर्णन किया जा रहा है।
इस अवसर श्री चन्द्रेश ने कहा कि मैथिली साहित्य में समीक्षक की सुदीर्घ परंपरा व्यवस्थित नहीं है। रचनाकार मौलिक रचना अपने प्रज्ञा के माध्यम से करते हैं।
इस अवसर पर अध्यक्षता करते हुए डा राजकिशोर झा ने कहा कि राष्ट्र और समाज को समर्पित रचना अच्छी रचना मानी जाती है।
धन्यवाद ज्ञापन डा चौधरी हेमचंद्र राय ने किया। इस अवसर पर मुन्नी मधु डा विजय शंकर झा आदि ने अपने विचार रखे।