विश्वविद्यालय मैथिली विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा मे कविकोकिल विद्यापति की पुण्यतिथि मनाई गई, जिसकी अध्यक्षता प्रो रमेश झा ने की। आरम्भ मे महाकवि विद्यापति के चित्र पर सभी शिक्षक, शोधार्थी एवं छात्र छात्राओं द्वारा माल्यार्पण किया गया।

अपने उद्बोधन में प्रो अशोक कुमार मेहता ने कहा कि विद्यापति मैथिली साहित्य के स्तम्भ हैं, जिनपर मैथिली साहित्य सात सय वर्षो से टिका हुआ है।ये ना सिर्फ मैथिली भाषा के विद्वान थे अपितु इन्होने संस्कृत, अवहट्ट और जनभाषा मैथिली में रचना कर तीनों भाषाओं के साहित्य को मजबूत किया।

प्रो दमन कुमार झा ने कहा कि विद्यापति मैथिली साहित्य के प्राण वायु हैं। जनकवि विद्यापति नहीं होते तो मैथिली भाषा आज इतनी समृद्ध नहीं रहती। इन्होने श्रृंगारिक एवं भक्ति विषयक सैकड़ो गीत रचे जो सात सय वर्षो से जन जन के कंठों में विराजमान है। आज कोई भी अवसर हो विद्यापति के गीत बिना अधूरा है।

डॉ सुनीता कुमारी ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुएकहा कि विद्यापति न केवल साहित्य के श्रष्टा थे अपितु समाज के पथ प्रदर्शक थे। उनकी अधिकांश संस्कृत ग्रंथों एवं मैथिली के गीतों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति को देखा परखा जा सकता है।

अध्यक्ष प्रो रमेश झा ने अपने उद्बोधन में कहा कि महाकवि विद्यापति सांस्कृतिक जागरण के अग्रदूत थे।सम्पूर्ण पुर्वोत्तर भारत में उनके गीतों का अनुगूंज आज भी सुनाई दे रही है।उनकी काव्य कला की महानता ही कही जाएगी कि लम्बे समय तक वे बांगला, उड़िया, एवं असमी के कवि के रूप में जाने जाते रहे।

इस अवसर पर विभागीय शोधार्थी रौशन कुमार, सत्यनारायण प्रसाद यादव, नीतू कुमारी, राज्यश्री, शालिनी कुमारी, वन्दना कुमारी, दीपक कुमार, दीपेश कुमार, भोगेन्द्र कुमार,भाग्यनारायण झा, नृपति नारायण झा आदि ने भी महाकवि विद्यापति को श्रद्धांजलि अर्पित किया।