आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ अपने सम्पूर्ण जीवन को मिथिला, मैथिल और मैथिली के हितों की रक्षा के लिये समर्पित किया। उन्होंने सर्वाधिक रचना पद्य विधा में की जिसमे महाकाव्य, खण्डकाव्य और मुक्तक काव्य सम्मिलित है। गद्य विधा में भी उन्होने उपन्यास लिखी। साहित्यकारों के उत्साहवर्द्धन हेतु उन्होंने उनकी कृतियों की जो भूमिकाएँ लिखी वह ‘विन्दु-विसर्ग’ के रूप में पुस्तकाकार प्रकाशित है। ये बातेँ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. रमण झा ने कही। उन्होंने कहा कि सुमनजी जितने सिद्धहस्त पद्यकार थे उतने ही गद्यकारभी, जितने सफल शिक्षक थे उतने ही राजनीतिज्ञ भी। उनकी रचना शिव-पंचाक्षर ‘नन्दी निकटे’ के उल्लेख के साथ उन्होंने ‘सुमन’ को श्रद्धांजलि अर्पित किया।
मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश झा ने उनकी कृतियों पर प्रकाश देते हुए ‘उत्तरा’ खण्डकाव्य की सराहना की। उन्होने सुमनजी के उपन्यास का भी विस्तार से चित्रण किया। प्रो. नारायण झा ने सुमन को मैथिली- दधीचि की संज्ञा देते हुए उनकी साहित्य -साधना के साथ-साथ राजनीतिक जीवन को भी रेखांकित किया। उन्होंने राजनीतिक क्षेत्रमे उनके साथ अपने साहचर्य का भी जिक्र किया। उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति में रहने के कारण ही वे मैथिली के बहुत हित कर पाये।

रौशन कुमार के संचालन में अनेक शोधार्थियों ने अपने – अपने विचार रखे जिनमें प्रमुख हैं – शालिनी कुमारी, दीपक कुमार, राज्यश्री कुमारी, नीतू कुमारी , हरेराम पंडित, शिव कुमार पासवान, वन्दना कुमारी, मोहन मुरारी। इस अवसर पर भोगेन्द्र प्रसाद यादव, भाग्यनारायण झा तथा लालबाबू यादव भी उपस्थित थे।