आज दिनांक- 08/03/2022 को विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो० राजेन्द्र साह ने कहा कि महिलाओं के सम्मान में ही पुरुषों का सम्मान निहित है। ‘सम्मान’शब्द अत्यंत व्यापक है जिसमें बराबरी के साथ समुचित अधिकार देने तथा पुरुषों को अपनी तरह नारियों को महत्त्व देने का भाव है। जबतक समभाव दृष्टि का उन्मेष नहीं होगा, नारियों का उत्थान सम्भव नहीं। किसी भी परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के उन्नयन एवं कल्याण में नारियों की भूमिका को नज़रअंदाज़ करना बेमानी है। डॉ० साह ने कहा कि वास्तव में किसी दिवस को मनाने का मूल उद्देश्य क्या है उस पर बात होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब नारी की उपेक्षा हो रही होगी तभी ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ जैसे श्लोकों का निर्माण हुआ होगा| आज भी समानता का भाव इस समाज में नहीं है। पुत्रियों और पुत्रों की परवरिश में स्पष्ट फर्क देखा जा सकता है। दहेज जैसी कुरीति पर भी प्रो० साह ने प्रकाश डाला। परसाई जी को उद्धृत करते हुए उन्होंने स्त्रियों के प्रति पुरुष मानसिकता की ओर भी इशारा किया | उन्होंने कहा कि आज सिर्फ पढ़ने-लिखने की नहीं, बल्कि विचार बदलने की ज़रूरत है, ऐसे विचार जिसमें स्त्री को सम्मान मिले। प्रसाद ने नारी को नायिका के रूप में महत्त्व देकर महाकाव्य के प्रतिमान बदले| उन्होंने कहा कि सच्चे साहित्य का सृजन ‘भोगे हुए यथार्थ’ से ही सम्भव है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में आमंत्रित डॉ० बिंदु चौहान ने कहा कि यह तकलीफदेह है कि आज अगर अपने इस हिंदी विभाग को ही देखें तो यहाँ कोई स्त्री प्रोफेसर नहीं है। और न केवल आज की यह स्थिति है बल्कि प्रारम्भ से अभी तक के शिक्षकों की सूची में स्त्रियाँ न के बराबर दिखती हैं। डॉ० चौहान ने कहा कि यह दुखद है कि आज कैलेंडर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस घोषित हो चुका है इसीलिए हम इसे मना रहे हैं। इस मौके पर उन्होंने कहा कि भारतीय अवधारणा में पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं माना गया है। ऋग्वेद से आधुनिक साहित्य तक हम लोक और साहित्य को साथ लेकर चले हैं। डॉ० सुमन राजे के इतिहास ग्रन्थ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पुरुष इतिहासकारों ने महिला कवियों को वह स्थान नहीं दिया जिसकी वे हकदार थीं। झांसी की रानी की विशेषता बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके एक हाथ में तलवार थी तो दूसरी ओर पीठ पर उनका नवजात बच्चा बंधा होता था। झांसी की रानी शौर्य, साहस और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थीं। उन्होंने आगे कहा कि लड़कियों को नौकरी के बाद भी पढ़ना चाहिए। उन्होंने आंकड़ों के आधार पर कहा कि युवतियां एम०ए० में लड़कों की अपेक्षा ज्यादा होती हैं लेकिन पीएच० डी० में उनकी उपस्थिति नदारद है। कामकाजी महिलाओं की स्थिति को उन्होंने ज्यादा दर्दनाक बताया। चूल्हे और औरत के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। स्त्रियों के लिए सुंदरता एक मापदंड के तौर स्थापित कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि हम अधूरे हो कर भी खुश हैं। हम क्यों ‘कम्प्लीट वुमेन’ की अवधारणा में विश्वास रखें? इसी क्रम में उन्होंने मन्नू भंडारी के उपन्यास ‘आपका बंटी’ की भी चर्चा करते हुए कहा कि जब माँ का साथ बच्चे को नहीं मिलता तो उनकी हालत क्या हो जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि हर वर्क प्लेस पर महिलाओं का शोषण होता है। अपनी वाणी को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप सभी को संवेदनशील बनना है तो साहित्य पढ़ना चाहिए।
डॉ० अनुराधा प्रसाद ने भी इस अवसर पर उद्गार व्यक्त किये| आम जनजीवन में महिलाएं प्रतिदिन किन समस्याओं से जूझती हैं उसपर उन्होंने सूक्ष्म ढंग से विचार किया|
डॉ० सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने इस अवसर पर कहा कि पूरी दुनिया में आदिम साम्यवादी व्यवस्था में महिलाओं की क्या स्थिति थी, उस समय पितृ सत्ता नहीं थी। इस पितृ- सत्तात्मक समाज का निर्माण बाद में हुआ है। महिलाओं की स्थिति आज भी सुधरी नहीं है और आज जब पूरी दुनिया बाजार बन गयी है, महिलाएं भी बाजार की वस्तु बन गयी हैं। अजीजन बाई जैसी महिला क्रांतिकारियों को इतिहास में दफन कर दिया गया है। उन्होंने अपनी बात को विराम देते हुए कहा कि स्त्रियाँ आज भी पीठ पर बच्चा लेकर धान रोपती हैं, मजदूरी करती हैं।
डॉ० आनन्द प्रकाश गुप्ता ने इस अवसर पर सभी शिक्षकों, शोधार्थियों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई दी। महिलाओं के अस्तित्व की रक्षा करना समाज का प्राथमिक दायित्व है|
डॉ० अखिलेश कुमार ने इस अवसर पर कहा कि आज महिलाओं को सिर्फ महिला दिवस पर ही याद किया जाता है। महिलाएं आज सभी क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं|वे ज्यादा जागरूक हुई हैं|
वरीय शोधप्रज्ञ कृष्णा अनुराग ने कहा कि हम मिथिलांचल में हैं और यह विदुषी ‘भारती’ की धरती है। उस प्राचीन समाज में स्त्री कितनी सशक्त और ज्ञान परम्परा की वाहक थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने शंकराचार्य जैसे उद्भट विद्वान को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
कनीय शोधप्रज्ञ समीर कुमार ने स्त्री विमर्श के कई आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हम अभिजन स्त्रीवाद की बात करते हैं जहाँ झलकारी बाई छूट जाती हैं। महादेवी वर्मा की ‘मैं हैरान हूँ’ कविता का पाठ करके उन्होंने उन सब को कठघरे में खड़ा किया जो आज ‘श्रद्धेय’ हैं। ‘हाथरस’ जैसी घटनाएं हमारे समाज में निरन्तर हो रही हैं। उन्होंने कहा कि आज समय आ गया है कि अकुलीन स्त्री विमर्श की शुरुआत होनी चाहिए।
मंच का संचालन कनीय शोधप्रज्ञा शिखा सिन्हा और धन्यवाद – ज्ञापन शोधप्रज्ञा पुष्पा कुमारी ने किया। इस अवसर पर धर्मेन्द्र दास, अभिषेक कुमार, मंजू सोरेन, सुशील मंडल समेत बड़ी संख्या में शोधार्थी और छात्र मौजूद रहे।
08 Mar 2022