‘नीलकमल’ नाटक का मंचन हुआ

#MNN@24X7 दरभंगा। विद्यापति सेवा संस्थान द्वारा आयोजित मिथिला विभूति पर्व के स्वर्ण जयंती समारोह के शुभ अवसर पर, रविवार की देर रात प्रसिद्ध और वरिष्ठ रंगकर्मी श्याम भास्कर के कुशल निर्देशन में ‘नीलकमल’ नाटक का मंचन हुआ, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में आम दर्शकों के अतिरिक्त दरभंगा और इसके आस पास से नाट्य-प्रेमी, रंगकर्मी कलाकार और विशिष्ठ लोग एकत्र हुए और इस नाटक का आनंद लिया ।

यह एक पीरियड ड्रामा था, भगवान बुद्ध के समय से एक कहानी उठायी गई है, जिसके माध्यम से बुद्ध की महाकरुणा, प्राणिमात्र के जीवन की रक्षा और अहिंसा का संदेश दिया गया है। प्रकारांतर से यह नाटक पर्यावरण के संतुलन का भी संदेश देता है ।

नाटक का नायक सुकीरत घर-परिवार से विरक्त होकर अपने पोखर में एक ऐसे नीलकमल के खिलने की प्रतीक्षा महीनों से कर रहा होता है,जो हजार वर्ष में एक बार खिलता है। उसी स्वर्गीय कमल को बेचकर वह अपनी एकमात्र बेटी सुनैना का विवाह करना चाहता है। फूल के खिलने पर उसे खरीदने के लिए श्रावस्ती के नगर सेठ और राजा प्रसेनजित के बीच प्रतिस्पर्धा होती है।

वे दोनों नीलकमल भगवान बुद्ध को समर्पित करना चाहते हैं। औऱ उस नीलकमल का मूल्य एक हजार स्वर्ण मुद्रा देने को वे राजी हो जाते हैं, मगर नायक सुकीरत यह जानकार अब फूल बेचने को राजी नहीं है कि उसे लगता है कि धन से ज़्यादा मुल्यवान बुद्ध का सानिध्य है। वह खुद जाकर  तथागत को वह नीलकमल समर्पित करना चाहता है । वहाँ जाने पर वह देखता है कि बुद्ध के किसी शिष्य ने एक गर्भवती स्त्री की सहायता इसलिए नहीं की थी कि उसे संघ के इस नियम का पता था कि स्त्री का प्रवेश वर्जित है इसलिए वह स्त्री को अस्पृश्य समझता था।

आनंद ने उसकी सहायता की थी तो उसे अपराधी समझता है। बुद्ध  आनंद पर प्रसन्न होते हैं और कहते हैं कि आनंद ने उस स्त्री के प्रति करुणा दिखाई इसलिए वह पुण्य का अधिकारी है।उसने मां और उसके गर्भस्थ शिशु के प्राण बचाये हैं। सुकिरत को एहसास होता है परोपकार ही पूण्य है। वह बुद्ध से कहता है कि उसने इस दिव्य नीलकमल को तोड़कर उन असंख्य नीलकमल के खिलने की संभावना को खत्म कर दिया है, जो इसके जीवित रहने पर सम्भव होती। वह जीवन हरने का अपराधी है, इसलिए बुद्ध उसे दण्ड दें।
                                       
इस नाटक की भूमिका में थे रवि श्री खंडेलवाल, डॉ सत्येंद्र कुमार झा, मोहन मुरारी, डॉ राज किशोर झा, नीतू झा, प्रवीण कुमार, मणिशंकर झा ‘माधव, अखिलेश कुमार झा, निकिता, पूजा कुमारी औऱ रजनी । सहायक निर्देशक थे रवि श्री खंडेलवाल, कला निर्देशक रौशन कुमार, प्रकाश व्यवस्था थी पंकज कुमार चौधरी की और मेक-अप किया था हेमेंद्र कुमार लाभ ने। नेपथ्य में थे प्रवीण कुमार झा और सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ।

मिथिला के ख्यात लेखक-निर्देशक श्री श्याम भास्कर के हिंदी  नाटक नीलकमल  का आकाशवाणी के अनेक केंद्रों से कई बार प्रसारण हो चुका है । उसके मैथिली रूपांतर की यह पहली ऐतिहासिक प्रस्तुति थी, जिसे लोग वर्षों याद रखेंगे।