दरभंगा। 1 अगस्त, मुंशी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर प्रेमचंद जयंती समारोह समिति दरभंगा द्वारा स्नातकोत्तर इतिहास विभाग ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के सभागार में “प्रेमचंद साहित्य की प्रासंगिकता” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष प्रो० चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने की जबकि संचालन समिति के सचिव डॉ लाल कुमार ने किया।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए समिति के संरक्षक प्रो०धर्मेंद्र कुमर ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं कालिजाई है उन्होंने चाहे हिंदी उर्दू जुबान की भाषा हो चाहे किसानों मजदूरों की दलितों वंचित समुदायों आदि की समस्याएं हो चाहे सांप्रदायिकता का सवाल हो या की धार्मिक संप्रदाय की कट्टरता का प्रश्न हो, और चाहे स्त्री विमर्श हो या दलित विमर्श उन्होंने एक संवेदनशील और प्रगतिशील चिंतक के रूप में साहित्य संरचना इस रूप में की, कि साहित्य समाज और राजनीति का मशाल बन सके, जिसके प्रकाश में लोग एक जनवादी प्रगतिशील एवं समाजवादी समाज की स्थापना के लिए मार्ग की तलाश कर सकें।

इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो०नैय्यर आजम ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने साहित्य में ना सिर्फ मानवीय दुख और पीड़ा का चित्रण किया बल्कि उससे उबरने के लिए संघर्ष का रास्ता भी दिखाया और उच्च मानवीय मूल्य काम कर सबके सामने एक आदर्श समाज का नक्शा पेश किया।

प्रो० प्रभाष चंद्र मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद जैसे महापुरुषों की याद ना सिर्फ स्वभाविक है बल्कि नितांत आवश्यक भी है उन्होंने आजीवन संघर्ष के जरिए अपने साहित्य में उच्च मानवीय मूल्य और आदर्श को कायम किया था।

समिति के उपाध्यक्ष डॉ हीरालाल सैनी ने कहा कि मौजूदा समय में भी साहित्यकारों संस्कृत कर्मियों और बुद्धिजीवियों के सामने एक दायित्व है कि वह भटके और घायल युवा मानस को एक दिशा दें।

समिति के सचिव मुजाहिद आजम ने कहा कि भौतिकवाद उपभोक्तावादी संस्कृति तथा इससे पल्लवित पुष्पित भ्रष्टाचार की आंधी में संपूर्ण मर्यादा एक छिन्न-भिन्न हो गई है और अब संस्कृति के व्यापक प्रचार-प्रसार अश्लील सिनेमा साहित्य युवा पीढ़ी की चेतना को कुंद और मालिन कर दिया है।

अध्यक्षीय संबोधन में समिति के अध्यक्ष प्रो०चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा किप्रेमचंद भारत की गंगा जमुनी साझी संस्कृति के पैरोकार रहे हैं।राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन में हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों का योगदान था जिसे प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में चित्रित किया है।आज वह साझी विरासत खतरे में है।इसलिए आज प्रेमचंद हमारे लिए ज्यादा प्रासंगिक हैं।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन संयुक्त सचिव महाकान्त प्रसाद ने दिया।
अन्य वक्ताओं में डॉ अमीर अली खान,नीतीश कुमार, अभिनव कुमार, अमन कुमार,सुरेंद्र कुमार ठाकुर, हरेराम ,दुर्गानन्द शर्मा, पूजा कुमारी,सुनील कुमार,आनन्द कुमार, जावेद अख्तर आदि ने महत्वपूर्ण वक्तव्य रखे।