#MNN@24X7 दरभंगा, कृषि विज्ञान केंद्र, जाले के द्वारा दिनांक 02.06.2023 को राष्ट्रीय जलवायु कृषि समुत्थान में नवप्रवर्तन (NICRA) परियोजना अंतर्गत चयनित ग्राम जोगियारा के कुंज कोटी मंदिर के प्रांगण में मिशन लाइफ स्टाइल फॉर इंवॉरनमेंट के तहत वर्षा जल संचयन और भूमिगत जल का कृत्रिम पुनर्भरण (कैच द रेन) विषय पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम के दौरान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ गौतम कुणाल, पूजा कुमारी, डॉ अंजली सुधाकर, डॉ जगपाल समेत ग्राम के मुखिया उमाशंकर सिंह पूर्व मुखिया सुमन कुमार, प्रगतिशील किसान भोला सिंह, मुरली सिंह, रामप्रसाद, हीरा सिंह, रूपेश कुमार, वैद्यनाथ सिंह आदि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में संबोधन के दौरान केंद्र के पौध संरक्षण वैज्ञानिक सह निक्रा परियोजना के अन्वेषक डॉ गौतम कुणाल ने बताया कि यह केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। जिसका मूल उद्देश्य अत्यधिक वर्षा के बाद उस जल का सदुपयोग ना होने के कारण उसकी बर्बादी को बचाना है। उन्होंने कहा कि अगर हम वर्तमान जलवायु की रूपरेखा को देखें तो पिछले कई दिनों से जिले में अधिकतम तापमान लगभग 40 डिग्री सेंटीग्रेड है और फिलहाल वर्षा का कोई संकेत नहीं दिख रहा। जिसकी वजह से जिले के किसानों को धान का बिचड़ा गिराने में विलंब हो रहा है। ऐसे में अगर हम वर्षा के बाद होने वाली जल की बर्बादी को अगर सही तरीके से संचय करें तो भविष्य में वह हमारे लिए अमृत साबित होगी। उन्होंने बताया की जल एक सीमित संसाधन है, जिसका सही तरीके से इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसके दुष्प्रभाव का सामना करना पड़ेगा। धरती को माँ का दर्जा देते हुए उन्होंने बताया की भूमिगत जल का कृत्रिम पुनर्भरण गोद भराई के समान है। जिसकी वजह से हमारी पृथ्वी स्वस्थ रहेगी और हमारे पर्यावरण को भी स्वस्थ रखेगी परिणाम स्वरूप समस्त जीव जंतु स्वस्थ रहेंगे।रहेंगे।
केंद्र की विशेषज्ञ पूजा कुमारी ने बताया कि पानी का संकट प्रतिदिन विकराल रूपए लेता जा रहा है जिसके कारण देश के कई क्षेत्रों में जीवन यापन करना भी बहुत कठिन हो गया है। यह प्रकृति संबंधी समस्या नहीं है, यह मानव अंश द्वारा उत्पन्न संकट है।
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए केंद्र की कृषि अभियंत्रिकी डॉ अंजली सुधाकर ने बताया कि भूमिगत जल का पुनर्भरण दो तरीके से होता है। एक प्राकृतिक भूभरण जिसमें वर्षा जल एकमात्र स्रोत है जो पृथ्वी पर जल की उपलब्धता, मृदा नमी, भूमिगत जल पुनर्भरण आदि के लिए प्रमुख स्रोत हैं। वर्षा जल ही अन्य स्रोतों जैसे नदियाँ, धाराएँ, जलासय, झील एवं कृषि सिंचाई के माध्यम से भूमिगत जल एवं मृदा नमी में प्राकृतिक रुप से वृद्धि होती रहती हैं। दूसरा कृत्रिम पुनर्भरण जैसे छोटे बाँध या नाला बाँध, वाहिका फैलाव तकनीक, अंतःस्त्रवण कुण्ड तकनीक, कुओं एवं कुण्डों का पुनर्भरण संरचना के रुप में संशोधन, भूमिगत जल प्रबंधन, कृषि क्षेत्र में जल प्रबंधन आदि।
कार्यक्रम के समापन सत्र में डॉ जगपाल ने सभी कृषकों को शपथ ग्रहण करवाया इस दौरान उन्होंने कृषकों को अपने साथ शपथ ग्रहण करते हुए कहा कि “मैं पानी बचाने और उसके विवेकपूर्ण उपयोग की शपथ लेता हूं। मैं यह भी शपथ लेता हूं कि मैं जल का समुचित उपयोग करूंगा तथा पानी की हर एक बूंद का संचयन करूंगा और कैच द रेन अभियान को बढ़ावा देने में पूरा सहयोग दूंगा। मैं पानी को एक अनमोल संपदा मानूंगा और ऐसा मानते हुए ही इसका उपयोग करूंगा। मैं शपथ लेता हूं कि मैं अपने परिवारजनों, मित्रों और पड़ोसियों को भी इसके विवेकपूर्ण उपयोग और उसे व्यर्थ नहीं करने के लिए प्रेरित करूंगा। यह ग्रह हमारा है और हम इसे बचा सकते हैं और अपना भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं” ।
हम शपथ लेते हैं।