#MNN@24X7 17 जून, पटना स्थित दशरथ मांझी स्मृति सभागार में शनिवार को राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति, कुलसचिव एवं सभी अंगीभूत महाविद्यालयों के प्राचार्यों के साथ शिक्षा मंत्री ने अहम बैठक की। बैठक में कुल 18 बिंदुओं पर एजेंडावार चर्चा हुई।
बैठक की शुरुआत में शिक्षा विभाग के सचिव वैद्यनाथ यादव ने पुष्पगुच्छ देकर शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर का अभिनंदन किया। स्वागत संबोधन में शिक्षा सचिव ने बैठक के उद्देश्य एवं महत्व पर प्रकाश डाला। शिक्षा विभाग के उप निदेशक दीपक कुमार सिंह ने विश्वविद्यालय से प्रतिवेदन प्राप्त कर पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से विभिन्न समस्याओं तथा उसके संभव निदान पर वृहद रूप से प्रकाश डाला। सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया कि सभी लंबित परीक्षा फल तथा लंबित परीक्षा 3 महीने के अंदर लेकर प्रतिवेदन समर्पित करें। संबद्ध डिग्री महाविद्यालय के परीक्षाफल आधारित अनुदानित वितरण की अद्यतन स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि शैक्षणिक सत्र 2013 से 2016 तक सहायक अनुदान की राशि उपलब्ध करा दी जाती है तथा अन्य सत्र की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।
कई महाविद्यालयों के प्राचार्य तथा कई विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने भी इस ज्वलंत मुद्दे पर अपने विचार रखें।कई महाविद्यालयों के प्राचार्य ने अपने उद्बोधन में छात्र तथा शिक्षक के अनुपात में शिक्षकों के नए पद का सृजन, शिक्षेतर कर्मचारियों के पदों का सृजन,अतिरिक्त वर्ग कक्ष,आधारभूत संरचना का विकास तथा डेमोंस्ट्रेटर जैसे पदों को पुनः स्थापित करने के बिंदु पर अपने विचार रखें। शिक्षेत्तर कर्मचारियों के मुद्दे पर विभागीय मंत्री ने निर्देश दिया कि जिस महाविद्यालय के पास जो भी इस संबंध में पुराने अभिलेख उपलब्ध हैं,वे इसे लेकर उच्च शिक्षा निदेशालय में संपर्क स्थापित करें तथा प्रक्रिया के अनुसार रिक्त पदों का विज्ञापन करवाने में सहयोग दें।
शिक्षा मंत्री ने अपने अध्यक्षीय भाषण में बिहार के ऐतिहासिक शैक्षणिक परंपरा को याद करते हुए इस बात पर जोर दिया कि क्या राष्टीय शिक्षा नीति के लिए अभी हमारा राज्य तैयार है?उन्होंने कहा कि शिक्षा में बदलाव बहुत जरूरी है लेकिन यह देखना अधिक जरूरी है कि इस बदलाव से व्यापक हित जुड़े हैं अथवा नहीं।वर्तमान परिदृश्य में हमारे विश्वविद्यालय के कई पाठ्यक्रम के अधिकतर सेशन विलंब से चल रहे हैं तथा छात्र भी बराबर इस पर आपत्ति दर्ज करते रहते हैं। सेशन विलंब होने से उनके भविष्य की संभावनाओं पर कुप्रभाव पड़ता है तथा रोजगार के अवसर भी सीमित हो जाते हैं।
क्षउन्होंने विकल्प आधारित पाठ्यक्रम पर विमर्श करते हुए कहा कि कोर्स के डिजाइन में बदलाव करने के लिए आज हमारे पास आधारभूत संरचना यथा अतिरिक्त वर्ग कक्ष, अतिरिक्त प्राध्यापक,अतिरिक्त शिक्षेत्तर कर्मचारी,अतिरिक्त प्रयोगशाला सहित कई अन्य लॉजिस्टिक की आवश्यकता होगी,जिसके लिए बहुत अधिक धन राशि की भी आवश्यकता होगी। वर्तमान परिदृश्य में सरकार के बजट का लगभग एक चौथाई शिक्षा पर खर्च हो रहा है।इस बजट में तुरंत किसी प्रकार की वृद्धि संभव नहीं हो सकती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कई सारे प्रस्तावित नए पाठ्यक्रम के लिए वर्तमान में दक्ष और प्रशिक्षित लोगों की भी कमी है। हमें यह भी सोचना होगा कि क्या हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था छात्रों को कला,विज्ञान तथा वाणिज्य आदि संकाय के विषयों को एक साथ चुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया है। क्या हमारा समाज इस बदलाव के लिए तैयार है?क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था में अध्ययनरत छात्र मानसिक रूप से इसके लिए तैयार हो चुके हैं? साथ ही यह भी हमें देखना होगा कि कला के छात्र विज्ञान के विषय में तथा विज्ञान के वाणिज्य के विषय में इत्यादि जैसे संयोजन प्राप्त कर जब डिग्री प्राप्त करेंगे तो उनकी विशेषज्ञता किस फील्ड में होगी।क्या वे कला का विशेषज्ञ कहलाएंगे या विज्ञान का विशेषज्ञ कहलाएंगे।यह भी शोध करने की आवश्यकता है की अलग-अलग संकायों को साथ लेकर पढ़ने वाले छात्र कहीं अपने रोजगार के मौके गवा ना बैठे। ऐसे छात्र किस विधा में अपनी उच्चतर शिक्षा लेंगे।क्या वे विज्ञान विषय में पीएचडी करेंगे अथवा कला में पीएचडी करें। मानसिक क्रांति के लिए समय अपेक्षित है।किसी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए एक निर्धारित समय अवधि की आवश्यकता होती है।इन सब चीजों को हम लोगों को सोचना पड़ेगा। बुद्धिजीवी के जमात के बीच हम लोग बैठे हैं, हमें यह तय करना है कि हम अपने समाज को तथा समाज के नौनिहालों को कहां ले जाना चाहते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हुए बदलाव के संबंध में उन्होंने कहा कि बदलाव जरूरी है।बदलाव से कहीं समस्या नहीं है।लेकिन बदलाव रचनात्मक हो,अनुभव और शोध के आधार पर हो यह बहुत जरूरी है। कहीं ऐसा ना हो कि उच्चतर शिक्षा गरीब छात्रों के पहुंच से बाहर हो जाए तथा उन्हें रोजगार के समुचित अवसर ना मिले।
उन्होंने कहा कि हम लोग कल्याणकारी राज्य में रहते हैं।हमारा यह संवैधानिक दायित्व है कि हम सभी को सर्व सुलभ शिक्षा उपलब्ध कराएं। हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो कि गरीब से गरीब बच्चा भी अगर उसके अंदर प्रतिभा है,लगन है और परिश्रम करने का जज्बा है तो उसे भी इतने मौके जरूर मिलना चाहिए कि वह भी आगे आ सके।किसी बदलाव से कहीं अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के मौके तो प्रभावित नहीं हो रहे हैं,यह देखने वाली बात होगी।इसलिए विभागीय अपर मुख्य सचिव ने सरकार की तरफ से राजभवन को 4 वर्षीय पाठ्यक्रम लागू करने के संबंध में पुनर्विचार करने का आग्रह भी किया है।
इसके अतिरिक्त फोर्थ फेज के महाविद्यालयों में एसबीसी सिन्हा आयोग के प्रतिवेदन के आलोक में शिक्षकों की प्रोन्नति,चतुर्थ चरण के महाविद्यालयों में सप्तम सप्तम वेतन पुनरीक्षण के उपरांत बकाया भुगतान,वेतन सत्यापन कोषांग के आपत्तियों के निराकरण से संबंधित मुद्दे, महाविद्यालय में शुल्क माफी के एवज में क्षतिपूर्ति की राशि की मांग संबंधित मुद्दे, मुख्यमंत्री बालिका स्नातक प्रोत्साहन योजना के लंबित मुद्दे, विश्वविद्यालयों के लंबित उपयोगिता प्रमाण पत्र, महाविद्यालयों के आधारभूत संरचना आदि के कमी के मुद्दे पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर बहस के क्रम में कई वक्ताओं ने बताया कि वर्तमान व्यवस्था के तहत 3 वर्ष की स्नातक डिग्री पाठ्यक्रम में तीन परीक्षा आयोजित करवाने में ही सत्र पीछे चल रहा है तो नई व्यवस्था के तहत 4 वर्ष में कुल 8 परीक्षाएं कराने से सत्र और भी पीछे हो सकता है।वर्तमान व्यवस्था के तहत छात्रों को तीन बार नामांकन लेना होता है नई व्यवस्था के तहत 8 बार नामांकन लेना होगा।एक वक्ता ने बताया कि वर्तमान व्यवस्था में ₹3000 के आसपास डिग्री पाठ्यक्रम पूरा हो जाता है जबकि नई व्यवस्था के तहत लगभग 16000 से ₹20000 इस पाठ्यक्रम को पूरा करने में लगेगा। 4 वर्ष के पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए आधारभूत संरचना के अतिरिक्त समय भी चाहिए। जब पहले की ही परीक्षाएं लंबित हैं तो एक नया बदलाव से विश्वविद्यालय और छात्रों के बीच अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो सकती है।
पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजनाथ यादव, कुलसचिव डॉ घनश्याम राय सहित पंद्रह अंगीभूत महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य बैठक में उपस्थित थे।