यह मानुषी जीवन तो अनित्य मल वहन करनेवाला है, ज्ञानवान व्यक्ति वे ही हैं जो समय का सदुपयोग करते हुए , शरीर को तपाते हुए साश्वत महत्व की रचनाओं से साहित्य को समृद्ध करते हैं, क्योंकि वही कीर्ति मनुष्य को अमरत्व करता है –कीर्तिर्यस्य स जीवति। साहित्यकार अपना जीवन अलग ढंग से जीता है। ये बातेँ विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में प्रो. प्रीती झा कृत ‘मालिनी’ पुस्तक के विमोचन के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने उद्घाटन एवं अध्यक्षीय संवोधन मे कही। उन्होंने पुस्तक के प्रकाशन पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि लेखिका प्रो. झा धन्यवाद के पात्र हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद भी अपने लेखन कौशल को निरंतर बनायी रखी। पुस्तक की महत्ता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि यह पुस्तक संक्षिप्त किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण समालोचनात्मक निबंधों का संग्रह है जो शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी सबों के लिए उपयोगी साबित होगी।

इस पुस्तक की उपयोगिता एवं सार्थकता का बखान करते हुए प्रतिकुलपति प्रो. डौली सिंन्हा ने कहा कि प्रो. प्रीती झा ने जिस तरीके से इस पुस्तक में मैथिली उपन्यास, नाटक, कविता,कथा एवं विभिन्न साहित्यिक विधा को आलोचनात्मक ढंग से प्रस्तुत की है वह अत्यन्त प्रशंसनीय है। मैथिली की समझ रखने वाले सभी लोगों के लिए यह यह अत्यन्त लाभदायी होगी।

माननीय कुलसचिव प्रो. मुस्ताक अहमद ने कहा कि मैं स्वयं भाषा एवं साहित्यानुरागी हूँ। एक छोटा सा भी शोधनिबन्ध लिखना दुरूह कार्य है जिसके लिए अनेक पुस्तकों को पढ़ने की जरूरत होती है। इस बड़ी चुनौती को प्रो. प्रीती झा ने स्वीकार किया। कोरोना काल की त्रासदी का सदुपयोग करते हुए उन्होंने इस पुस्तक को मूर्त्त रूप दी है।
मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. रमण झा ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस पुस्तक का अवलोकन करने का सौभाग्य मुझे पहले ही प्राप्त है।इस पुस्तक की सार्थकता पर प्रकाश देते हुए मालिनी छन्द पर भी उन्होंने विस्तृत जानकारी प्रस्तुत किया। पुस्तक के नामकरण को लेकर उन्होंने बताया कि ‘मालिनी’ एक छन्द का नाम है जिसमें कुल पन्द्रह वर्ण होते हैं।इस पुस्तक में भी कुल पन्द्रह समालोचनात्म निबंधों का संग्रह है। संभव है कि लेखिका इसका नामकरण इसी कारण से की होगी। उन्होंने कहा कि मैथिली साहित्य में इससे पूर्व भी इसी तरह छन्दों के नाम पर हुआ है जिसमें द्रुतविलम्वित,व्यतिरेक, वाणिनी, शिखरिणी इत्यादि सम्मिलित हैं।

प्रो. दिलीप कुमार चौधरी ने कहा कि पुस्तक का कलेवर देखने में ही अत्यन्त मनमोहक है। इसका विषयवस्तु समालोचना पर आधारित है जो छात्र एवं शोधकर्ताओं के लिए लाभदायक है। प्रो. प्रीती झा ने इस कार्यक्रम की सफलता प्रसन्नता जाहिर की और उन्होंने कहा कि अब मुझे साहित्य के सर्जन में और अधिक उत्साहवर्धन होगा।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश झा ने कहा कि रघुवंश द्वितीय सर्ग के 75 वें तथा अंतिम श्लोक मालिनी छन्द में है जवकी अन्य चौहत्तर श्लोक उपजाति छन्द में। कार्यक्रम का संचालन प्रो. नारायण झा ने किया। इस अवसर पर वाणिज्य संकायाध्यक्ष प्रो. बी.बी.एल. दास, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. ए.के. बच्चन, हिन्दी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चन्द्रभानु प्रसाद सिंह, विजय बाबू, सोहन चौधरी, प्रो. दमन कुमार झा, डा. फूलो पासमान, अनेक विभागाध्यक्ष, अनेक विभाग के शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी तथा विभाग के कर्मी की गरिमामयी उपस्थिति रही।